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कौन है Salima Mazari? जिनसे तालिबान को भी लग रहा डर

Salima Mazari ने तालिबान के खिलाफ खड़ी कर दी खुद की फौज, जमीन और मवेशी बेचकर लोग बन रहे सलीमा की फौज का हिस्सा

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Dheeraj Sharma

Aug 13, 2021

Salima Mazari

नई दिल्ली। अफगानिस्तान ( Afghanistan ) में तालिबान ( Taliban ) ने ऐसी दहशत फैला दी है कि लोग डर के साए में जी रहे हैं। तालिबान बंदूक और हथियारों के दम पर लगातार अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है। अफगानिस्तान के कई प्रमुख प्रांतों में तालिबान का कब्जा करता जा रहा है।

इस बीच तालिबानियों को रोकने और उन्हें सीधी टक्कर देने के लिए एक महिला गवर्नर सामने आई है। इस दबंग महिला गवर्नर से तालिबान भी खौफ खा रहा है। दरअसल अफगानिस्तान में कत्लेआम मचा रहे आतंकी संगठन तालिबान से लड़ने के लिए महिला गवर्नर सलीमा मजारी ( Salima Mazari ) ने अपनी एक फौज बनाई है। सलीमा इस फौज के जरिए अपने इलाके के लोगों की ढाल बनकर खड़ी हैं।

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सलीमा मजारी है चारकिंट जिले की लेडी गर्वनर हैं। जिस समय अफगानिस्तान में महिलाओं के हक को लेकर लड़ाई चल रही है, तब सलीमा अपने दम पर अपने इलाके के लोगों का सुरक्षा कवच बन गई हैं।

सलीमा ने अपनी खुद की एक ऐसी फौज खड़ी कर ली है कि तालिबान भी उन पर हमला करने से पहले हजार बार सोच रहा है।

सलीमा के सेना में जमीन बेचकर शामिल हो रहे लोग
सलीमा पर इलाके के लोगों का भरोसे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग अपनी जमीन और मवेशी बेच कर हथियार खरीद रहे हैं और सलीमा की सेना में शामिल हो रहे हैं।

फिलहाल सलीमा की फौज में 600 के करीब लोग शामिल हो चुके हैं। वहीं ये लेडी गवर्नर घूम-घूम कर अपने इलाके में लोगों लड़ने का जज्बा पैदा करते हुए फौज में शामिल होने की अपील भी कर रही है।

देशभक्ति के गाने से भरती हैं जोश
सलीमा उत्तरी अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों से गुजरती हैं और अपनी फौज में स्थानीय लोगों को शामिल करती रहती हैं।

उनकी गाड़ी की छत पर एक लाउडस्पीकर लगा है। इसमें देशभक्ति का मशहूर गीत बजता रहता है। 'मेरे वतन... मैं अपनी जिंदगी तुझ पर कुर्बान कर दूंगा' बोल वाले इस गीत के जरिए सलीमा लोगों में जोश भरती हैं।

ईरान में हुआ था सलीमा का जन्म
अफगान मूल की सलीमा का जन्म 1980 में एक रिफ्यूजी के तौर पर ईरान में हुआ। यहीं पर सलीमा पलीं और बढ़ीं। सलीमा ने तेहरान की यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की।

ईरान में बसने की बजाय सलीमा ने अफगानिस्तान में आकर काम करने का फैसला किया। वो यहां बल्ख सूबे के चारकिंट की गवर्नर भी चुनी गईं। अब सलीमा लंबे समय से तालिबान के खिलाफ लड़ रही हैं।

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इसलिए सलीमा से तालिबान को दिक्कत
दरअसल सलीमा हजारा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और इस समुदाय के ज्यादातर लोग शिया बिरादरी से आते हैं, ऐसे में तालिबानियों का इनके साथ हमेशा से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। शियाओं के बहुत से रीति रिवाज तालिबान आतंकियों से मेल नहीं खाते, ऐसे में तालिबान शियाओं को भी विधर्मियों के तौर पर देखता है।

इसके अलावा सलीमा ने तालिबान से जंग के बीच पिछले वर्ष करीब 100 तलिबानियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। यही वजह है कि सलीमा से सीधी टक्कर लेने में तालिबान डर रहा है।