Fake EWS Certificate: किसी छात्र का वास्तविक कैटेगरी अगर ईडब्ल्यूएस है और उन्हें निजी मेडिकल कॉलेजों में सीट मिलती है तो स्वाभाविक रूप से छात्र फीस अफोर्ड नहीं कर पाएगा।
Fake EWS Certificate: सिम्स बिलासपुर की तीन छात्राओं का एडमिशन फर्जी ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट के आधार पर रद्द कर दिया गया है। ये इसलिए किया गया, क्योंकि संबंधित तहसील कार्यालयों ने ये सर्टिफिकेट जारी नहीं किए। दूसरी ओर नए सत्र 2025-26 में हुई काउंसलिंग के पहले राउंड में 12 ईडब्ल्यूएस छात्र-छात्राओं को निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों में एमबीबीएस व बीडीएस की सीटें मिली हैं।
इन छात्रों ने एडमिशन भी ले लिया है। बड़ा सवाल ये है कि निजी मेडिकल कॉलेजों की साढ़े 4 साल की पूरी फीस 34 से 36 लाख रुपए है, ऐसे में 8 लाख रुपए से कम आय वाले छात्र फीस कैसे पटा पाएंगे। बीडीएस की फीस भी 12 लाख या इससे ज्यादा है। मतलब साफ है कि इनका ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट संदेह के घेरे में है।
प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों के यूजी व पीजी कोर्स में ईडब्ल्यूएस कोटे के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। पत्रिका ने पिछले साल अक्टूबर में इसका खुलासा किया था। एमबीबीएस में 11 गरीब सवर्ण छात्रों का निजी कॉलेजों में प्रवेश हुआ था। इसकी शिकायत किसी छात्र ने नहीं की।
बड़ा सवाल ये है कि अगर इनके पालकों की सालाना आय 8 लाख रुपए से कम है तो ये साढ़े 4 साल के कोर्स की ट्यूशन फीस 34 से 36 लाख रुपए कैसे जमा कर सकेंगे? सभी मदों को मिलाकर 63 से 65 लाख रुपए फीस जमा करनी होती है। काउंसलिंग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि दस्तावेजों का सत्यापन होता है, तब केवल यह देखा जाता है कि सर्टिफिकेट सक्षम अधिकारी ने बनाया है या नहीं। किसकी आय कम है या ज्यादा, यह नहीं देखा जाता।
नेहरू मेडिकल कॉलेज में एमडी की पढ़ाई कर रही एक छात्रा के ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट की रिपोर्ट 9 महीने बाद आई है। तहसीलदार ने सर्टिफिकेट को वैलिड तो बताया है, लेकिन यह नहीं बताया कि छात्रा ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के लिए पात्र है या नहीं। छात्रों ने पिछले साल पीएमओ में शिकायत की थी। जांच की गति इतनी धीमी है कि इस माह एमडी-एमएस में प्रवेश के लिए काउंसलिंग शुरू होने वाली है।
सभी की रिपोर्ट नहीं आई है। नेहरू मेडिकल कॉलेज व सिम्स बिलासपुर में सात छात्रों को ऑब्स एंड गायनी जैसी महत्वपूर्ण सीटें मिल गईं थीं। डीन ने पिछले साल 4 दिसंबर को रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग व अंबिकापुर कलेक्टर को पत्र लिखकर मोस्ट अर्जेंट केस बताते हुए सर्टिफिकेट की जांच करने को कहा था।
डॉ. यूएस पैकरा, डीएमई, छत्तीसगढ़: एडमिशन से पहले स्क्रूटिनी कमेटी ये देखती है कि छात्र का सर्टिफिकेट वैलिड अधिकारी ने जारी किया है या नहीं। छात्र पात्र है या नहीं, मौके पर इसकी जांच नहीं की जा सकती। शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई भी जाती है।
Fake EWS Certificate: सिम्स बिलासपुर में छात्रों का एडमिशन इसलिए रद्द कर दिया गया, क्योंकि सर्टिफिकेट जारी ही नहीं किया गया था। जबकि जो छात्र ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत एडमिशन ले रहे हैं, वे पात्र हैं भी या नहीं, इसकी जांच कभी नहीं होती। किसी छात्र का वास्तविक कैटेगरी अगर ईडब्ल्यूएस है और उन्हें निजी मेडिकल कॉलेजों में सीट मिलती है तो स्वाभाविक रूप से छात्र फीस अफोर्ड नहीं कर पाएगा।
लेकिन यहां तो जब से ये कैटेगरी बनी है, तब से ऐसा ही एडमिशन चल रहा है। पत्रिका ने पहले राउंड की आवंटन सूची को खंगाला तो पता चला कि ऐसे 12 छात्र हैं, जिनकी वास्तविक कैटेगरी ईडब्ल्यूएस है, लेकिन निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों में सीटें मिली हैं। ये चौंकाने वाला है।