
औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है भोपाल गैस कांड, इतनी भयानक थी वो रात
भोपाल/ 2 और 3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात जिसने भोपाल पर गमों का पहाड़ तोड़ दिया। आधी रात से सुबह तक शहर के बीचों बीच बनी कीटनाशकों का केमिकल या जहर बनाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से निकली जहरीली गैस (मिथाइल आइसो साइनाइट) ने हजारों लोगों को तुरंत मौत की नींद सुला दिया था। इसका प्रभाव इतना घातक था गैस कांड के तीन दशक बीतने के बावजूद आज भी शहर की फिजा और यहां गैस खाए लोगों में उसके अंश मौजूद है।
गैस पीड़ित को कोई भी जानलेवा बीमारी होना संभव
औद्योगिक इतिहास की अब तक की इस सबसे बड़ी दुर्घटना में मारे जाने वालों की गणना में तो मदभेद हो सकता है, लेकिन ये त्रासदी कितनी गंभीर थी, इसपर सभी एकमत हैं। इसलिए, ये कहना पर्याप्त होगा कि, घटना में मरने वालों की संख्या हजारों में थी। साथ ही, इससे प्रभावित होकर अब तक जान गंवाने वालों की संख्या लाखों में है। गैस कांड के प्रभाव से जुड़ी ई रिसर्चों में सामने आया है कि, प्रभावित लोगों को उनके गैसकांड से बचने के बावजूद जीवन में कोई भी जानलेवा बीमारी होना संभव है। किडनी फेलियर, कैंसर या टीबी इनमें प्रमुख है। स्वास्थ विभाग ने शहर के गैस पीड़ितों के लिए विशेषरूप से कैंसर और टीबी अस्पताल में अलग से व्यवस्था कर रखी है।
इस पीड़ा से गुरजी थी वो रात
यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर एकाएक क्या हो रहा है। जहरीली गैस से प्रभावित लोगों ने बताया कि, उस रात उनकी आंखों में भयंकर जलन थी और सांस भी नहीं ली जा रही थी। जिन लोगों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा उनकी जान तभी चली गई थी और जिनपर इसका थोड़ कम प्रभाव पड़ा वो अब तिल तिल करके अपनी जान गंवा रहे हैं।
सबका अपना अपना अनुमान
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे। हालांकि, गैर सरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज्यादा थी। इतना ही नहीं, कुछ लोगों का तो ये भी दावा है कि, गैस के कारण तुरंत मरने वालों की संख्या 15 हजार से भी अधिक थी। पर मौतों का सिलसिला सिर्फ उस रात से शुरु होकर उसी रात को ख्म नहीं हुआ, ये तब से लेकर अब तकजारी है। रिसर्च में सामने आया है कि, जो लोग इस जहरीली गैस का शिकार होने के बावजूद भी बच गए हैं। ये गैस इतनी घातक है कि, पीड़ित की तीन पीड़ियों तक इसका असर रहेगा।
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कुछ ही घंटों में हवा में मिल गई थी 40 टन जहरीली गैस
जानकारों की मानें तो 3 दिसंबर की रात 12 बजें से कार्बाइड फैक्टरी से रिसना शुरु हुई गैस से सुबह वॉल बंद किये जाने तक करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था और इसका कारण यह था कि फैक्टरी के टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पानी मिल गया था। इस घटना के बाद रासायनिक प्रक्रिया हुई और इसके परिणामस्वरूप टैंक में दबाव बना। अंतत: टैंक खुल गया और गैस वायुमंडल में फैलने लगी।
Published on:
28 Nov 2019 06:34 pm
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