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‘धर्म जोड़ने की चीज़ है, तोड़ने की नहीं…’ Homebound एक्टर ईशान खट्टर ने दिया बड़ा बयान

Ishaan Khatter: ईशान खट्टर ने अपने परिवार के बारे में बात करते हुए कहा कि वो नहीं समझ पाते कि धर्म को लोगों को बांटने का जरिया क्यों बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता अलग अलग धर्मों को मानते हैं और उनकी मां ने ही उन्हें भारत में विविधता में एकता का महत्व सिखाया।

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Oct 08, 2025
शाहिद कपूर और ईशान खट्टर, मां नीलिमा अजीम के साथ। (फोटो सोर्स: ishaankhatter)

Ishaan Khatter: 'धड़क' फेम एक्टर ईशान खट्टर ने हाल ही में धर्म और समाज को लेकर अपने विचार शेयर किए। उन्होंने कहा कि वो नहीं समझ पाते कि धर्म को लोगों को बांटने का जरिया क्यों बनाया जाता है। मोजो स्टोरी पर बरखा दत्त के साथ अपनी नई फिल्म ‘होमबाउंड’ पर बात करते हुए ईशान ने बताया कि वो एक अंतर-धार्मिक परिवार में पले-बढ़े हैं, उनकी मां नीलिमा अजीम एक मुस्लिम परिवार से आती हैं, जबकि उनके पिता राजेश खट्टर हिंदू हैं। और उनकी मां ने ही उनको भारत में विविधता में एकता का महत्व सिखाया है।

शाहिद कपूर और ईशान खट्टर, मां नीलिमा अजीम के साथ। (फोटो सोर्स: ishaankhatter)

ईशान ने कहा, 'मेरे लिए धर्म हमेशा से विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। यह हमारे देश की खूबसूरती है कि अलग-अलग धर्म और संस्कृति मिलकर एक पूरा देश बनाती हैं।' साथ ही उन्होंने यह भी कहा, 'धर्म जब व्यक्तिगत और स्नेह से जुड़ा हो, तब वह सबसे सुंदर होता है, लेकिन जब उसे विभाजन और नफरत का हथियार बना दिया जाए, तो वह अपनी असली पहचान खो देता है।'

मां से मिली संवेदनशीलता की विरासत

ईशान ने अपने बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा कि उनकी मां नीलिमा अजीम ने उन्हें भारतीयता की गहराई सिखाई। उन्होंने कहा- 'बचपन में मैंने पंडित बिरजू महाराज और मां को कथक करते देखा है। त्योहारों, इतिहास और संस्कृति की समझ मुझे अरनी मां से ही मिली। जब मैं छोटा था तब मां ने तलाक होने के बाद आर्थिक संघर्षों के बावजूद मुझे और शाहिद कपूर को एक अच्छी परवरिश दी। वो मेरे जीवन की सबसे कठिन घड़ी थी, जब मैं सिर्फ चार साल का था। लेकिन मां ने कभी हमें कोई कमी महसूस नहीं होने दी।'

होमबाउंड में गूंजती धर्म और पहचान की आवाज

होमबाउंड मूवी सीन्स। (फोटो सोर्स: IMDb)

ईशान की नई फिल्म ‘होमबाउंड’, जिसका निर्देशन नीरज घेवन ने किया है। 'Homebound' धर्म और जाति जैसे जटिल मद्दों को संवेदनशील तरीके से पेश करती है। ईशान कहते हैं, 'यह फिल्म किसी पर उंगली नहीं उठाती है, बल्कि बातचीत शुरू करती है। हमें समाज में ऐसी और सभ्य बातचीतों की जरुरत है।'

धड़क से अब तक का सफर

ईशान की यात्रा 'धड़क' से शुरू होकर अब 'होमबाउंड' तक पहुंची है। जहां ‘धड़क’ में उन्होंने प्रेम की सीमाओं और सामाजिक बंधनों की कहानी को दिखाया था, वहीं ‘होमबाउंड’ में वो धर्म और पहचान के बीच के खालीपन और अंतर की बात कर रहे हैं। हालांकि, दोनों ही फिल्मों में एक बात समान है और वो है मानवता, प्रेम और भाईचारे का संदेश।

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