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‘धुरंधर’ फिल्म पर क्यों मचा है इतना बवाल? विवाद की सच्चाई आई सामने!

Dhurandhar Movie Controversy: इतना हंगामा…विवादों में घिरी फिल्म ‘धुरंधर’ को लेकर लोग कई तरह की बातें कर रहे हैं। इस बीच ‘द कश्मीर फाइल्स’ के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने कहा कि… पढ़िए पूरी खबर।

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Dec 14, 2025

Dhurandhar Movie Latest Update: निर्देशक आदित्य धर की फिल्म ‘धुरंधर’ सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर ही नहीं, बल्कि सियासी गलियारों और सोशल मीडिया पर बहस का केंद्र बन गई है। दर्शक एक तरफ इसे जबरदस्त स्पाई-थ्रिलर बता रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ क्रिटिक्स ने फिल्म पर ‘प्रोपेगेंडा’, ‘नेशनलिज्म’ और ‘एंटी-पाकिस्तान नैरेटिव’ जैसे गंभीर आरोप लगा दिए हैं। इसी बढ़ते विवाद के बीच अब ‘द कश्मीर फाइल्स’ के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने चुप्पी तोड़ते हुए इस पूरे हंगामे को एक पुराने पैटर्न से जोड़ दिया है। आखिर उन्होंने ऐसा क्या कहा, जिससे ‘धुरंधर’ को लेकर छिड़ी बहस और तेज हो गई?

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डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने तोड़ी चुप्पी

डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते हुए लिखा- फिल्म ‘धुरंधर’ को लेकर जो विवाद खड़ा किया जा रहा है, वह कोई नई बात नहीं है। इस तरह के मिक्स्ड रिव्यू, तीखे शब्दों और फिल्म के इरादों पर सवाल पहले भी उठते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसे एक तरह का ‘आफ्टरशॉक’ समझा जाना चाहिए, जैसे भूकंप के बाद का झटका। वैसे ही यह पुरानी घबराहट और वही प्रतिक्रियाएं हैं, जो कि मैंने साल 2016 में आई अपनी फिल्म ‘बुद्धा इन ए ट्रैफिक जैम’ के दौरान भी देखी थीं।

अग्निहोत्री का कहना है कि असली वजह कुछ ऐसे एलीट वर्ग हैं, जो लंबे समय से तय करते आए हैं कि कौन-सी कहानी दिखाई जाएगी और कौन-सी नहीं। कौन-सी कहानी सही है और कौन सी गलत।

ऐसे लोगों को विवाद से उतना डर नहीं है, जितना इस बात से है कि कहानियों पर उनका नियंत्रण धीरे-धीरे खिसक रहा है। आम लोगों तक नए नजरिए पहुंच रहे हैं।

निर्देशक ने किया खुलासा, बताई वजह

उन्होंने आगे खुलासा करते हुए बताया कि ‘धुरंधर’ जैसी फिल्में, जो खुलकर राष्ट्रवादी विषयों पर बात करती हैं और कंधार हाइजैक, 26/11 जैसे असली घटनाक्रमों से प्रेरित हैं, पुराने कंट्रोल सिस्टम को चुनौती देती हैं। इसी वजह से वह परेशान हैं।
अग्निहोत्री ने यह भी कहा कि फिल्मों का असर राजनीति से कहीं ज्यादा गहरा होता है। राजनीति सरकारें और कानून बदलती है, जो समय के साथ पलट भी सकते हैं। लेकिन फिल्में लोगों के सोचने का तरीका बदल देती हैं। एक कहानी अगर दिमाग में बैठ जाए, तो वह लंबे समय तक नजरिया बना देती है। सिनेमा धीरे-धीरे चीजों को सामान्य बना देता है और समाज की भावनाओं व सामूहिक यादों को आकार देता है। उनके मुताबिक, जब यह ताकत एलीट कंट्रोल से बाहर निकलने लगती है, तब यही लोग सबसे ज्यादा बेचैन हो जाते हैं, क्योंकि तब मामला सिर्फ एक फिल्म का नहीं, बल्कि उनके प्रभाव और अस्तित्व का बन जाता है।

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