लखनऊ

Education Policy: लखनऊ में 82 प्राथमिक स्कूलों का हुआ विलय, पहली जुलाई से नए स्कूल में पढ़ाई शुरू

Education Update:  लखनऊ में 30 से कम छात्र संख्या वाले 82 प्राथमिक व जूनियर स्कूलों का पास के युग्मन स्कूलों में विलय कर दिया गया है। पहली जुलाई से इन स्कूलों के छात्र नए विद्यालयों में पढ़ाई शुरू करेंगे। इस फैसले पर कई जगह विरोध भी हो रहा है, जहां सुविधाएं नाकाफी बताई जा रही हैं।

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Jun 30, 2025
पहली जुलाई से नई जगह लगेंगी कक्षाएं फोटो सोर्स : Patrika

Educational Infrastructure: राजधानी लखनऊ में 30 से कम छात्र संख्या वाले 82 प्राथमिक और जूनियर स्कूलों का विलय पास के स्कूलों में कर दिया गया है। अब इन स्कूलों के बच्चे 1 जुलाई 2025 से पास के युग्मन स्कूलों में पढ़ाई शुरू करेंगे। हालांकि यह निर्णय जहां शिक्षा प्रशासन के लिए एक प्रबंधनिक कदम माना जा रहा है, वहीं स्थानीय स्तर पर इसका मिलाजुला असर देखा जा रहा है। कुछ स्कूलों में इसका विरोध भी सामने आया है।

स्कूलों की घटती छात्र संख्या बनी वजह

बेसिक शिक्षा विभाग ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि इन स्कूलों में छात्रों की संख्या 30 से कम थी। शासन की मंशा है कि जहां छात्र कम हैं, वहां संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है, और ऐसे में बेहतर प्रबंधन के लिए पास के विद्यालयों में इनका विलय किया जाए। बीएसए कार्यालय द्वारा पहले 133 स्कूलों की सूची बनाई गई थी, जिनमें से 82 स्कूलों की स्कूल प्रबंध समिति (SMC) ने लिखित सहमति देकर विलय की अनुमति दी। इसके बाद बीएसए राम प्रवेश ने आदेश जारी कर 82 स्कूलों का विलय कर दिया।

विलय के बाद पहली जुलाई से नई व्यवस्था लागू

इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अब पास के युग्मन स्कूलों में पढ़ाई करेंगे। खण्ड शिक्षा अधिकारियों और प्रधानाध्यापकों को इस संबंध में आदेश मिल चुके हैं। बीएसए ने 26, 27 और 28 जून को संबंधित अधिकारियों को स्कूलों की सूची भेजी थी। इन स्कूलों के भवनों के भविष्य को लेकर अभी निर्णय शेष है और विभागीय निर्देशों के इंतजार में है।

SMC ने नहीं दी सहमति, कई स्कूलों में विरोध

विलय की इस प्रक्रिया के तहत 41 स्कूलों ने अपने SMC प्रस्ताव नहीं सौंपे हैं। इन स्कूलों के प्रधानाध्यापकों, समिति सदस्यों और ग्राम प्रधानों ने स्पष्ट रूप से विरोध जताया है। उनका कहना है कि बिना उचित व्यवस्था के बच्चों को जबरन दूर भेजा जा रहा है।

विरोध कर रहे शिक्षकों का आरोप है कि बीईओ और एआरपी द्वारा प्रधानाध्यापकों पर दबाव बनाकर सहमति प्रस्ताव मांगे जा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि बच्चों और शिक्षकों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है और यू-डायस (UDISE) कोड भी अलग-अलग हैं, जिससे प्रबंधन में अव्यवस्था होगी।

क्या कहती हैं शिक्षक और अभिभावक

शिक्षकों ने बताया कि नया स्कूल कई बच्चों के घर से 2–3 किमी दूर है। छोटे बच्चों के लिए इतनी दूरी रोज तय करना कठिन और असुरक्षित हो सकता है। दूसरी ओर, बढ़ती संख्या के बावजूद बैठने के लिए बेंच, कुर्सी, पेयजल, शौचालय और कक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं की गई है। एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि “अगर बच्चों के लिए बुनियादी ढांचे की व्यवस्था पहले की गई होती तो हम भी समर्थन करते, लेकिन यह सब जल्दबाजी में और एकतरफा किया गया है।”

विरोध करने वालों को चेतावनी

प्राइमरी स्कूल बगरदी कला (बीकेटी) के दो शिक्षकों और दो शिक्षामित्रों को बीएसए कार्यालय ने कठोर चेतावनी नोटिस जारी किया है। आरोप है कि वे विलय का विरोध कर रहे थे और अभिभावकों को गुमराह कर रहे थे। इनमें प्रधानाध्यापक सरोज लता, सहायक अध्यापक संतोष, और शिक्षामित्र सरस्वती व बाबूलाल शामिल हैं। शिक्षा विभाग का कहना है कि सरकारी नीतियों के खिलाफ शिक्षकों द्वारा किया गया ऐसा आचरण अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है।

किन स्कूलों का हुआ विलय

  • कुछ प्रमुख स्कूल जिनका विलय किया गया है कि 
  • पीएस दुलागंज
  • पीएस अनूपखेड़ा
  • पीएस फुलवरिया
  • पीएस वाजिद नगर
  • पीएस समाधानपुर
  • पीएस भानौरा
  • पीएस कुसमी
  • पीएस शिवरी
  • पीएस विश्रामपुर
  • पीएस रायपुर राजा-2
  • पीएस लाल नगर
  • जूनियर हाईस्कूल गोहरामऊ
  • पीएस परसदी खेड़ा आदि

शासन की मंशा: शिक्षा गुणवत्ता में सुधार

शासन का मानना है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा देना मुश्किल होता है। शिक्षक, संसाधन और निगरानी का बंटवारा हो जाता है जिससे कोई भी स्कूल प्रभावशाली नहीं बन पाता। इसीलिए विलय की नीति को अपनाया जा रहा है ताकि 

  • छात्र संख्या पर्याप्त हो
  • शिक्षकों की तैनाती तर्कसंगत हो
  • संसाधनों का बेहतर उपयोग हो

बीएसए ने नहीं दिया जवाब

इस पूरे मुद्दे पर बीएसए राम प्रवेश से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। इससे यह स्पष्ट है कि विभाग इस निर्णय को लेकर संवेदनशील स्थिति में है और अभी अंतिम रूप से किसी भी प्रतिक्रिया से बच रहा है।

फैसला प्रशासनिक, पर असर जमीनी

  • बिना पर्याप्त व्यवस्था और संवाद के अगर स्कूलों का विलय किया गया, तो इसका असर बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और उपस्थिति पर पड़ सकता है।
  • जहां एक ओर प्रशासन इसे सुधार की दिशा में कदम मान रहा है, वहीं जमीनी स्तर पर इसके कार्यान्वयन में गंभीर खामियां नजर आ रही हैं।
  • शिक्षा के अधिकार कानून और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की भावना तभी साकार हो सकती है जब नीतियों से पहले जमीनी हकीकत को समझा जाए और सभी हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
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