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Ravana’s Wedding in Rajasthan : रावण की शादी का रहस्य, राजस्थान के इस गांव में आज भी मौजूद हैं प्रमाण

Ravana's Wedding in Rajasthan : राजस्थान के जोधपुर में रावण की शादी और मंदिर से जुड़ी कई रोचक कहानियां और परंपराएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का ससुराल मंडोर में स्थित था, जहां उनका विवाह हुआ था। यह स्थल आज भी "रावण का विवाह स्थल" के रूप में जाना जाता है।

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Ravana's Wedding in Rajasthan

Ravana's Wedding in Rajasthan : रावण की शादी का रहस्य, राजस्थान के इस गांव में आज भी मौजूद हैं प्रमाण

Ravana's Wedding in Rajasthan : राजस्थान के जोधपुर शहर में रावण का ससुराल (Ravana's in-laws) स्थित था, ऐसा कहाँ जाता है कि शहर के मंडोर रेलवे स्टेशन के सामने एक ऐतिहासिक स्थल है, जहां रावण और मंदोदरी ने सात फेरे लिए थे यह जगह आज भी मौजूद है, और इसे रावण के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मंदोदरी मंडोर की निवासी थीं। हालांकि, इस दावे का पौराणिक या ऐतिहासिक आधार अभी तक मिला नही है। लेकिन यह स्थल राजस्थान के जोधपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।

राजस्थान के जोधपुर में है रावण का मंदिर Ravana's temple is in Jodhpur, Rajasthan

राजस्थान के जोधपुर जिले में रावण (Ravana) का एक ऐसा मंदिर भी है, जहां रावण की पूजा की जाती है। यहाँ के मंदिर में विजयदशमी पर रावण के दहन पर खुशी नहीं शोक मनाया जाता है। रावण का यह मंदिर किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में है। कहा जाता है की इस मंदिर में वर्ष 2008 में विधि विधान से रावण (Ravana) की मूर्ति स्थापित की गई थी। यह भी कहा जाता है कि शाम को रावण दहन के बाद दवे गोधा वंशज के परिवारों ने स्नान कर नूतन यज्ञोपवीत धारण किया।

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मंदिर के पं कमलेशकुमार दवे ने बताया कि रावण (Ravana) दवे गोधा गोत्र से था इसलिए रावण दहन के समय आज भी इनके गोत्र से जुडे़ परिवार रावण दहन नहीं देखते और सभी परिवार जन मिलकर शोक मनाते है। इसके साथ ही रावण (Ravana) की मूर्तिं के पास मंदोदरी का भी मंदिर है। तब से लेकर आज तक हर विजयदशमी को रावण और मंदोदरी की पूजा की जाती है।

Ravana's Wedding in Rajasthan : जोधपुर में मंदोदरी और रावण से जुड़ा स्थल

रावण (Ravana) की चवरी पर्यटन विभाग के अधीन है। और यहाँ पर इस स्थल को देश- विदेश के लोग देख्नने के लिए आते है। पुराणों में कहा जाता है की रावण की चवरी के बारे में कही उल्लेख नहीं मिलता। चवरी के पास ही एक शेप में बनी बावड़ी निर्मित है। ऐसा कहा जाता है की इस बाबड़ी का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था तब से यह बावड़ी सुमनोहरा के नाम से जानी जाती है। बावड़ी के पास ही रावण मंदोदरी विवाह की चवरी में ही अष्ट माता और गणेश मूर्ति भी है।

दंत कथाओं के अनुसार मंदोदरी मंडोर की राजकुमारी और मायासुर और उसकी पत्नी हेमा की बेटी थी। बाद में उसने रावण से विवाह किया और लंका की रानी बन गई। जाहिर सी बात है कि मंडोर का नाम मंदोदरी के नाम पर पड़ा है। मंडोर के निवासी विशेष रूप से मुदगिल और दवे ब्राह्मण खुद को रावण के वंशज मानते हैं। मंडोर का इतिहास चौथी शताब्दी से मिलना शुरू होता है। गुप्त लिपि में कुछ अक्षरों के आधार पर मंडोर में नागवंशी राजाओं का राज्य रहा था। नागवंशी राजाओं के कारण यहां पर नागादडी याने नागाद्री जलाशय नाग कुंड भी है।

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मंडोर- यह मारवाड़ की प्राचीन राजधानी जिसे 'माण्डवपुर’ के नाम से जानते थे। यह मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की पुरानी राजधानी मंडोर थी। कहा जाता है कि पूर्व में यहाँ पर इंदा राजपूतों का शासन था। राजाओं द्वारा बनाए गए महल भी यहां खंडित अवस्था में है। ऐसा भी कहा जाता है कि यहाँ मांडव्य ने राजपाट त्याग कर तपस्या की थी। आधुनिक काल में मंडोर में एक सुन्दर उद्यान भी है। जिसमें 'अजीत पोल', 'देवताओं की साल' व 'वीरों का दालान', मंदिर, बावड़ी, 'जनाना महल', 'एक थम्बा महल', नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के स्मारक भी बने है। यह जोधपुर और मारवाड़ के महाराजाओं के देवल और चौथी शताब्दी का एक प्राचीन किला भी है।