
OBC Reservation in Ladli Behna Yojana: मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना में ओबीसी (OBC) वर्ग की महिलाओं को 50% आरक्षण देने की सिफारिश की गई है। ये सिफारिश राज्य सरकार की ओर से ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे के साथ दी गई ओबीसी की सर्वे रिपोर्ट में की गई है। बता दें कि मध्यप्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस पर 10 नवंबर को अगली सुनवाई होनी है।
दरअसल राज्य सरकार ने प्रदेश के महू जिले के डॉ. बीआर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय को एक सर्वे करने के लिए कहा था। ये सर्वे ओबीसी वर्ग की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन करने करवाया गया। इस रिपोर्ट में ही ओबीसी वर्ग की महिलाओं को एमपी सरकार की लाड़ली बहना योजना (Ladli Behna Yojana) समेत अन्य महिला केंद्रित योजनाओं में आरक्षण (OBC Reservation) दिए जाने की सिफारिश की गई है।
इस सर्वे के लिए एमपी के महू जिले की इस यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति डॉ. रामदास आत्राम के नेतृत्व में प्रदेश के 10 हजार से ज्यादा ओबीसी परिवारों से बातचीत शुरू की गई। इसकी रिपोर्ट जुलाई 2023 में राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग को सौंपी गई। इस रिपोर्ट को विभाग ने गोपनीय रखा है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण क्यों देना चाहिए? वहीं लाड़ली बहना योजना में OBC वर्ग की महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट (SC) में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का मामले पर पहले से ही सुनवाई जारी है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट दो बार पहले भी तारीख आगे बढ़ा चुका है। 24 सितंबर के बाद 8 अ अक्टूबर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया अक्टूबर को हुई थी सुनवाई, फिर 9 अक्टूबर मोहन सरकार ने एक बार फिर अगली सुनवाई की तारीख ले ली। अगली सुनवाई 10 नवंबर 2025 को होनी है। वहीं इस मामले पर एमपी में सियासी पारा हाई चल रहा है।
राज्य सरकार का इस सर्वे रिपोर्ट को तैयार करवाने का उद्देश्य केवल ये जानना था कि राज्य में OBC की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति हकीकत में कैसी है, ताकि ये पता लगाया जा सके कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के पिछड़ेपन के मुख्य कारण क्या हैं? सर्वे रिपोर्ट तैयार करवाने की एक मंशा और दिखी कि सरकारी योजनाओं में इनकी वास्तविक भागीदारी और योजनाओं से इन्हें मिलने वाले फायदे की स्थिति क्या है? इसके अलावा सरकारी विभागों में ओबीसी वर्ग को कितना प्रतिनिधित्व मिल रहा है।
-- डॉ. बीआर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय ने किया सर्वे।
-- प्रदेश के अलग-अलग जिलों के 10 हजार से ज्यादा OBC परिवारों से की बात।
-- एमपी पिछड़ा वर्ग सूची में 94 जातियों और उपजातियों को शामिल किया गया है।
-- सर्वे पूरा करने के लिए ऑनलाइन भरवाए गए फॉर्म। इनमें पूछे सवाल।
-- ओबीसी के लिए समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, शिक्षा और राजनीतिक बिंदुओं पर की गई बात।
-- इस वर्ग के लिए विभिन्न आयोगों द्वारा की गई सिफारिशों का अध्ययन भी शामिल।
-- जिलों का डेटा विश्लेषण भी रिपोर्ट का आधार।
-1- सर्वे में सामने आया कि ओबीसी के सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन का कारण आज भी जातिवाद है।
-2- इसके अलावा ओबीसी आरक्षण को लेकर राजनीतिक दृढ़इच्छा की कमी भी ओबीसी के पिछड़ेपन का मुख्य कारण बनी।
-3- रिपोर्ट के मुताबिक आज भी करीब 56 फीसदी ओबीसी परिवार मानते हैं कि उनके घर या उनके सामने से कोई भी ऊंची जाति का शख्स गुजरता है, तो आज भी उन्हें उनके सम्मान में खड़ा होना पड़ता है। फिर वे चाहे पलंग पर बैठे हों या चारपाई पर उनके आते ही उन्हें खड़ा होना ही पड़ता है।
-4- 5 हजार से ज्यादा परिवार मानते हैं कि उनकी जाति के लोगों को धार्मिक शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के अवसर नहीं मिलते, जबकि 2 हजार से ज्यादा परिवारों का कहना है कि उन्हे पुजारी बनने के लिए जरूरी पाठ्यक्रमों में भी प्रवेश नहीं दिया जाता।
-5- सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि आज भी 3 हजार से ज्यादा परिवारों को छूआछूत झेलनी पड़ती है। उनका दावा है कि उनकी जाति और समुदाय के मोहल्ले तक अलग-अलग बसे हुए हैं।
