
जुलाई में बिजली बिलों पर लगेगा अतिरिक्त बोझ फोटो सोर्स :Social Media
UP Electricity Bill: उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं पर जुलाई महीने से एक और आर्थिक बोझ बढ़ने जा रहा है। इस बार बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं से 1.97 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क वसूलेंगी। यह अधिभार अप्रैल महीने के लिए ईंधन एवं ऊर्जा खरीद समायोजन (एफपीसीए) के अंतर्गत लगाया जा रहा है। अगर कोई उपभोक्ता 1000 रुपये की बिजली खपत करता है, तो उसे जुलाई के बिल में 19.70 रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे।
यह पहली बार नहीं है जब उपभोक्ताओं को एफपीसीए के नाम पर अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है। पिछले चार महीनों में यह तीसरी बार है जब बिजली कंपनियों ने एफपीसीए अधिभार लगाया है। अप्रैल से यह अतिरिक्त वसूली शुरू हुई थी और उपभोक्ताओं पर लगातार भार डाला जा रहा है। मई के महीने में उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत मिली थी, जब अधिभार 2 प्रतिशत कम किया गया था।\लेकिन जून में फिर से 4.27 प्रतिशत अधिभार लगाकर उपभोक्ताओं को झटका दिया गया। अब जुलाई में एक बार फिर 1.97 प्रतिशत की वसूली की जा रही है।
| महीना | अधिभार (%) |
| अप्रैल | लागू की शुरुआत |
| मई | -2.00% (कमी) |
| जून | +4.27% |
| जुलाई | +1.97% |
उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) द्वारा जनवरी 2025 में बहुवर्षीय वितरण टैरिफ (MYDT) के तीसरे संशोधन में यह व्यवस्था लागू की गई थी कि हर महीने का एफपीसीए तीन महीने बाद उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा। इस नीति के तहत, अप्रैल के लिए जुलाई में वसूली की जाएगी। इस निर्णय के कारण अब बिजली कंपनियों को अपने ईंधन और ऊर्जा खरीद की लागत की भरपाई उपभोक्ताओं से करने की छूट मिल गई है, भले ही उस माह में उपभोक्ता ने बिजली का अधिक उपभोग न किया हो।
एफपीसीए (Fuel and Power Purchase Cost Adjustment) एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके तहत बिजली कंपनियां अपने उत्पादन या खरीद की लागत में आए उतार-चढ़ाव को उपभोक्ताओं से वसूल सकती हैं। यह एक तरह से अस्थायी अधिभार है जो हर महीने की लागत के अनुसार तय होता है। हालांकि यह व्यवस्था पूरे देश में है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसे नियमित आधार पर लागू किए जाने से उपभोक्ता परेशान हैं।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इस वसूली को पूरी तरह अनुचित और नियम विरुद्ध करार दिया है। उन्होंने कहा कि "बिजली कंपनियां आयोग से मनमाने तरीके से नियम बनवाकर उपभोक्ताओं से धन वसूल रही हैं। इस तरह की वसूली न केवल अव्यवहारिक है बल्कि आम जनता के साथ धोखा है।" उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बिजली कंपनियां अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नहीं रखतीं और लागत बढ़ने का पूरा भार उपभोक्ताओं पर डाल देती हैं।
यदि कोई औसत घरेलू उपभोक्ता हर महीने 1500 से 2000 रुपये तक का बिल भरता है, तो वह जुलाई में 30 से 40 रुपये अतिरिक्त देगा। यह राशि साल भर में जोड़कर देखें तो सैकड़ों रुपये का अतिरिक्त बोझ बन जाता है। ग्रामीण और शहरी गरीब उपभोक्ताओं के लिए यह व्यवस्था बड़ा वित्तीय झटका साबित हो रही है। पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे नागरिकों को अब बिजली भी महंगी पड़ने लगी है।
केवल घरेलू उपभोक्ता ही नहीं, बल्कि छोटे और मध्यम उद्योगों पर भी इस अधिभार का असर पड़ रहा है। औद्योगिक उपभोक्ताओं को हर महीने लाखों रुपये के बिजली बिलों पर अतिरिक्त राशि चुकानी पड़ती है, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है और प्रतिस्पर्धा में बने रहना मुश्किल हो रहा है।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद और कई उपभोक्ता संगठनों ने मांग की है कि एफपीसीए व्यवस्था की पूर्ण समीक्षा की जाए। आयोग नियमों को पारदर्शी और उपभोक्ता हितैषी बनाए। कंपनियों को पहले अपनी कार्यदक्षता और नुकसान में कटौती पर काम करना चाहिए, न कि उपभोक्ताओं से सीधे वसूली करना।
Updated on:
30 Jun 2025 10:54 am
Published on:
30 Jun 2025 10:53 am
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