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# Topic of the day : उदयपुर में विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला लेकिन सरगुजा में लोकनाट्यों की परंपरा का इतिहास लंबा नहीं- देखें Video

'टॉपिक ऑफ द डे' कार्यक्रम में इप्टा के अध्यक्ष प्रितपाल सिंह अरोरा से पत्रिका ने की चर्चा

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Topic of the day with Pritpal Singh Arora

Topic of the day with Pritpal Singh Arora

अंबिकापुर. 'टॉपिक ऑफ द डे' कार्यक्रम में इप्टा के अध्यक्ष प्रितपाल सिंह अरोरा ने रंगकर्म के महत्व पर पत्रिका से चर्चा की। उन्होंने बताया कि सरगुजा जिले के उदयपुर स्थित रामगढ़ में पत्थरों को तराश कर बनी हुई नाट्यशाला को विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला कहा जाता है।लेकिन ऐसा कोई लंबा इतिहास नहीं है कि सरगुजा में लोकनाट्यों की परंपरा रही हो। लोकनृत्य रहे हैं जो आज भी सरगुजा की शान हैं।

उन्होंने बताया कि 40-50 के दशक में राजघराने में छिटपुट नाटक अवश्य होते रहे हैं। इसके बाद स्कूलों में नाटक, दुर्गा पूजा में वर्ष में एक बार होने वाले बांग्ला नाटक, समाज सेवा विभाग द्वारा 60-70 के दशक में गली-गली खेले जाने वाले नाटक, फिर आकाशवाणी व कॉलेज द्वारा भी नाटक प्रस्तुत किए गए, पर ये नाकाफी रहे।


प्रितपाल सिंह अरोरा ने बताया कि सरगुजा के ग्रामीण क्षेत्रों में कभी-कभी हास्य नाटकों को भी महसूस किया गया पर रंगकर्म की असली शुरुआत 'इप्टा' अंबिकापुर शाखा के नुक्कड़ व मंच नाटकों से होती है। उन्होंने बताया कि रंगकर्म का अलग महत्व है। मंच एक शक्तिशाली, संवेदनशील व सजीवता का सचेत माध्यम है जिसके द्वारा लेखक फिर निर्देशक दर्शकों को एक विशेष स्थिति का बोध कराते हैं।

1 मई 1981 को नुक्कड़ नाटक, मशीन के लगातार 5 नुक्कड़ प्रदर्शनों से अंबिकापुर की जनता रुबरू हुई। इसके बाद मंच नाटक, गोष्ठियां, वाद-संवाद के माध्यम से जनता की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक आजादी के मूल्यों की वकालत करते हुए काम आज तक जारी है।

समस्याओं के बीच से उत्पन्न दर्शकों में राजनैतिक चेतना का विकास करती हैं और इस प्रकार में कही गई बात जनता में संघर्ष के रूप में विकसित होती है।


सांस्कृतिक हॉल व रिहर्सल स्थल नहीं
इप्टा ने अपने काम से मोंडे रंगकर्म, कवि सम्मेलनों घटिया टीवी चैनलों के मध्य अपनी स्थिति मजबूत की है। चाहें 32 वर्षों से शहीदों में याद में निकाली जाने वाली रैली, शहीदों के विचारों से ओत-प्रोत पर्चे व चित्रकला कार्यक्रम हो। इतने वर्षों बाद भी शहर के पास एक सांस्कृतिक हॉल व रिहर्सल स्थल नहीं है।

आश्वासनों देकर बच्चों को सांस्कृतिक गतिविधियों से महरुम रखा गया है। नृत्य, संगीत, रंगकर्म सहित किसी भी कला के लिए ऑडिटोरियम का अभाव है। वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सरकारीकरण, घटिया चैनलों, फिल्मों के आकर्षण व संस्कृति के व्यवसायीकरण ने रंगमंच के काम को बहुत नुकसान पहुंचाया है।


युवा उद्देश्यपूर्ण गंभीर नाटकों से होता जा रहा दूर
प्रितपाल सिंह अरोरो ने बताया कि आर्थिक लोक ने संस्कृति की गंभीरता का हरण कर लिया है। आज की युवा पीढ़ी उद्देश्यपूर्ण गंभीर नाटकों व संस्कृति के अन्य घटकों से दूर होती जा रही है। इप्टा अंबिकापुर रंगमंच के लिए मील के पत्थर के रूप में जानी जाती है।

चमचागिरी, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, सांप्रदायिकता व लोकतंत्र पर मंडराते खतरे में भी इप्टा का काम जारी है। जनता के बीच रंगकर्म के माध्यम से ही संवाद कायम करने की तेजी बढ़ानी होगी।