
Former Governor raises questions on RBI for the 1st time
नई दिल्ली।भारतीय रिजर्व बैंक ( reserve bank of india ) के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ( Former rbi Governor Urjit Patel ) ने 2014 से पहले इंडस्ट्री में ढीली उधार प्रथाओं की अनदेखी करने और सुस्त नियामक निगरानी के लिए आरबीआई ( RBI ) और यूपीए सरकार ( UPA Govt ) पर तीखा हमला किया है। जिसकी वजह से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां ( Non-Performing Assets ) यानी एनपीए ( NPA ) में इजाफा देखने को मिला है। जिस कारण से मौजूदा समय में बैंकिंग सिस्टम ( Banking System ) को नुकसान उठाना पड़ रहा है। आपको बता दें कि उर्जित पटेल 2016 से लेकर 2018 के बीच आरबीआई गवर्नर रहे थे। उन्होंने हाल के दिनों में अपने आर्टिकल में बढ़ते एनपीए को लेकर विश्लेषण तीन प्रमुख बिंदुओं को उठाया है। खास बात तो ये है कि देश के किसी पूर्व आरबीआई गवर्नर की ओर से पहली बार रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठाए।
उर्जित पटेल ने उठाए यूपीए सरकार और आरबीआई पर सवाल
उर्जित पटेल की ओर से अपने आर्टिकल में उठाया पहला बिंदु है आरबीआई का फेल होना। उन्होंने कहा कि 2014 तक रिजर्व बैंक की ओर से बैंकिंग सिस्टम में बढ़ते एनपीए को मॉनिटर करने और उसे कंट्रोल करने में पूरी तरह से फेल रहा। उन्होंने कहा कि उस वक्त आरबीआई बैंकिंग लेवल पर बढ़ते स्ट्रेस को बता पाने में पूरी तरह से विफल रहा। वहीं दूसरे बिंदू पर उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार ने सरकारी बैंकों में जोखिम नियंत्रण पर सवाल नहीं उठाया, क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण लाभांश प्राप्त हो रहे थे। वहीं कई सरकारी बैंकों में वरिष्ठ प्रबंधन नहीं था। वहीं उन्होंने अपने तीसरे बिंदु में कहा कि बैंकों ने कंपनियों को उधार देते समय आवश्यक उचित नियमों का पालन नहीं किया। अक्सर, उधार देने के सुनहरे नियमों की अनदेखी की गई। बैंकों की ओर से जानबूझकर बैड लोन में निवेश करने का जोखिम उठाया।
पहली बार किसी पूर्व आरबीआई गवर्नर ने उठाए सवाल
उर्जित पटेल की ओर से जो भी कारण पेश किए गए वो कोई नए नहीं है। एनपीए को लेकर पहले भी कई तरह के कारणों को बताया जा चुका है जो उर्जित पटेल द्वारा इंगित कारणों से काफी मिलते जुलते हैं। नया तो यह है कि किसी पूर्व आरबीआई गवर्नर की ओर से आरबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। जिसकी वजह से बैंकिंग सेक्टर में बैड लोन का इजाफा देखने को मिला है। पटेल ने कहा कि उस वक्त सरकारी बैंक खराब प्रदर्शन वाली परिसंपत्तियों की पहचान करने में पूरी तरह से अक्षम रहे। वहीं दूसरी ओर नियामक द्वारा ऐसी कोई रिपोर्ट सामने नहीं रखी, जिसने यह जानकारी दी हो कि बैंकों द्वारा जरुरत से ज्यादा कर्ज दिया जा रहा था।
देरी उठाए सख्त कदम
आरबीआई के पूर्व गवर्नर की ओर आई यह प्रतिक्रिया विशेष रूप से मौजूदा समय के लिए काफी अहम है, जब जब बैंकिंग सिस्टम में एनपीए की दूसरी लहर देखने को मिल रही है। 2014-15 में ही आरबीआई ने स्ट्रेस्ड एसेट्स की शुरुआती पहचान पर ध्यान देना शुरू किया और एसेट क्वालिटी रिव्यू के लिए कदम उठाए। आलोचना तो इस बात की हो रही है कि आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम के इस तनाव की पहचान करने और सख्त कदम उठाने में काफी देर की।
तेजी से बढ़ा बैड लोन या एनपीए
बैंक एनपीए चार साल से भी कम समय में 3 लाख करोड़ रुपए से 9 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। एनपीए की वजह से बैंकों पर लोन ऋण राइट-ऑफ का भी बोझ था। आरबीआई के नियमों के अनुसार बैंक बैड लोन से संभावित नुकसान को कवर करने के लिए अलग से पैसा रखने की जरूरत है ऐसा बैंकों में प्रावधान है। ऑल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार 2001 और 2019 के बीच पब्लिक सेक्टर बैंकों की ओर से 7 लाख करोड़ रुपए के ऋण को राइट ऑफ यानी अपनी बुक से हटा दिया।
मोराटोरियम के बाद बढ़ सकता है बैड लोन
मौजूदा समय में भी बैंक पिछले बैड लोन से जंग लड़ रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण और ज्यादा बुरे हालात होने के आसार हैं। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार, बैंक एनपीए में मोराटोरियम के बाद कुल लोन का 14 फीसदी एनपीए में जा सकता है। वहीं दूसरी ओर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी चेतावनी दी थी कि अगले छह महीनों में एनपीए में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। ऐसे में सरकार और आरबीआई और तमाम फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस को अतीत से गलतियों से सीखना काफी जरूरी है।
Updated on:
20 Jul 2020 05:27 pm
Published on:
20 Jul 2020 05:25 pm
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