
Bhopal News: माइक्रोप्लास्टिक से दिल हो रहा कमजोर, बढ़ा कार्डिएक अरेस्ट, हार्ट अटैक का खतरा। (फोटो: सोशल मीडिया)
MP News: देश के अन्य शहरों की तरह भोपाल में भी प्लास्टिक कचरा की समस्या बढऩे के साथ लोगों के स्वास्थ्य पर भी खतरा बढऩे लगा है। प्लास्टिक कचरा धीरे-धीरे टूटकर सूक्ष्म कणों (माइक्रोप्लास्टिक्स, एमपीएस) में बदल जाते हैं और हवा, पानी और भोजन के जरिए लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये सूक्ष्म प्लास्टिक कण धमनियों में सूजन और रक्त प्रवाह बाधक के कारण बन सकते हैं। यहां तक कि ये कण हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट होने के खतरे को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने माना है कि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 लागू हैं और पॉलिथीन प्रतिबंधित है, लेकिन झीलों तक पहुंच रहे प्लास्टिक कचरे को रोकने की व्यवस्था अब भी अधूरी है। माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण अब सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं है, बल्कि राजधानी के लोगों के स्वास्थ्य के लिए सीधे खतरा है।
भोपाल में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण हाल के सालों में एक नया और गंभीर पर्यावरणीय संकट बनकर उभरा है। आइसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवायरनमेंट हेल्थ, भोपाल के नेतृत्व में शोध जारी है। एक अध्ययन (2023-24) के अनुसार भोपाल की जीवनरेखा कहे जाने वाले बड़े और छोटे तालाब के पानी में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी वैज्ञानिक रूप से दर्ज की गई है।
छोटे तालाब में औसतन 6.6 कण प्रति लीटर और बड़े तालाब के पानी औसतन 2.4 कण प्रति लीटर माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। इन कणों का स्रोत शहर में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक बैग, पैकेजिंग, बोतलें, सिंथेटिक कपड़े और टायरों का घिसना बताया गया है। इनके पानी पीने और घरेलू काम के लिए उपयोग किया जाता है।
प्लास्टिक जलाने और घर्षण से सूक्ष्म प्लास्टिक के कण हवा में मिल जाते हैं, जो सांस के माध्यम से फेफड़ों जाते हैं। इसके अलावा झीलों, नदियों और नलों के पानी में पड़े प्लास्टिक टूटकर छोटे-छोटे कण बनाते हैं। ये कण मछलियों और अन्य जलीय जीवों के शरीर में जाकर खाद्य श्रृंखला के जरिए इंसानों तक पहुंच रहे हैं।
सूजन: जब ये कण रक्त प्रवाह में पहुंचते हैं, तो इ्यून सिस्टम उन्हें बाहरी तत्व समझकर प्रतिक्रिया करता है, जिससे धमनियों की दीवारों में सूजन और एंडोथेलियल कोशिकाएं प्रभावित होती हैं।
आक्सीकरण तनाव: ये कण ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ाते हैं। इससे कोशिकाओं की बायोकैमिकल स्थिति बिगड़ती है और हृदय-मांसपेशियों एवं रक्त धमनियों को नुकसान हो सकता है।
धमनियों में प्लाक निर्माण: अध्ययन बताते हैं कि ह्रश्वलास्टिक के कण धमनियों के ह्रश्वलाक के अंदर पाए गए हैं, जो रक्त प्रवाह को बाधित कर सकते हैं और रक्तस्राव का खतरा बढ़ाते हैं।
हृदयाघात और स्ट्रोक का बढ़ा खतरा: उन लोगों में जिन धमनियों में प्लास्टिक-प्रदूषित प्लाक पाए गए, उन्हें हृदयाघात, स्ट्रोक या मृत्यु का खतरा करीब 4.5 गुना अधिक मिला।
रक्त के जरिए हार्ट, किडनी, दिमांग को आक्सीजन मिलना कम होने लगता है। हार्ट की क्षमता कम होने लगती है और लंबे समय में हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट हो जाता है।
-डॉ. राजीव गुप्ता, विभागाध्यक्ष कार्डियोलॉजी विभाग, हमीदिया अस्पताल
Updated on:
16 Sept 2025 03:24 pm
Published on:
16 Sept 2025 09:03 am
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