
युद्धपोतों की लगी प्रदर्शनी, जनता ने जमकर निहारा, यहां जानें Indian Navy का साहसिक इतिहास
(पत्रिका ब्यूरो,भुवनेश्वर): नौ सेना के युद्ध पराक्रम से जनता को अवगत कराने के लिए ओडिशा के जगतसिंह पुर जिला पारादीप पोर्ट में दो युद्धपोत जनता दर्शन के लिए रखे गए हैं। भारी संख्या में लोगों ने इन युद्ध पोतों को देखा। हालांकि नौ सेना दिवस 4 दिसंबर को है लेकिन दोनों युद्धपोत दो दिन (25 नवंबर तक) के लिए रखे गए हैं। इन्हें अन्य पोर्टों पर भी रखा जाएगा। पहला आईएनएस राना तथा दूसरा आईएनएस घरियाल। रविवार को दोनों विशाखापत्तनम पोर्ट से भेजे गए। युद्धपोतों को देखने के लिए दर्शकों को सिक्योरिटी चेक के बाद गोपबंधु स्टेडियम लाया जाएगा। वहां से निषिद्ध स्थान तक ले जाया जाएगा।
आईएनएस राना 1982 से भारतीय नौ सेना में है जबकि घरियाल नौ सेना का सबसे लंबा युद्धपोत है। जनता को संदेश देना है कि किसी भी देश की समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए जहाजों यानी पोतों की आवश्यकता होती जो नवीनतम तकनीक और विध्वसंक क्षमता से लैस होते हैं। बताया गया है कि भारतीय नौ सेना के पास आईएनएस निर्भीक, आईएनएस गोदावरी, आईएनएस विक्रांत मुख्य युद्ध पोत हैं। ये विमान वाहक के साथ ही मिसाइल से भी लैस किए जा सकते हैं। इन्हीं युद्ध पोतों की शक्ति के कारण भारतीय नौ सेना विश्व में मजबूत नौ सेनाओं में से एक है। इसकी शुरुआत 1612 में हुई थी तब ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्धपोतों का पहला बेड़ा सूरत बंदरगाह पर पहुंचा था। पहले विश्व युद्ध में इसका नाम रॉयल इंडियन मरीन रखा गया था। और 1934 रॉयल भारतीय नौ सेना की स्थापना की गई थी। इसका स्वर्णिम इतिहास 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ा है। 26 जनवरी 1950 से रॉयल शब्द को भारत ने त्याग दिया।
आईएनएस 'विक्रांत' भारतीय नौसेना पहला युद्धपोतक विमान था, जिसे 1961 में सेना में शामिल किया गया था। बाद में आईएनएस 'विराट' को 1986 में शामिल किया गया, जो भारत का दूसरा विमानवाही पोत बन गया। आज भारतीय नौसेना के पास एक बेड़े में पेट्रोल चालित पनडुब्बियां, विध्वंसक युद्धपोत, फ्रिगेट जहाज, कॉर्वेट जहाज, प्रशिक्षण पोत, महासागरीय एवं तटीय सुरंग मार्जक पोत (माइनस्वीपर) और अन्य कई प्रकार के पोत हैं। इसके अलावा भारतीय नौसेना की उड्डयन सेवा कोच्चि में आईएनएस 'गरुड़' के शामिल होने के साथ शुरू हुई। इसके बाद कोयम्बटूर में जेट विमानों की मरम्मत व रखरखाव के लिए आईएनएस 'हंस' को शामिल किया गया।
भारतीय नौसेना ने जल सीमा में कई बड़ी कार्रवाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें प्रमुख है जब 1961 में नौसेना ने गोवा को पुर्तगालियों से स्वतंत्र करने में थल सेना की मदद की। इसके अलावा 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तो नौसेना ने अपनी उपयोगिता साबित की। भारतीय नौसेना ने देश की सीमा रक्षा के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ द्धारा शांति कायम करने की विभिन्न कार्यवाहियों में भारतीय थल सेना सहित भाग लिया। सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाई इसी का एक हिस्सा थी।
देश के अपने स्वयं के पोत निर्माण की दिशा में आरंभिक कदम उठाते हुए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बंबई (मुंबई) के मजगांव बंदरगाह को 1960 में और कलकत्ता (कोलकाता) के गार्डन रीच वर्कशॉप (जीआरएसई) को अपने अधिकार में लिया। वर्तमान में भारतीय नौसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौसेना अधिकारी 'एडमिरल' के नियंत्रण में होता है।भारतीय नौ सेना तीन क्षेत्रों की कमान (पश्चिम में मुंबई, पूर्व में विशाखापत्तनम और दक्षिण में कोच्चि) के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्धारा किया जाता है।
Published on:
24 Nov 2019 07:32 pm
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