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Barmer: नाकाम प्रयास और खोखली पैरवी के चलते हजारों करोड़ बर्बाद, गिरल का पावर प्रोजेक्ट 9 साल से धूल फांक रहा

Giral Power Project: गिरल प्लांट की दो इकाइयां 1865 करोड़ की लागत से स्थापित हुई थीं। 125-125 मेगावाट की दोनों इकाइयां क्रमश: वर्ष 2007 और 2009 में चालू हुई, लेकिन गिरल के कोयले में सल्फर की अधिक मात्रा होने के कारण 2016 में उत्पादन बंद हो गया।

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Giral Power Project

Giral Power Project

Giral Power Project: बाड़मेर जिले का गिरल लिग्नाइट पावर प्लांट पिछले नौ साल से धूल खा रहा है, जबकि सरकार की नाक के नीचे निजी कंपनी राजवेस्ट उन्हीं खदानों से कोयला खनन कर अरबों का मुनाफा कमा रही है। सरकार की नाकामी और अधिकारियों की इच्छाशक्ति की कमी के कारण जनता के हजारों करोड़ रुपए से बना यह सरकारी प्लांट कबाड़ बनने की कगार पर है।


गिरल प्लांट की दो इकाइयां 1865 करोड़ की लागत से स्थापित हुई थीं। 125-125 मेगावाट की दोनों इकाइयां क्रमश: वर्ष 2007 और 2009 में चालू हुई, लेकिन गिरल के कोयले में सल्फर की अधिक मात्रा होने के कारण 2016 में उत्पादन बंद हो गया। तब से यह प्लांट ठप है। और रखरखाव पर हर साल सरकार का घाटा बढ़ता जा रहा है, जो अब 1500 करोड़ से पार हो चुका है।

बीएलएमसीएल खनन कर रहा

उधर, कपूरड़ी और जालीपा लिग्नाइट माइंस से बीएलएमसीएल खनन कर रहा है और वही कोयला राजवेस्ट के 1080 मेगावाट संयंत्र को सप्लाई हो रहा है। हैरानी की बात यह है कि इन खदानों में 440 मिलियन मीट्रिक टन कोयला उपलब्ध है, जबकि राजवेस्ट को सिर्फ 270 मिलियन मीट्रिक टन की आवश्यकता है। यानी जरूरत से ज्यादा कोयला उपलब्ध होने के बावजूद सरकार अपने ही बंद पड़े गिरल प्लांट को चालू कराने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाई।


तीन सरकारें बदली, खरीददार भी आए


गिरल पावर प्लांट को वर्ष 2016 में बंद किया गया, उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। उस समय विपक्ष में रही कांग्रेस ने प्लांट को लेकर आंदोलन और बड़े-बड़े वादे किए। लेकिन जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो खुद प्लांट बेचने की कवायद शुरू की। खरीददार भी आए, मगर सरकार फिर भी बेच नहीं पाई। अब एक बार फिर से भाजपा की सरकार है। निविदाएं निकाली गई, फाइलों में चर्चाएं भी हुई, लेकिन नतीजा वहीं है।


सरकार ने निविदाएं भी निकाली


सरकार ने गिरल प्लांट बेचने के लिए 2016 और 2021 में निविदाएं निकाली, लेकिन दोनों बार नाकाम रही। 2015 में ऊर्जा विभाग ने विधि राय भी ली थी, जिसमें साफ लिखा था कि उपलब्ध कोयले से सरकारी प्लांट को भी चलाया जा सकता है। इसके बावजूद सरकार और प्रशासन की ढिलाई ने परियोजना को मौत के मुंह में धकेल दिया।


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