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पश्चिम बंगाल के नतीजों से विजयवर्गीय के सियासी सफर पर आंच

पश्चिम बंगाल और असम के चुनावी नतीजों का मध्यप्रदेश के नेताओं पर पड़ा असर, असम ने बढ़ाया तोमर का कद

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भोपाल .पश्चिम बंगाल में भाजपा महा सचिव कैलाश विजयवर्गोंय को पांच साल की मेहकत सत्ता का सपना साकार नहीं कर सके। वहां के चुनावी नतीजों ने भाजपा और विजयवर्गीय को बड़ा हटका दिया है। वही असम में केंद्रोय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की चुपचाप काम करने की रणनीति और प्रबंधन कारगर साबित हुआ है।

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फिलहाल मौजूदा भाजपा नेताओं में तोमर का कद असम की जीत के बाद बढ़ा हैं। चुनावी समर में असम ही ऐसा राज्य है, जहां भाजपा को सीधे तौर पर जीत हासिल हुई है। इसके उलट विजयवर्गीय की सियासी पारी मजधार में आ गई है। मध्यप्रदेश केबिनेट में उनका समर्थक एक भी विधायक मंत्री नहीं है। माना जा रहा था कि पश्चिम बंगाल के सकारात्मक नतीजों के बाद उनके किसी समर्थक विधायक को मंत्री मंडल में जगह मिलती, लेकिन अब यह दूर की कौडी नजर आता है।

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कैलाश का भविष्य संघर्ष में
जून 2015 में कैलाश विजयवर्गीय को अमित शाह ने महा सचिव बनाया था। इसके बाद विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल का प्रभार दिया गया। इस बीच हरियाणा की जिम्मेदारी भी उन्हें दी। वहां अच्छे प्रदर्शन के बाद विजयवर्गीय ने बंगाल में पूरा समय दिया। करीब 5 साल से ज्यादा वे जद्दोजहद करते रहे, लेकिन चुनावी नतीजों ने उनकी रणनीति को असफल साबित कर दिया। आगे विजयवर्गीय के लिए सियामी डगर काटों भरी है। कहा जा रहा हैं कि विजयवर्गीय को संभवत: अभी बंगाल में विपक्ष की राजनीति और करनी होगी। इसलिए मध्य प्रदेश से उनकी दूरी बरकरार रह सकती हैं।

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असम ने बढ़ाया तोमर का कद
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की रणनीति असम के चुनाव में काफी हद तक कारगर नजर आती है। हालांकि जहां पहले से भाजपा की ही सत्ता थी, इसका फायदा भी पार्टी को मिला है। उस पर तोमर के प्रबंधन व रणनीतिक क्षमता ने भो कुछ असर दिखाया है | खाम यह है कि एक ओर जहां पश्चिय बंगाल में भाजपा ने नेताओं को फौज उतारी थी, तो असम में वरिष्ठ नेताओं में तोमर अकेले किला लड़ा रहे थे। इससे केंद्रीय सियासत से लेकर मध्य प्रदेश में भी तोमर का सियामी कद बढ़ा है। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में तोमर को इसका सीधे तौर पर फायदा मिलेगा।

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फेल रहे आधा दर्जन नेता
पश्चिम बंगाल में हिंदुवादी एजेंडा और मध्यप्रदेश के करीब आधा दर्जन नेता भी फेल साबित हुए। मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी बंगाल में जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने सात- आठ दौरे किए, लेकिन उनका चुनावी प्रबंधन भी काम नहीं आया। इसी तरह मंत्री विश्वास सारंग और अरविंद भदौरिया भी कुछ सीटों के प्रभारी रहे। इस दोनों के दौरे भी काम नहीं आए। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की भी पश्चिम बंगाल चुनाव में जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन नतीजे पक्ष में नहीं आए। थावरखंद गहलोत को भी कुछ सीटों पर प्रभार दिया था, पर वे भी बेअसर रहे।