
MP Farmers : गेहूं की फसल काटने के बाद किसान गेहूं की ठूट यानी पराली जलाने के लिए खेतों में आग लगा रहा हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि, पराली जलाने से उपजाऊ माटी बंजर हो रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोईकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) के डैशबोर्ड के अनुसार, मध्य प्रदेश में इस साल अब तक 14,118 गेहूं की पराली में आग की घटनाएं हो चुकी हैं।
कंबाइन से गेहूं और धान काटने की वजह से खेतों में गेहूं के डंठल यानी पराली जलाने की प्रवृत्ति तेजी से पनपी है। खेतों में पराली खड़ी रह जाती है। किसान खेतों में आग लगाकर इससे छुटकारा पा लेते हैं। प्रदेश के किसानों में एक और भ्रम है कि इससे ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती अच्छी होती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह उनका भ्रम है।
प्रदेश के जिन जिलों में गेहूं की पराली में आग की अधिक घटनाएं दर्ज हो रही हैं, वहां जायद फसल के रूप में मूंग की खेती का चलन बढ़ा है। इनमें नर्मदापुरम, रायसेन, देवास, विदिशा, हरदा और सीहोर जिले प्रमुख हैं।
जिलों में पराली जलाने पर प्रशासन अपने स्तर पर पर्यावरण क्षति का निर्धारण किया है। इसके अनुसार दो एकड़ भूमि वाले किसानों से पर्यावरण क्षति के रूप में 2,500 रुपए प्रति घटना आर्थिक दंड भरना होगा। जिनके पास 2 से 5 एकड़ तक की भूमि है तो उनको पर्यावरण क्षति के रूप में 5 हजार रुपए प्रति घटना और जिसके पास 5 एकड़ से अधिक भूमि है तो उनको 15 हजार प्रति घटना के मान से आर्थिक दंड भरना होगा।
आईआईएसएस भोपाल के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आशा साहू के अनुसार पराली जलाने से खेत की उर्वरता घटती है। मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट हो जाती है। क्योंकि मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन और पोटैशियम, वाष्पित हो जाते हैं। काली मिट्टी की पौष्टिकता कमजोर हो जाती है। साथ ही मिट्टी में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणु और मित्र कीट जैसे केंचुए नष्ट हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें फैलती हैं। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और सांस संबंधी बीमारियां होती हैं।
Published on:
20 Apr 2025 01:49 pm
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