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chaitra navratri 2021: महा अष्टमी मंगलवार के दिन, ऐसे करें मां दुर्गा को प्रसन्न

Durga Ashtmi 2021 : जानें इस साल क्या है खास?

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maha Gauri puja on ashtmi

maha Gauri puja on ashtmi

चैत्र नवरात्रि हिन्दू धर्म का वह पर्व है जिसके प्रथम दिन के साथ ही हिन्दुओं का नव वर्ष प्रारम्भ होता है। ऐसे में इस साल यानि 2021 में भी चैत्र नवरात्रि 2021 (chaitra navratri ) की शुरुआत के साथ ही हिन्दुओं का नवसंवत्सर 2078 शुरू हुआ। इस साल 13 अप्रैल से शुरू हुई नवरात्रि का पहला दिन मंगलवार था। ऐसे में नव संवत्सर 2078 का भी इसी दिन से प्रारम्भ हुआ वही इसनव संवत्सर 2078 ( Nav Samvatsar ) के राजा और मंत्री दोनों का पद ही मंगल को मिला।

कोरोना की इस महामारी के बीच शुरू हुए नव संवत्सर पर ज्योतिषियों के अनुसार मंगल का खास प्रभाव रहेगा। ऐसे में इस साल मंगल की पूजा को भी विशेष लाभकारी माना जा रहा है। जानकारों का तो यहाँ तक कहना है कि इस साल मंगल Mars ही बिगड़े हुए हालातो में आपकी रक्षा करेंगे।

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मां दुर्गा कि आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। जिनकी पूजा नवरात्रि navratri के आठवें दिन यानि अष्टमी के दिन किया जाता है। वही आपको ये जानकर भी आश्चर्य होगा कि नवरात्रि ( navratri ) पर्व का विशेष दिन यानि अष्टमी भी इस बार मंगलवार को ही यानि 20 अप्रैल 2021 को पड़ रही है।

इस पूरी बात में एक खास बात ये भी है कि देवी दुर्गा कि पूजा का दिन सप्ताह के वारों में मंगलवार ही होता है। ऐसे में इस साल मंगल का खास महत्व दिख रहा है। इसके अलावा मंगलवार ( Tuesday ) के दिन हनुमान जी की भी पूजा का दिन होता है। साथ ही देवी माँ दुर्गा और देव सेनापति मंगल ( Mars) दोनों ही पराक्रम के कर्क हैं।

मंगलवार के दिन ही मां दुर्गा (devi durga ) की आराधना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इस दिन जो इंसान पूरे विधि-विधान से माता की आराधना करता है, उसके सारे दुख मां हमेशा के लिए दूर कर देती है। मां दुर्गा ( Maa Durga ) का पूजन श्रद्धापूर्वक करने से हर तरह की भौतिक एवं आध्यात्मिक कामनाएं पूरी होने लगती है।

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आइये जानते हैं मंगलवार के दिन अष्टमी पर मां दुर्गा के पूजन से जुडी कुछ खास बातें...
नवरात्र ( navratri ) में अष्टमी के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं।

देवी गौरी ( devi Gauri ) की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी देवी की पंचोपचार सहित पूजा करें। देवी का ध्यान करने के लिए दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र का उच्चारण करें 'सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥ '

अष्टमी महागौरी की पूजा विधि
इस दिन सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाएं। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें और पूजा में बैठ जाएं। हो सके तो मां महागौरी ( Maha gauri ) की पूजा करने के लिए आप पीले वस्त्र धारण करें। पूजा आरंभ करने से पहले मां के समक्ष घी का दीपक जलाएं और फिर पूजा आरंभ करें।

इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

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पूजा चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। मां महागौरी की पूजा में गुलाबी, श्वेत या फिर पीले फूलों को अर्पित करें। माता को सुगंधित इत्र अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न हो जाती है। महागौरी माता की पूजा के बाद माता के इन मंत्रों (mantras) का जाप श्रद्धापूर्वक करें।

पूजा सामग्री
मां दुर्गा का पूजन श्रद्धापूर्वक करने से हर तरह की भौतिक एवं आध्यात्मिक कामनाएं पूरी होने लगती है। पंचमेवा, पंचमिठाई, रूई, कलावा, रोली, सिंदूर, गीला नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल,5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5, गाय का घी, चौकी, कलश, आम का पल्लव, समिधा, कमल गट्टे, पंचामृत की थाली, कुशा, लाल चंदन, चंदन, जौ, तिल, सोलह श्रृंगार का सामान, लाल फूलों की माला।

महागौरी का स्वरूप
इनका वर्ण पूर्णत: गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं, इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है।

महागौरी ( Goddess )की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

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यह अमोघ फलदायिनी हैं और भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।


ऐसे करें पूजन
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां दुर्गा का आवाहन करें।

माता को आसन अर्पित करें
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:।
आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥

अर्घ्य अर्पित करें
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:।
हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥

पंचामृत स्नान करावें
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:।
पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥

शुद्ध जल से स्नान करावें
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:।
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥

अधिकतर घरों में अष्टमी की पूजा होती है। देव, दानव, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि सभी अष्टमी और नवमी ( 8th and 9th day of navratri )को मुख्य रूप से पूजते हैं। कथाओं के अनुसार इसी तिथि को मां ने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था। इसके अलावा नवरात्रि में महाष्टमी का व्रत रखने का खास महत्व है। मान्यता अनुसार इस दिन निर्जला व्रत रखने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।

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इस विधि से आवाहन पूजन के बाद इनसें से किसी भी एक मंत्र का जप जो मनोकामना हो उसके पूर्ण होने की कामना से करें।

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते॥
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव॥

अष्टमी महागौरी के पूजन का महत्व
नवरात्र की अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा का बड़ा महात्म्य है. मान्यता है कि भक्ति और श्रद्धा पूर्वक माता की पूजा करने से भक्त के घर में सुख-शांति बनी रहती है। मां महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है।

इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

पुराणों में मां महागौरी की महिमा के बारे में काफी कुछ बताया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्य की ओर प्रेरित करके असत्य का विनाश करती हैं। माना जाता है कि आठवें दिन ( eighth day of navratri ) महागौरी की उपासना से सभी पाप धुल जाते हैं।

देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था। भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं, इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।

यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं। गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली महागौरी सफेद वाहन पर सवार हैं। इस दिन माता को भोग में नारियल का भोग लगाया जाता है।