-6- भेदभाव से लेकर सामाजिक बहिष्कार तक आज भी ओबीसी के तीन हजार से ज्यादा परिवारों के जीवन का किस्सा है। उच्च वर्ग के लोग पिछड़ा वर्ग के लोगों के साथ न खाना-पानी तो दूर उठना-बैठना तक पसंद नहीं करते। ये परिवार दावा करते हैं कि उनके साथ सामाजिक भेदभाव बढ़ा है और पुजारी उनके समुदाय में धार्मिक संस्कार कराने से इनकार करते हैं।
-7- सर्वे रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि सामाजिक निर्णय, पंचायत या रोजगार में OBC वर्ग की भागीदारी बेहद सीमित है।
-8- समाज के ज्यादातर परिवार खेती और मजदूरी पर निर्भर हैं, इनकी संख्या 90 फीसदी है। तो 10 फीसदी कारीगरी और परम्परागत व्यवसाय से जुड़े हैं। वहीं औसत बेरोजगारी दर 14.9 प्रतिशत है। गांवों में बेरोजगारी का ये प्रतिशत 12.6 प्रतिशत तो शहरों में 16.8 फीसदी है। वहीं महिला बेरोजगारों की संख्या 21.3 प्रतिशत है।
-9- सर्वे रिपोर्ट बताती है कि ये परंपरागत व्यवसाय आधुनिक तकनीकों से दूर हैं, तो ये आर्थिक रूप से लाभदायक नहीं बचे हैं।
-10- सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि ओबीसी वर्ग को नौकरी से ज्यादा खेती और स्वरोजगार में ज्यादा रुचि है।
-11- शिक्षा और रोजगार के अवसरों में भारी कमी देखी गई है। 7 हजार से ज्यादा परिवार उच्च शिक्षा के लिए कभी कॉलेज नहीं पहुंचे। ये 12वीं या उससे भी कम पढ़े हैं।
-12- केवल 15.65 फीसदी ने ग्रेजुएशन किया है, तो सिर्फ 8.15 फीसदी लोगों ने पीजी किया है। 4 हजार से ज्यादा लोग इसका बड़ा कारण आर्थिक तंगी को मानते हैं।
-13- सरकारी नौकरी या रोजगार में ओबीसी प्रतिनिधित्व की स्थिति भी चिंतनीय है। पांच हजार से ज्यादा परिवारों में 60 फीसदी परिवारों दावा है कि उनके गांवों में कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं है।
-14- सिर्फ 11 फीसदी लोग मानते हैं कि उनके गांव में 5 से ज्यादा लोग शासकीय नौकरी करते हैं।
-15- पिछड़ेपन की इस समस्या को मिटाने के लिए सर्वे रिपोर्ट में जाति तोड़ो, समाज जोड़ो की नीति शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सख्ती से लागू करने की सिफारिश की गई है।
-16- 5 हजार से ज्यादा परिवारों की महिलाएं अपना घर-परिवार चलाने के लिए मजदूरी करती हैं। इसे देखते हुए रिपोर्ट में लाड़ली बहना योजनाओं जैसी सरकारी स्कीमों से जुड़ी ओबीसी वर्ग की महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई है।
सर्वे रिपोर्ट तैयार करने के बाद यूनिवर्सिटी ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। इनमें प्रमुख रूप से लाड़ली बहना योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना जैसी सरकारी योजनाओं में ओबीसी महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित किए जाने की बात कही गई है। ये आरक्षण महिला केंद्रित सभी योजनाओं में लागू किए जाने की मांग की गई है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजरोर OBC वर्गों के लिए स्वरोजगार और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत किए जाने की सिफारिश की गई है।
** लाड़ली बहना योजना के तहत यदि OBC महिलाओं को आरक्षण दिया जाता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि उन्हें आवेदन भरने में प्राथमिकता मिलेगी।
** ज्यादातर महिलाओं तक योजना का लाभ पहुंच सकेगा। इनमें उन महिलाओं के नाम भी शामिल हो सकेंगे जो पात्र हैं और उन्हें इस योजना का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन वे अब तक इस योजना से ही वंचित हैं।
** गरीब और ग्रामीण OBC परिवारों की महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
** बच्चों की स्कूलिंग, पोषण और सेहत संबंधी परेशानियों पर आने वाले खर्च में सहायता मिलेगी।
** आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए वे कम उम्र में शादी, दहेज और घरेलू हिंसा जैसे बदतर हालात से भी वे बाहर आ सकेंगी।
** सरकार का ये कदम OBC वर्ग की पिछड़ी महिलाओं को सामाजिक समानता का अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। जो महिलाएं सामाजिक रूप से दबंगई का शिकार हुईं या हो रही हैं तो उन्हें सरकारी पहचान और मान्यता के अवसर मिलेेंगे।
** सामाजिक और जातिगत भेदभाव झेल रहे परिवारों की महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर खुलेेंगे जो उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएंगे, ताकि उनके साथ उनकी पीढ़ियों का भविष्य भी सुधर सके।
** आत्मनिर्भरता से उपजने वाला आत्मविश्वास उन्हें घर-परिवार और सामाजिक स्तर पर भी नीति निर्धारण के अवसर प्रदान करेगा। यह बदलाव गर्त में पल रही पीढ़ियों को एक उज्जवल भविष्य देगा।
Updated on:
13 Oct 2025 03:22 pm
Published on:
13 Oct 2025 02:47 pm
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