
इमरान खान
नई दिल्ली।पाकिस्तान बेसब्री से भारत में हो रहे लोकसभा चुनाव के परिणामों का इंतजार कर रहा है। आर्थिक तंगी और आतंकवाद के मामले में पूरी दुनिया में बदनामी झेल रहे पाकिस्तान के पास अब भारत से ही उम्मीद की किरण दिखाई देती है। इमरान बीते कई सालों से मोदी सरकार से बातचीत का प्रस्ताव रख रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर का मुद्दा सुलझाने के लिए भारत को बातचीत की मेज पर आना चाहिए। वहीं भारत का कहना है कि वह तब तक बातचीत के लिए कदम नहीं बढ़ाएगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पर गोलीबारी बंद नहीं करेगा। इमरान के लिए यह दुविधा की स्थिति है, क्योंकि अमरीका सहित सभी यूरोपीय देश भी उसका साथ छोड़ रहे हैं। सीमा से सटा चीन भी पाकिस्तान के बजाय अपने हित साध रहा है। ऐसे में उसके सामने पड़ोसी भारत ही मात्र विकल्प है जो उसे मुसीबत से उबार सकता है।
बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान की स्थिति और बदतर
भारत का राष्ट्रीय चुनाव अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। भारत में अगली सरकार को पाकिस्तान के साथ राजनीतिक संबंधों के प्रबंधन की बात करना आसान नहीं लग रहा है। पाकिस्तान से निपटने का सवाल एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बना हुआ है। जारी चुनाव बताता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा देश में प्रमुख चुनावी बहसों में से एक है। बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान की स्थिति और बदतर हुई है। भारतीय एयरस्ट्राइक को मोदी सरकार ने प्रतिष्ठा से जोड़कर जनता में देशभक्ति की लहर को उठा दी है। इस्लामाबाद को लग रहा है कि मोदी सरकार अगर दोबारा आती है तो उसे बातचीत के भारी मशक्कत करनी पड़ेगी। उसे भारत की कई शर्तों पर अमल करना पड़ सकता है। वहीं दूसरी सरकार के साथ वह नए सिरे से काम कर सकती हैं। भारत से बेहतर संबंध बनने के बाद ही उसे विश्व बिरादरी से राहत मिलने के आसार हैं। पाकिस्तान की सरकार ने पिछले कुछ समय से यह सुनिश्चित किया है कि यदि दोनों राज्य कई उत्कृष्ट मुद्दों को हल करने में गंभीरता से रुचि रखते हैं, तो बातचीत ही एकमात्र व्यावहारिक तरीका है।
इमरान के लिए दूसरा विकल्प होगा आसान
पाकिस्तान के पास दो ही विकल्प हैं या तो वह आतंकवाद पर बड़ी कार्रवाई करके अमरीका का दिल जीत ले या भारत से दोस्ती करके अपना हित साध ले। इमरान खान के पास दूसरा रास्ता ज्यादा आसान है, क्योंकि पाकिस्तान की सेना ही आतंकवाद को पाल-पोस रही है। ऐसे में आतंकवादियों का सफाया करना पाकिस्तान के लिए असंभव है। वह भारत की नई सरकार से कुछ समझौते करके अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। अगर पुरानी सरकार दोबारा आती है तो इमरान को कड़ी मशक्कत करनी होगी। मोदी सरकार अपनी शर्तों पर पाकिस्तान से बातचीत के रास्ते खोल सकती है। वही नई सरकार के साथ पाकिस्तान आसानी से दोस्ती का हाथ फैला सकता है। मगर मोदी की भारत में लोकप्रियता से इमरान खान भी वाकिफ हैं। वह जानते हैं कि इस चुनाव में मोदी को नकारा नहीं जा सकता है। वह चुनाव में मोदी की मजबूती को भांपने की कोशिश कर रहे हैं।
पूर्ण बहुमत न मिलने से होगा असर
भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलने से भी पाकिस्तान को राहत मिल सकती है। इससे भाजपा को निर्णय लेने मेें आसानी नहीं होगी। पाकिस्तान से बातचीत में भाजपा को सभी दलों को साथ लेकर ही निर्णय लेना होगा। इससे इमरान खान को सरकार में अपनी पैठ बनाने में आसानी होगी। पाकिस्तान के लिए वार्ता के नए रास्ते निकल सकते हैं। 23 मई को आने वाले परिणाम तय करेंगे पाकिस्तान और भारत के बीच की दूरियां कितनी कम होती है।
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Updated on:
18 May 2019 03:09 pm
Published on:
18 May 2019 07:30 am
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