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Rajasthan: ट्रैक्टर से तस्करी का सरगना बना चिमाराम, न मोबाइल रखता था न वाहन चलाता था, फिर भी पुलिस को 6 साल छकाया

राजस्थान में बाड़मेर जिले के छह साल से फरार कुख्यात तस्कर चिमाराम को जोधपुर की साइक्लोनर टीम ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने चिमाराम को मध्यप्रदेश की सीमा पर पकड़ा। चिमाराम पर एक लाख रुपये का इनाम रखा गया था।

Barmer
तस्कर चिमाराम गिरफ्तार (फोटो पत्रिका नेटवर्क)

बाड़मेर: पुलिस महानिरीक्षक रेंज जोधपुर की साइक्लोनर टीम ने ऑपरेशन झंकार के तहत छह साल से फरार मादक पदार्थ तस्करी के एक लाख रुपए के इनामी कुख्यात तस्कर को महाराष्ट्र से पीछा करते हुए मध्यप्रदेश की सीमा पर एक होटल में चाय पीते समय पकड़ लिया। वह रेंज के टॉप-5 वांछितों में शामिल था। उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने नागपुर, नीमच, महाराष्ट्र और गुजरात में छह बार दबिश दी थी, लेकिन वह हर बार बच निकला। अब सातवें प्रयास में हाइवे पर पीछा कर पकड़ा गया।


जोधपुर रेंज आईजी विकास कुमार ने बताया कि बाड़मेर जिले के लीलसर (चौहटन) निवासी चिमाराम पुत्र जेराराम साल 2019 से फरार था। वह मादक पदार्थ, हथियार और पुलिस पर फायरिंग समेत अन्य मामलों में वांछित था। जोधपुर और उदयपुर रेंज पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी पर एक लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था।

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न मोबाइल उपयोग करता और न ही वाहन रखता था


साइक्लोनर टीम ने एक साल पहले ऑपरेशन झंकार के तहत पीछा शुरू किया था। लेकिन छह बार के प्रयासों में वह भागने में सफल हो गया। आरोपी न तो मोबाइल का उपयोग करता था और न ही खुद के पास कोई वाहन रखता था। टीम एक साल से प्रयासरत थी।


नए गृह प्रवेश पर भी पुलिस ने निगरानी रखी, लेकिन चिमाराम नहीं पहुंचा। तीन बेटियों के बाद बेटे के जन्म पर भी सांचौर से घर तक पीछा किया गया, फिर भी वह हाथ नहीं लगा। दो माह पहले नीमच में दबिश दी, लेकिन फिर निकल गया। गुजरात के एक ठिकाने से कुछ मिनट पहले निकल गया और नागपुर में भी गच्चा दे गया। जैसलमेर के मोहनगढ़ में बहन के ससुराल में दबिश के समय वह रोगी बन बाइक पर बैठकर भाग गया।


ऐसे पकड़ में आया


लगातार असफलता के बाद साइक्लोनर टीम ने मुखबिरों का जाल बिछाया। सूचना मिली कि नीमच-मंदसौर का एक कुख्यात आपूर्तिकर्ता चिमाराम को माल पहुंचाता है। वह भी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करता और गुर्गों के माध्यम से संपर्क करता है। साइक्लोनर टीम ने नशे के सौदागर बनकर संपर्क साधा और चिमाराम तक पहुंच बनाई।

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सूचना मिली कि वह इंटरनेट कॉल से अनजान नंबर से संपर्क करेगा। टीम ने तकनीकी रूप से नंबर ट्रैस कर लिया। चिमाराम ने बेंगलुरु के पास कॉल की और दो दिन बाद माल लेने आने की बात कही। टीम ठिकाने पर पहुंची, ट्रक में सवार चिमाराम का पीछा शुरू हुआ। राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर एक होटल पर तय मुलाकात में चाय पीते समय उसे दबोच लिया गया।


ऐसा रहा ट्रैक्टर से तस्करी तक का सफर


बचपन में पढ़ाई छूटने के बाद चिमाराम आवारागर्दी करने लगा। पिता ने ट्रैक्टर चलाना सिखाया, लेकिन वह काम के बजाय करतब करता रहा। होशियार ड्राइविंग देखकर तस्कर विरधाराम ने उसे तस्करी में शामिल कर लिया। फिर श्रीराम बिश्नोई, कौशलाराम और खरथाराम के लिए तस्करी के वाहनों को एस्कॉर्ट करने लग गया था। उससे एस्कॉर्ट कराने के लिए बाड़मेर के कुयात तस्करों में नीलामी लगती थी। 20 हजार से एक लाख रुपए मिलते थे। खरथाराम, विरदाराम, हरीश जाखड़ व ओमप्रकाश की मृत्यु और भैराराम व कौशलाराम के जेल मे होने से चिमाराम सरगना बन गया था।


ट्रिगर हैप्पी चिमाराम, पकड़ना चुनौती


चिमाराम साल 2015 के बाद धोरीमन्ना, सदर, नागाणा, पाली के सुमेरपुर व शिव थाना पुलिस पर फायरिंग कर चुका है। वह स्कॉर्टिंग के बदले एक लाख रुपए लेता था। उसके खिलाफ तस्करी, हत्या प्रयास, पुलिस पर फायरिंग, ऑर्म्स एक्ट, डकैती, अपहरण समेत 15 से अधिक प्रकरण दर्ज हैं। दो बार जेल भी जा चुका है, लेकिन हर बार बाहर आकर उसका दुस्साहस और बढ़ता गया।