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PM बनने के बाद पहली बार मोदी कर सकते हैं माता त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन, जानें खासियत-मान्यताएं

Mata Tripura Sundari Temple: मंदिर का इलाका शांतिपूर्ण और प्रकृति सौंदर्य से भरपूर है, जो राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के श्रद्धालुओं को हर साल आकर्षित करता है।

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Mata Tripura Sundari Temple
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फाइल फोटो- पत्रिका

प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी तलवाड़ा स्थित शक्ति पीठ त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन कर सकते हैं। इसके लिए प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी है। आपको बता दें कि बांसवाड़ा शहर से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर तलवाड़ा कस्बे के निकट उमराई गांव में विराजमान है मां त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर। यह स्थल प्रमुख शक्ति पीठों में से एक के रूप में जाना जाता है, जहां सिंह पर सवार मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की अठारह भुजाओं वाली प्रतिमा स्थापित है।

इस दिव्य मूर्ति में मां दुर्गा के नौ रूपों की झलक स्पष्ट दिखाई देती है, जबकि उनके चरणों में उत्कीर्ण श्री यंत्र सभी सिद्धियों का प्रतीक माना जाता है। सिंह, मोर और कमल की सवारियों के कारण मां यहां तीन अलग-अलग रूपों में प्रकट होती प्रतीत होती हैं, जो उनकी सर्वव्यापी शक्ति को दर्शाता है।

तीसरी शताब्दी से भी पुराना

मंदिर का गौरवशाली इतिहासमंदिर के निर्माण की सटीक तिथि आज भी रहस्यमयी बनी हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह तीसरी शताब्दी से भी पुराना है। मंदिर परिसर में विक्रम संवत 1540 का एक प्राचीन शिलालेख प्राप्त हुआ है, जो संकेत देता है कि यह कुषाण वंश के सम्राट कनिष्क के समय से पहले का हो सकता है। बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर गुजरात, मालवा और मारवाड़ के राजाओं का प्रिय उपासना स्थल रहा।

पहले कहते थे तरताई माता

खासकर गुजरात के सोलंकी वंशीय राजा सिद्धराज जयसिंह की इष्टदेवी यहीं मानी जाती थीं। आसपास के प्राचीन खंडहरों से अनुमान लगाया जाता है कि विदेशी आक्रमणों ने इस क्षेत्र के कई मंदिरों को तबाह कर दिया था, लेकिन मां त्रिपुरा सुंदरी की शक्ति ने इसे संरक्षित रखा। प्रारंभिक काल में इस देवी को 'तरताई माता' के नाम से पुकारा जाता था। मंदिर का इलाका शांतिपूर्ण और प्रकृति सौंदर्य से भरपूर है, जो राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के श्रद्धालुओं को हर साल आकर्षित करता है।

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प्रचलित पौराणिक कथानुसार दक्ष-यज्ञ तहस-नहस हो जाने के बाद शिवजी सती की मृत देह कंधे पर रख कर झूमने लगे। तब भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए योगमाया के सुदर्शन चक्र की सहायता से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर भूतल पर गिराना आरम्भ किया। उस समय जिन-जिन स्थानों पर सती के अंग गिरे, वे सभी स्थल शक्तिपीठ बन गए।