script

जब फिल्म की हीरोइन ढूंढने रेड लाइट एरिया पहुंच गए थे Dadasaheb Phalke, भारतीय सिनेमा के कहे जाते थे पितामह

Published: Apr 30, 2022 10:44:35 am

Submitted by:

Vandana Saini

आज भी कई सिनेमा प्रेमी ऐसे होंगे जो दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) के बारे में नहीं जाने होंगे कि वो थे. बता दें कि उन्हें हिंदी सिनेमा का पितमाह कहा जाता था.

जब फिल्म की हीरोइन ढूंढने रेड लाइट एरिया पहुंच गए थे Dadasaheb Phalke, भारतीय सिनेमा के कहे जाते थे पितामह

जब फिल्म की हीरोइन ढूंढने रेड लाइट एरिया पहुंच गए थे Dadasaheb Phalke, भारतीय सिनेमा के कहे जाते थे पितामह

ज्यादातर सिनेमा प्रेमी बॉलीवुड की दुनिया में ‘दादासाहब फालके’ (Dadasaheb Phalke) का नाम केवल एक अवॉर्ड के तौर पर जानते होंगे. इंडस्ट्री में बहुत से निर्देशक, निर्माता और अभिनेता है, जिनको इस अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है, लेकिन आप हम आपको बताएंगे कि वो असल दुनिया में क्या थे. जी हां, दादासाहब फालके को भारतीय सिनेमा के पितामह के रुप में जाना जाता था. आज उनकी जयंती हैं, जो हर साल 30 अप्रैल को मनाई जाती है.
उनका का जन्म 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र के नासिक में एक मराठी परिवार में हुआ था. दादासाहब फालके का असली नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था. दादा साहेब एक सफल निर्देशक होने के साथ-साथ एक मशहूर निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे. उन्होंने कई फिल्मों को निर्देशित करने के साथ-साथ उनको यागदार कहानियां भी हैं. खास बात ये है कि दादा साहब ने ना केवल हिंदी सिनेमा को बनाने का काम किया, बल्कि बॉलीवुड को पहली हिंदी फिल्म भी दी थी.
यह भी पढ़ें

जब Ranveer Singh ने Ranbir Kapoor को इस बेबाक एक्ट्रेस को डेट करने की दी थी सलाह, नाम सुन उड़ जाएंगे होश

dadasaheb_phalke_birth_anniversary_1.jpg

उन्होंने ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ नाम की एक फिल्म देखी, जिसको देखने के बाद उनकी दुनिया ही बदल गई. थियेटर में बैठकर इस फिल्म के तालियां बजाते दादा साहब ने ये तय कर लिया कि वो वो भी ईसा मसीह की तरह भारतीय धार्मिक और मिथकीय चरित्रों को रूपहले पर्दे पर जीवित करेंगे. अपने इस काम को पूरा करने के लिए दादा साहब ने सबसे पहले तो अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी. वो भारत सरकार के पुरातत्व विभाग में फोटोग्राफर के तौर पर काम किया करते थे.
dadasaheb_phalke_birth_anniversary_2.jpg

खास बात ये है कि वो एक पेशेवर फोटोग्राफर थे, जिनको इंडस्ट्री की नींव रखने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. वो पहले गुजरात के गोधरा शहर में रहे, लेकिन अपनी पहली पत्नी और एक बच्चे की मौत के बाद उन्होंने गोधरा छोड़ दिया. दादासाहब फालके ने केवल 20-25 हजार की लागत से फिल्म इंडस्ट्री की शुरुआत की थी. उस वक्त इतनी रकम भी एक बड़ी रकम होती थी, लेकिन विदेशी फिल्मों की तुलना में ये रकम काफी छोटी थी और इसके लिए उन्हें अपने एक दोस्त से कर्ज लेना पड़ा था और अपनी संपत्ति एक साहूकार के पास गिरवी रखनी पड़ी थी.
dadasaheb_phalke_birth_anniversary_3.jpg

जब दादा साहब ने इस काम की शुरूआत की थी तब देश की ज्यादातर महिलाएं फिल्मों में काम नहीं करना चाहती थी. उस दौर में पुरुष कलाकार ही नायिकाओं का किरदार निभाया करते थे, तब दादासाहब फालके ने फिल्म की लिए एक महिला कलाकार की खोज शुरू की और इसके लिए वो रेड लाइट एरिया में भी पहुंच गए, लेकिन वहां भी कोई कम पैसे में फिल्मों में काम करने के लिए तैयार नहीं हुई. हालांकि, बाद में फिल्मों में काम करने वाली पहली दो महिलाएं फाल्के की ही फिल्म मोहिनी भष्मासुर से भारतीय सिनेमा में आई थीं. इन दोनों पहली एक्ट्रेस का नाम था दुर्गा गोखले और कमला गोखले.
dadasaheb_phalke_stamp.jpg

बता दें कि अपने 19 सालों के करियर में दादासाहब फालके ने कुल 95 फिल्में और 26 लघु फिल्में बनाई थीं. ‘गंगावतरण’ उनकी आखिरी फिल्म थी, जो साल 1937 में आई थी. ये उनकी पहली और आखिरी बोलती फिल्म भी थी. फिल्म असफल रही थी, लेकिन इंडस्ट्री का नया जीवन शुरू कर गई. पहली फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918) और कालिया मर्दन (1919) शामिल हैं, उनकी आखिरी मूक मूवी सेतुबंधन थी और आखिरी बोलती फिल्म गंगावतरण जैसी बेहतरीन फिल्में दी थीं.

ट्रेंडिंग वीडियो