
World Soil Day 2023: हर भारतीय का मिट्टी से गहरा नाता है। कुछ इस मिट्टी को अपनी मां कहते हैं तो वहीं कुछ के लिए मिट्टी देश प्रेम को इंगित करती है। बैरिस्टर छेदीलाल कृषि विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक प्रमेन्द्र केसरी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की मिट्टी किसी सोने से कम नहीं है। आज छत्तीसगढ़ के किसान जैविक खेती में भी अपना रुझान दिखा रहे है जिससे खेतों की मिट्टी और भी अच्छी होती जा रही है। आज राज्य भर में धान के साथ-साथ सेब, नारियल, हल्दी, काजू, मिलेटस की भी खेती को बढ़ावा मिल रहा है।
किसान को एक तरफ जहां कृषि से जुड़े रिसर्च ने उत्पादन क्षमता बढ़ने में मदद की है, वहीं छत्तीसगढ़ की माटी ने सभी प्रयोगों को सहते हुए किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फल दिया है।
सामान्य शब्दों में समझा जाए तो मिट्टी धरातल की ऊपरी सतह को कहा जाता है। जिसका निर्माण रेत, क्ले, ह्यूमस (वनस्पति अंश) एवं अन्य खनिजों से होता है। मिट्टी हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह भोजन, कपड़े, आश्रय और दवा समेत जीवन के चार प्रमुख साधनों का स्रोत है। इसलिए इसके संरक्षण पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।
मॉडर्न डे का एनर्जी डाइट है मिलेट्स
छत्तीसगढ़ की मिट्टी मिलेट्स जैसे रागी, कोदो और कुटकी आदि के पैदावार के लिए उपयुक्त है। किसान अब इसकी खेती करना काफी पसंद कर रहे हैं। कृषि युग के सोनू मिश्रा बताते हैं कि अब छत्तीसगढ़ के मिलेट्स की देश के साथ-साथ विदेशों में भी डिमांड है। लोग में स्वास्थ के प्रति जागरुकता बढ़ी है, जिसके चलते अब शहरवासी न्यूट्रिशन वाले भोजन की तरफ लौट रहे हैं। ऐसे में शहरवासी कोदू, कुटकी , रागी जैसे पोषण से भरे अनाज लेना पसंद कर रहे हैं।
सेब, नारियल के लिए उपयुक्त है मिट्टी
उत्तरी छत्तीसगढ़ के प्रतापपुर के किसान मुकेश गर्ग ने कृषि एवं बागवानी विभाग के सहयोग से सेब की बागवानी चालू करते हुए अपनी जमीन पर सेब की अलग-अलग वैरायटी के 100 से भी अधिक पौधे लगाए। अब ये पौधे परिपक्व हो गए हैं और इन पर फल आने शुरू हो गए हैं। इसी तरह दक्षिण छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में नारियल की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। नारियल विकास बोर्ड के सहायक निरीक्षक ईश्वर चंद कटियार बताते हैं कि नारियल की खेती को बढ़ावा देने के लिए हर साल किसानों को लाखों पौधे मुफ्त बांटे जाते हैं।
जशपुर का काजू लुभा रहा लोगों को...
जशपुर के काजू लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। जशपुर काजू के निर्देशक राजेश जगत बताते हैं कि जशपुर के दुलदुला क्षेत्र के किसानों द्वारा काजू की खेती की जाती है। इसकी ट्रेनिंग नाबार्ड द्वारा नासिक में दी गई थी। 2015 से हमारी कंपनी रेजिस्टर्ड है। व्यवसाय शुरू करने पर नाबार्ड द्वारा 5 लाख की आर्थिक मदद भी मुहैया कराई गई थी। आज सहयोग ग्रीन प्लस आदिवासी सहकारी समिति के माध्यम से हम तकरीबन 400 से 500 किलो कच्चा काजू खरीदते हैंजिससे प्रोसेस करके बेचने पर 60 से 65 लाख की सालाना आमदनी हो रही है।
Published on:
05 Dec 2023 01:37 pm
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