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छत्तीसगढ़ में राम भक्ति की अनोखी परंपरा! Tattoo में बसा राम का नाम, बाकी ‘भक्तों’ से हैं काफी अलग…

Ramnami Community of CG: रामनामी समुदाय अपनी विशेष धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है, जिनमें सबसे अनोखी प्रथा है- शरीर पर "राम" नाम का गोदना (टैटू) बनवाना।

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छत्तीसगढ़ में राम भक्ति की अनोखी परंपरा(photo-patrika)

छत्तीसगढ़ में राम भक्ति की अनोखी परंपरा(photo-patrika)

Ramnami Community of CG: छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय अपनी विशेष धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है, जिनमें सबसे अनोखी प्रथा है- शरीर पर "राम" नाम का गोदना (टैटू) बनवाना। इस समुदाय के लोग अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर, कभी-कभी पूरे शरीर पर भी, भगवान राम का नाम अंकित करवा लेते हैं। यह केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है, जो उनके भीतर रची-बसी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक होता है।

Ramnami Community: छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय

रामनामी समुदाय के लिए यह गोदना एक तरह से उनकी आस्था की मुहर है, जो उन्हें अन्य भक्तों से अलग पहचान दिलाता है। यह परंपरा न सिर्फ भगवान राम के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक असमानताओं के विरोध में खड़ा एक मजबूत सांस्कृतिक संदेश भी देती है।

रामनामी समुदाय (Ramnami Community) एक विशिष्ट हिंदू संप्रदाय है जो पूरी तरह से भगवान राम की भक्ति को समर्पित है। यह समुदाय मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों, विशेष रूप से जांजगीर-चांपा, मुंगेली, बिलासपुर और आसपास के क्षेत्रों में पाया जाता है। रामनामी समुदाय की सबसे विशिष्ट पहचान यह है कि इसके अनुयायी अपने शरीर पर "राम" नाम का गोदना (टैटू) गुदवाते हैं। वे अपने माथे, बाहों, गर्दन और यहां तक कि पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम अंकित करवाते हैं।

शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम

इसके साथ ही वे सफेद वस्त्र पहनते हैं, सिर पर राम नाम की टोपी लगाते हैं और जीवनभर मांस, शराब और तामसिक प्रवृत्तियों से दूर रहते हैं। रामनामी समुदाय की उत्पत्ति 19वीं सदी के उत्तरार्ध में मानी जाती है, जब समाज में जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन के रूप में यह परंपरा शुरू हुई।

जातिगत असमानताओं के कारण जब उन्हें मंदिरों में प्रवेश नहीं करने दिया गया, तब इन्होंने राम को अपने भीतर बसा लिया और राम नाम को अपने शरीर पर अंकित कर लिया। आज भी यह समुदाय बिना किसी पंडित या मंदिर के, भक्ति, भजन, कीर्तन और सतनाम के माध्यम से भगवान राम को स्मरण करता है। रामनामी केवल एक धार्मिक संप्रदाय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, आत्मसम्मान और आस्था का प्रतीक बन चुका है।

माथे से लेकर पैर तकराम का नाम

रामनामी समुदाय के लोग भगवान राम के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए अपने पूरे शरीर पर "राम" नाम का गोदना (टैटू) गुदवाते हैं। यह न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि उनकी भक्ति का जीवंत प्रमाण भी है। माथे से लेकर पैर तक, शरीर के हर हिस्से पर राम नाम अंकित करवाना उनके लिए एक आध्यात्मिक साधना का रूप है, जो जीवनभर उनके साथ रहती है।

अन्य भक्तों से अलग

इस गोदना प्रथा ने रामनामी समुदाय को अन्य भक्तों से अलग और विशिष्ट पहचान दी है। यह केवल एक भक्ति का तरीका नहीं, बल्कि उनके आत्मसम्मान, सामाजिक संघर्ष और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक भी बन गया है। यह उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करता है और उनके विश्वास की गहराई को दर्शाता है।

एक महत्वपूर्ण परंपरा

रामनामी समुदाय में "राम" नाम का गोदना केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। यह परंपरा बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी में समान रूप से प्रचलित है। जैसे-जैसे कोई व्यक्ति भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे वह अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर राम नाम अंकित कराता है। यह परंपरा समुदाय की धार्मिक विरासत को जीवित रखने का माध्यम भी है, जिसे बड़े गर्व और श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।photo

सिर पर मोर पंख से बनी विशिष्ट टोपी

रामनामी समुदाय के लोग न केवल अपने शरीर पर राम नाम गुदवाते हैं, बल्कि वे अपनी बाहरी वेशभूषा से भी अपनी पहचान को प्रकट करते हैं। वे "राम" नाम छपा हुआ सफेद शॉल ओढ़ते हैं और सिर पर मोर पंख से बनी विशिष्ट टोपी पहनते हैं, जो उनकी आस्था और परंपरा का सार्वजनिक प्रतीक है। यह बाहरी स्वरूप उन्हें समाज में अलग पहचान दिलाने के साथ-साथ एकता, अनुशासन और आत्मगौरव का भाव भी प्रदान करता है। उनका यह रूप समाज में सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक स्वतंत्रता का भी परिचायक है।