
पीथमपुर के तारापुर गांव में घरों पर लटके ताले, यहीं है यूनियन कार्बाईड का जहरीला कचरा।
Bhopal Gas Tragedy Waste In Pithampur: पीथमपुर की रामकी कंपनी से 200 मीटर दूर गांव में यूनियन कार्बाइड का कचरा पहुंचते ही जहां विरोध तेज हुआ और पीथमपुर दहल उठा। तीसरे दिन भी यहां ग्रामीणों में रोष नजर आया। वहीं गांव की कई गलियां सुनसान हो गईं। स्थिति ये कि कई घरों में ताले लटके नजर आए। दरअसल कचरा जलने के डर से कई ग्रामीण गांव छोड़कर चले गए। वहीं कुछ लोग अपने घरों की छतों से रामकी फैक्ट्री में यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा लेकर पहुंचे 12 कंटेनरों को देख रहे थे। यहां ग्रामीणों से बातचीत में पता चला कि यहां के लोग डरे हुए हैं और यहां से पलायन कर रहे हैं।
हैरानी की बात ये है कि पीथमपुर का ये गांव 300 परिवारों का घर है और यहां की कुल आबादी है 1500। लेकिन इनमें से कई लोग यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को नष्ट करने को लेकर दहशत में हैं और यहां से कहीं और जाकर बसने का ठिकाना खोज रहे हैं। बता दें कि यूनियन कार्बाइड का 337 टन कचरा पीथमपुर की रामकी फैक्ट्री में लाया गया है। ऐसे में इन ग्रामीणों को डर है कि जब 2008 में यहां दफनाए गए 10 टन जहरीले कचरे का असर यहां अब तक है तो फिर अब सैकड़ों टन कचरा कितनी मुश्किलें बढ़ा सकता है। यही कारण है कि कुछ लोगों ने अपने घर को छोड़कर दूसरा ठिकाना तलाशने में ही अपनी और पीढ़ियों की भलाई समझी। कुछ अपने गांव की ओर वापस लौट रहे हैं तो कुछ नई जगह ढूंढ़ने में जुटे हैं।
लोगों का कहना है कि यहां अक्सर यहां परिवार के लोग बीमार रहते हैं। उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा परिवार के सदस्यों के इलाज पर ही खर्च हो जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि जहरीले कचरे के बीच रहना मुश्किल हो गया है। इसलिए अब अपने-अपने परिवारों को गांव भेज दिया है। यहां का पानी इतना खराब हो चुका है कि लोगों को बार-बार स्किन से जुड़ी बीमारियों से जूझना पड़ता है। उनका कहना है कि यदि सरकार को यहां कचरा जलाना है तो फिर सरकार को तारापुर गांव को कहीं और शिफ्ट करना चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों के सामने आया संकट दूर हो।
दरअसल पीथमपुर में 2008 में दस टन कचरा दफनाया गया था। उसके कारण यहां कई परेशानियां लोगों को झेलनी पड़ी। उसी कचरे की वजह से यहां बहने वाली नदी का पानी काला पड़ गया।
गांव वालों का कहना है कि बोरिंग से निकला पानी हम लोग पीते हैं, लेकिन अब वो पीने लायक नहीं बचा है। सरकार भले ही अलग-अलग जांचों में पानी के दूषित न होने का हवाला दे, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों को उस पर जरा भी यकीन नहीं है। ग्रामीण दावा करते हैं कि पानी पीना तो दूर ये नहाने, बर्तन धोने में इस्तेमाल करने भी उन्हें स्किन से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं।
भोपाल गैस कांड से लेकर अब तक कई रिपोर्ट प्रस्तुत हुई हैं, जो उसके प्रभाव को बता रही हैं। सरकार बोल रही है कि कुछ नहीं होगा, उसमें कोई हानिकारक रासायनिक तत्व नहीं है, लेकिन रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं हो रही। अगर कुछ नहीं है तो 126 करोड़ खर्च करके पीथमपुर क्यों लाया जा रहा है। उसे वहीं रहने दिया जाए। अब हम इन रिपोर्ट को कोर्ट में प्रस्तुत करेंगे।
-डॉ. संजय लोंढे
हानिकारक तत्व नहीं होने की रिपोर्ट क्यों नहीं बताई जा रही? डिस्पोज की प्रक्रिया का एसओपी नहीं बताया जा रहा। इंटरनेशनल नॉर्म्स से तुलना को लेकर भी कोई प्रक्रिया नहीं बताई जा रही। उससे कुछ नहीं होगा, इसका प्रूफ क्या है। इसकी स्टडी भी हो। एजेंसी कौन सी होगी जो जांच करेगी, यह भी निर्धारण हो। यह पीथमपुर की ही बात नहीं, इंदौर के भी लोग चिंतित हैं।
-डॉ. विनीता कोठारी
कचरे की जांच बताई जा रही है लेकिन, यह नहीं बताया जा रहा है कि जो डेढ़ सौ टन गढ़ा हुआ कचरा है, उसमें क्या है। यह भी एक बड़ा सवाल है। इससे 60 से 80 किलोमीटर का दायरा प्रभावित हो सकता है। यह अभी नहीं तो बाद में नजर आ सकता है। वेस्ट को नष्ट करने के बाद जो प्रोडक्ट निकलेगा या बचेगा उस पर क्या स्टडी हुई, यह किसी ने नहीं बताया।
-डॉ. एसके नैय्यर
बता दें कि पीथमपुर में जहरीला कचरा जलाने को लेकर पहले से ही लोगों ने आंदोलन की धमकी दी थी। लेकिन मोहन सरकार ने इसे नजरअंदाज कर दिया। जिसका नतीजा पीथमपुर में आमजन के गुस्से की अलग ही तस्वीर सामने आई और मोहन सरकार को पीछे हटना पड़ा। सोमवार को मामले को लेकर मोहन सरकार हाई कोर्ट जाएगी। सरकार का कहना है कि अब कोर्ट के आदेश के बाद ही आगे कुछ एक्शन लिया जाएगा। फिलहाल पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरे को नष्ट करने का फैसला टाल दिया गया है।
Published on:
05 Jan 2025 03:36 pm
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