CG High Court: बिलासपुर जिले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सरकारी नौकरियों के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण राज्य सरकार का अधिकार है।
CG High Court: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सरकारी नौकरियों के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण राज्य सरकार का अधिकार है। न्यायालय इस विषय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मास्टर ऑफ सॉइल एंड वाटर इंजीनियरिंग डिग्री को भूविज्ञान (जियोलॉजी) की स्नातकोत्तर डिग्री के समकक्ष मानने की मांग की गई थी।
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने 12 फरवरी 2020 को जल संसाधन विभाग में सहायक भू-हाइड्रोलॉजिस्ट के पांच पदों के लिए विज्ञापन प्रकाशित किए। भर्ती नियम 2014 के अनुसार इन पदों के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता मान्यता प्राप्त विवि से भूविज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री निर्धारित की गई।
याचिकाकर्ता मधुकर पटेल एवं अन्य ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर से बी.टेक और एम.टेक (सॉइल एंड वाटर इंजीनियरिंग) की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होंने पीएससी द्वारा निर्धारित इस योग्यता को चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि एमटेक (सॉइल एंड वाटर इंजीनियरिंग) को भूविज्ञान की स्नातकोत्तर डिग्री के समकक्ष माना जाना चाहिए।
और इस प्रावधान के कारण उन्हें अनुचित रूप से चयन प्रक्त्रिस्या से बाहर कर दिया गया। उन्होंने उल्लेख किया कि 1 मई 2020 को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने जल संसाधन विभाग को एक पत्र लिखकर यह अनुशंसा की थी कि सॉइल एंड वाटर इंजीनियरिंग डिग्री धारकों को भी इस पद के लिए पात्र माना जाए, किंतु विभाग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क प्रस्तुत किया कि एम.टेक (सॉइल एंड वाटर इंजीनियरिंग) डिग्री भूविज्ञान की स्नातकोत्तर डिग्री के समकक्ष है। भर्ती नियम 2014 एक मनमाना और भेदभावपूर्ण प्रावधान है, जो योग्य उमीदवारों को सार्वजनिक रोजगार से वंचित करता है। उन्होंने इसे असंवैधानिक बताते हुए नियम को निरस्त करने और उनको भी पात्रता में शामिल करने की मांग की।
राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर ने दलील दी कि सहायक भू-हाइड्रोलॉजिस्ट पद के लिए भूविज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री अनिवार्य है। क्योंकि इस पद का कार्यक्षेत्र पृथ्वी का समग्र अध्ययन, भूजल संसाधनों का आकलन और हाइड्रोलॉजिकल सर्वेक्षण है। उन्होंने कहा कि भूविज्ञान का महत्व बांध, जलाशय और सुरंग जैसी इंजीनियरिंग परियोजनाओं में अत्यधिक है और इसके लिए विशेष ज्ञान आवश्यक है।
राज्य की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि भूविज्ञान और सॉइल एंड वाटर इंजीनियरिंग में मौलिक अंतर है। दूसरा विषय कृषि क्षेत्र से अधिक संबंधित है, जबकि भूविज्ञान का कार्यक्षेत्र कहीं अधिक व्यापक है। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि नियोक्ता को पद की प्रकृति के अनुसार योग्यता तय करने का अधिकार है और याचिकाकर्ताओं का यह दावा निराधार है। इसके अतिरिक्त, इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया है। 21 अक्टूबर 2021 को नियुक्ति आदेश भी जारी हो चुके हैं।