
Pushkarna Sava
Pushkarna Sava in Bikaner : देश-दुनिया में प्रवास कर रहे सैकड़ों पुष्करणा ब्राह्मण परिवार रविवार को बीकानेर में जुटे। इस दौरान शादी समारोह में मितव्ययता और मिट्टी से जुड़ाव के साथ राजस्थानी लोक संस्कृति के रंग देखने को मिले। पुष्करणा सावा के तहत बीकानेर के परकोटे को घोषित शादी के शामियाने के नीचे ढाई सौ से अधिक जोड़े परिणय सूत्र में बंधे। शादी समारोह में शामिल होने वाले परिवारों के साथ दुनियाभर से पर्यटक भी इस अनूठे आयोजन के साक्षी बने। दो साल के अंतराल से होने वाले इस सावे की तिथि करीब चार महीने पहले दीपावली पर घोषित की गई थी। इसी के साथ पुष्करणा सामूहिक सावा की तैयारियां शुरू हुई। इस अनूठे सावे से सामाजिक संदेश और परम्परा-संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
ऐसे में राज्य सरकार भी शादी वाले प्रत्येक परिवार को 25-25 हजार रुपए का प्रोत्साहन देती है। रविवार को बने दूल्हे विष्णु रूपी और दूल्हन लक्ष्मी रूपी समझी जाती हैं। तड़क-भड़क वाली भव्य शादियों की जगह इस सावे में सब दूल्हे एक ही तरह के वस्त्र पहने दिखे। सूट-शेरवानी की जगह दूल्हा विष्णु रूप में खड़किया पाग और पिताम्बर वस्त्र पहने नजर आए। बारात में न बैण्ड-बाजा थे और न ही घोड़ी-रथ और डीजे। बिना जूते-चप्पल नंगे पांव ही दूल्हे परिवारजन सहित बारात लेकर पहुंचे। शंख ध्वनि और झालर की झंकार गूंजती रही।
विष्णु रूपी दूल्हाें के साथ बारात भी पूरे परकोटे में निकली। सिर पर खिड़किया पाग, ललाट पर पेवड़ी व कुमकुम अक्षत तिलक, गुलाबी रंग का बनियान, पीतांबर धारण किए दूल्हे आकर्षण के केन्द्र रहे। बारात को देखने शहर के चौक-चौराहों पर लोग जुटे रहे। पुष्पवर्षा कर दूल्हा व बारातियों का स्वागत किया गया। कई जगह संस्थाओं की ओर से दूल्हों को सम्मान किया गया। बैंड-बाजा और डीजे की जगह वैवाहिक मांगलिक गीतों की गूंज रही।
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समाज के 25 से अधिक दूल्हा-दुल्हनें देश के विभिन्न महानगरों से बीकानेर शादी करने आए। श्री पुष्टिकर सावा समिति के सचिव वीरेन्द्र किराडू के अनुसार कोलकाता, बेंगलूरु, महाराष्ट्र, दिल्ली, चेन्नई के साथ जयपुर, जोधपुर, श्रीगंगानगर आदि स्थानों से परिवार पहुंचे।
सावे से 5 सीख
1- मितव्ययता-सादगी : बारात में न बैंडबाजा, ना घोड़ी-रथ।
2- जड़ों से जुड़ाव : देश-दुनिया में रह रहे समाज के युवक-युवतियां बीकानेर आकर करते हैं विवाह।
3- परम्परा संरक्षण : कई साल से चले आ रहे वैवाहिक रीतिरिवाज, मांगलिक गीतों को संरक्षित रखकर अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करना।
4- सामूहिकता : सामाजिक एकता और सामूहिकता का परिचायक।
5- समरसता: वैवाहिक कार्यक्रमों और रीतिरिवाजों में सभी समाजों की सहभागिता।
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Updated on:
19 Feb 2024 09:31 am
Published on:
19 Feb 2024 09:29 am
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