
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह (digvijay singh) एक बार फिर चुनाव मैदान में दिख सकते हैं। महाकौशल क्षेत्र के दौरे पर निकले दिग्विजय ने सिवनी में मंगलवार को चुनाव लड़ने का संकेत देकर राजनीति को हवा दे दी है। दिग्विजय सिंह से जब सिंधिया की पारंपरिक सीट गुना से चुनाव लड़ने पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि वे पार्टी के सिपाही हैं, पार्टी जहां से भी कहेगी वे आदेश मानेंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कटनी और जबलपुर होते मंगलवार को सिवनी पहुंचे थे। यहां दिग्विजय सिंह ने मीडिया से बात करते हुए राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक आरोप लगाए। दिग्विजय से जब चुनाव लड़ने का सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे राज्यसभा के सदस्य हैं, मुझे लड़ने की आवश्यकता नहीं है। पार्टी का सिपाही हूं, पार्टी जो आदेश देगी वो करूंगा।
मीडिया ने जब ज्योतिरादित्या सिंधिया (jyotiraditya scindia) की पारंपरिक गुना सीट से चुनाव मैदान में उतरने का सवाल किया तो दिग्विजय ने कहा कि मेरी सीट राजगढ़ सीट है, गुना सीट नहीं है। पार्टी ने मुझे भोपाल से लड़ने को कहा था जो मेरी सीट नहीं थी। लेकिन, पार्टी का मैं कार्यकर्ता हूं, सिपाही हूं, जो आदेश होगा वो करूंगा।
शिवराज सरकार पर हमला
इससे पहले जबलपुर दौरे पर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार पर हमला बोला। आज पूरे प्रदेश में ड्रग माफिया, माइनिंग माफिया, पीडीएस माफिया सक्रिय हैं। दतिया और कटनी केंद्र बन गए हैं। मुख्यमंत्री केवल नाटक-नौटंकी के अलावा कुछ नहीं। कभी ढोल बजाएंगे, कभी नाचेंगे, कभी बच्चों को गोद में उठा लेंगे। 20 साल तक बहनों की याद नहीं आई। चुनाव आया तो लाडली बहना आ गई।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि खंडवा के भाजपा सांसद खुले आम कह रहे हैं कि भाजपा को वोट दो, नहीं तो एक हजार रुपए मिलना बंद हो जाएंगे। यहां चालू हुआ नहीं और बंद हो जाएंगे। यह कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। इन पर कार्रवाई होना चाहिए। खुलेआम प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि बजरंग बली का नाम लेकर बटन दबाओ, क्या यह कोड आफ कंडक्ट का उल्लंघन नहीं है। उन पर मुकदमा दायर क्यों नहीं हुआ।
दिग्विजय सिंहः राजनीतिक करियर
(digvijay singh political career)
1969 में राघोगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष पद से राजनीतिक करियर की शुरुआत की।
1970 में विजयाराजे सिंधिया ने जनसंघ में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। वे जनसंघ में शामिल हुए, लेकिन कुछ ही दिन बाद कांग्रेस में चले गए।
1971 में वे दोबारा राघोगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष बने।
1977 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और राघोगढ़ से विधायक चुने गए।
1980 में फिर से राघोगढ़ से विधायक बने और सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।
1984 में दिग्विजय ने राजगढ़ सीट से लोकसभा में कदम रखा।
1985 और 1988 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने। राजीव गांधी ने तीसरी बार भी इसी पद पर मनोनित किया।
1989 में दिग्विजय भाजपा के प्यारेलाल खंडलवाल से चुनाव हार गए।
1991 में एक बार फिर लोकसभा गए।
1993 में लोकसभा से इस्तीफा देकर दिग्विजय मुख्यमंत्री बन गए।
1998 में भी दिग्विजय सिंह को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया।
2014 में दिग्विजय सिंह राज्यसभा के सदस्य बने।
2019 में भी दिग्विजय भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर से हार गए।
प्रज्ञा ठाकुर से हार गए थे चुनाव
इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव (loksabha election) में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को भोपाल से टिकट दिया था, जबकि भाजपा ने मालेगांव बम ब्लास्ट में आरोपी रही प्रज्ञा ठाकुर को उतारा था। प्रज्ञा को 8,66,482 वोट मिले, जबकि दिग्विजय को 5,01,660 वोट मिले थे। प्रज्ञा ठाकुर ने दिग्विजय सिंह को 3,64,822 वोटों के अंतर से हरा दिया था। दोनों के चुनाव मैदान में उतरने के बाद मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया था। गौरतलब है कि यह सीट लंबे समय से भाजपा की सीट मानी जाती रही है।
Updated on:
16 May 2023 06:28 pm
Published on:
16 May 2023 05:40 pm
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