
Independence Day 2025 Union Carbide, bhopal gas tragedy (फोटो सोर्स : पत्रिका)
Independence Day 2025: आज देश को आजाद हुए 78 साल हो गए। इस बीच प्रदेश और देश ने कई कीर्तिमान रचे। लेकिन 41 साल पहले 2-3 दिसंबर 1984 की काली रात ने भोपाल(Bhopal Gas Tragedy)ही नहीं, पूरे प्रदेश को गहरा जख्म दिया। यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) प्लांट से रिसी गैस से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 3,787 लोगों की मौत हो गई। हजारों दिव्यांग हो गए। समय के साथ ये जख्म तो भर गए। 40 साल तक भोपाल के सीने पर पड़ा रहा यूका का जहरीला रासायनिक कचरा भी पीथमपुर में खाक हो गया, लेकिन प्रदेश को इस ‘दाग’ से आजादी नहीं मिली।
राजधानी में जिस जमीन पर ये हादसा हुआ, वहां दाग बाकी है। भूजल और हवा में जहर फैला है। विशेषज्ञों की मानें तो जहर तब खत्म होगा, जब यहां हरियाली लहलहाएगी। 85 एकड़ का यूका परिसर वीरान है। यहां प्रति एकड़ 300 पौधे के हिसाब से 25,500 बेहद आसानी से लगाए जा सकते हैं। लोगों की जान जिस जमीन पर गई, यहां एक पेड़ ही रोज चार लोगों की जरूरत का ऑक्सीजन देंगे। ऐसे में कुल 25,500 पेड़ रोज एक लाख से अधिक लोगों की जरूरत का ऑक्सीजन देंगे। पेड़ से भूजल सुधरेगा। दूषित मिट्टी से भी जहर खत्म होगा। ऐसा करने पर ही भोपाल को इस ‘दाग’ से आजादी मिलेगी।
जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की तरह ही यूका(Union Carbide) की जमीन पर म्यूजियम बनाने का प्रस्ताव गैस राहत विभाग ने बनाया है। त्रासदी की यादों से संजोए स्मारक में ऐसे हादसों से निपटने के उपायों की गैलरी भी होगी।
पर्यावरणविदें का कहना है, यूका की जमीन को डिजास्टर नॉलेज सेंटर के रूप में विकसित करना चाहिए। इससे गैस त्रासदी जैसे हादसों से निपटने की जानकारी मिलेगी और लोग भविष्य में ऐसी घटनाओं को समय रहते रोकने में सक्षम होंगे।
मामला कोर्ट में है। कोर्ट के फैसले के बाद ही यहां काम हो सकेगा। कचरे का निष्पादन भी कोर्ट के निर्णय पर ही हुआ है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी बृजेश कुमार और मैंने भी कोर्ट में बात रखी है। - स्वतंत्र कुमार, संचालक, भोपाल गैस राहत संचालनालय
पर्यावरणविदें का कहना है, जमीन को स्मृति वन के रूप में विकसित करना होगा। ताकि, हरे-भरे क्षेत्र के रूप में गैस कांड(Bhopal Gas Tragedy) यादगार बना रहे। पर्यावरणविद सुभाष सी. पांडे और सुनील दुबे ने बताया, ग्रीन एरिया बनाने से पेड़ जमीन की सफाई करेंगे और वातावरण शुद्ध होगा। सफेदा या चिनार के पेड़ मिट्टी से भारी धातुओं को जड़ों के जरिए अवशोषित करते हैं। यूकेलिप्ट्स व पॉपलर के पेड़ ट्राइक्लोरोएथिलीन जैसे रसायनों को तोड़ने में मदद करते हैं।
● सफेदा या चिनार: ये पेड़ मिट्टी से भारी धातुओं मसलन लेड, कैडमियम, आर्सेनिक को जड़ों के जरिए अवशोषित करते हैं।
● यूकेलिप्टस, पॉपलर: ये पेड़ ट्राइक्लोरोएथिलीन जैसे रसायनों को तोड़ने में मदद करते हैं।
● सूर्यमुखी, नीम-पीपल: ये पेड़ सतही तौर पर कारगर।
पेड़ों से मिट्टी की सफाई हो सकती है। ये प्रक्रिया फाइटोरिमेडिएशन कही जाती है। सतही तौर पर यह ज्यादा कारगर है। सनफ्लावर, चिनार, नीम समेत अन्य पेड़ का उपयोग हो सकता है।- प्रो. कीर्ति जैन, बॉटनी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज
यह जैविक प्रक्रिया है। इसमें पौधों (विशेष रूप से पेड़ों व अन्य वनस्पतियों) का उपयोग मिट्टी, पानी या हवा से प्रदूषकों, जैसे भारी धातुओं, कार्बनिक रसायनों व जहरीले पदार्थो को कम करने के लिए होता है। मैसूर के हेब्बल औद्योगिक क्षेत्र में भारी धातुओं से दूषित मिट्टी को साफ करने इंडियन मस्टर्ड (सरसों) पर शोध हो चुके हैं। इस तकनीक भोपाल(Bhopal Gas Tragedy) में मिट्टी सुधारने में मदद करेगी।
भोपाल ग्रुप ऑफ इन्फॉर्मेशन एवं एक्शन की रचना ढींगरा का कहना है, सिर्फ पेड़ सफाई नहीं कर सकते। जमीन में 200 फीट नीचे तक घातक रसायन है। विदेशों में नई तकनीक पर काम हो रहा है। यह हमें अपनानी होगी।
Published on:
15 Aug 2025 09:34 am
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