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तलाक के केस में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कहा – मानसिक रोग साबित करने विशेषज्ञ की पुष्टि जरूरी… पति की याचिका खारिज

Bilaspur High Court: पत्नी के मानसिक रोगी होने का हवाला देकर पति द्वारा तलाक के लिए दायर याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

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हाईकोर्ट (Photo Patrika)

हाईकोर्ट (Photo Patrika)

Bilaspur High Court: पत्नी के मानसिक रोगी होने का हवाला देकर पति द्वारा तलाक के लिए दायर याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पति या पत्नी की मानसिक बीमारी को मनोरोग विशेषज्ञ के द्वारा साबित करना जरूरी है। सिर्फ डॉक्टर की पर्ची के आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता।

कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराया। पति या पत्नी की मानसिक बीमारी के आधार पर किसी भी पक्ष द्वारा तलाक के लिए प्रस्तुत मामलों में हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आदेश दिया कि मानसिक बीमारी का दावा करने वाले याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि वह किस आधार पर इस तरह के गंभीर आरोप लगा रहा है।

पत्नी ने कहा- पति के आरोप झूठे

याचिकाकर्ता पति और पत्नी का मार्च, 2008 को विवाह संपन्न हुआ था। उनकी दो बेटियां है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि विवाह से पहले ससुराल वालों ने पत्नी को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बताया था। विवाह के बाद उसका व्यवहार असामान्य होने लगा। चिकित्सकीय जांच में पता चला कि वह एक गंभीर मानसिक बीमारी, सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थी। जबकि पत्नी ने कोर्ट को बताया कि अक्टूबर, 2018 के आसपास ससुराल छोड़कर चली गई और वापस नहीं लौटी। इसलिए पति ने झूठे आरोप लगाकर शादी रद्द करने की याचिका दायर की थी।

आरोप साबित नहीं

पारिवारिक न्यायालय सुनवाई के बाद पाया कि पति यह साबित नहीं कर पाया था कि उसकी पत्नी जन्म से ही सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थी। कोर्ट ने पाया कि पति किसी एक्सपर्ट की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर पाया। सिर्फ डॉक्टरी पर्चा या दवाओं का नुस्खा प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं है।

विवाह विच्छेद के लिए लगाई याचिका

पति ने अपनी पत्नी को मानसिक रोगी बताते हुए विवाह विच्छेद की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे, जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले को यथावत रखते हुए याचिका खारिज कर दी।

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा कि मानसिक अक्षमता के आधार पर विवाह को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका में याचिकाकर्ता का यह दायित्व है कि वह स्पष्ट और ठोस सबूतों के माध्यम से साबित करे कि पत्नी मानसिक विकार से पीड़ित थी और संतानोत्पत्ति के लिए अयोग्य थी। इसके लिए मनोरोग चिकित्सा विशेषज्ञ की गवाही और पुष्टि आवश्यक है।