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शिक्षकों ने छत्तीसगढ़ में शिक्षा के स्तर पर जताई चिंता, कहा- स्कूलों को अफसरों ने बना दिया है प्रयोगशाला

Chhattisgarh School: छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन (Chhattisgarh Teachers Association) का कहना कि शिक्षकों (Teachers) का उपयोग अब पढ़ाने में कम जबकि बाबूगीरी (Clerk working) करने में ज्यादा हो गया है, शिक्षकों ने गिनाया कि उनसे क्या-क्या कराया जाता है काम, ऐसे में पढ़ाई होती रहेगी प्रभावित

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Chhattisgarh school education level

Teachers association representatives

अंबिकापुर. Chhattisgarh School: छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष संजय शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष हरेंद्र सिंह, जिला अध्यक्ष मनोज वर्मा ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के शिक्षा का स्तर बहुत ही गंभीर व चिंतन का विषय है। विभाग के अधिकारी स्कूल को प्रयोगशाला बना दिए हैं, इस कारण शिक्षा स्तर (Education level) में सुधार नामुमकिन हो गया है। 365 दिन में 366 प्रकार की जानकारी मंगाई जाती है। प्रदेश उपाध्यक्ष हरेंद्र सिंह ने बताया कि सभी जानकारी अर्जेंट होती है। शिक्षक कागज, ऑनलाइन व वाट्सएप में ज्यादा जानकारी भेजते हैं, बच्चों से कम जुड़ पाते हैं। शिक्षक जब तक अध्यापन के लिए पूर्णत: मुक्त न हो, अभिभावकों की सहभागिता न हो, स्कूल घर परिवार में शैक्षिक माहौल न हो, तो शिक्षा में सुधार सम्भव नही है।


जिला अध्यक्ष मनोज वर्मा ने बताया कि स्कूल में जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र बनवाना, मध्यान्ह भोजन, छात्रवृत्ति, मतदाता सूची बनाने का कार्य, निर्वाचन, सभी प्रकार का सर्वे, साइकिल वितरण, डाक बनाना, मीटिंगए प्रशिक्षण, टीकाकरण, दवाई वितरण आदि के बाद कुछ समय बच जाए तब पढ़ाई कार्य का समय है। इन्ही सब कार्य में समय निकल जाता है तो आखिर शिक्षक पढ़ाएगा कब।

शिक्षा विभाग एक प्रयोगशाला (Laboratory) बन गया है जहां पर एक कार्य पूरा नहीं होता, उसके पहले दूसरा प्रोजेक्ट लाद दिया जाता है। कुछ दिनों बाद दोनों का पता नहीं चलता कि उस पर हुआ क्या है। वास्तव में शिक्षकों को पढ़ाई कराने का पूर्ण अवसर ही नहीं मिलता। इतने अधिक गैर शिक्षकीय कार्य कराए जाते हैं कि शिक्षक से ज्यादा वह बाबू बन कर रह गया है।

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शिक्षा स्तर गिरने का एक और महत्वपूर्ण कारण दर्ज छात्र संख्या में वृद्धि, परन्तु सेटअप 2008 का, जिसमें शिक्षको की सीमित संख्या है, नवीन सेटअप की जरूरत है। शालाओं में कार्यालयीन कार्य की अधिकता भी है। प्राथमिक व माध्यमिक शाला में कम से कम 5 शिक्षक अनिवार्य हो। आज यह स्थिति है अधिकांश शाला में 2 शिक्षक जिसमें 1 पूरा साल भर नए डाक व संकुल मीटिंग में ही व्यस्त रहता है।

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शिक्षकों से राय लेकर तैयार हो योजना
मनोज वर्मा ने कहा है कि शिक्षा विभाग (Education Department) कोई भी योजना लागू करे, उसे शिक्षक समुदाय के पास पहले सार्वजनिक तौर पर चर्चा में लाना चाहिए, फिर लागू करना चाहिए। शिक्षकों को थोपी गई नित नए अल्पकालिक योजना से शिक्षा गुणवत्ता की कल्पना कोरी है।

ऐसी कोई शिक्षा योजना बन ही नही सकती जो केवल 6 महीने या साल भर में आपको तुरंत रिजल्ट दे सके। एक निरन्तरता व स्थायी, दीर्घकालिक कार्ययोजना, अनुभवी शिक्षकों के सहयोग से बनना चाहिए, न कि 2 या 4 माह की कार्ययोजना।


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