7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

डोनाल्ड ट्रंप की बढ़ाई गई नई H-1B वीज़ा फीस क्या भारत से ज़्यादा अमेरिकी इकोनॉमी पर असर डालेगी ?

H-1B visa fee impact:डोनाल्ड ट्रंप की H-1B वीज़ा फीस बढ़ाने से भारतीय कुशल श्रमिकों को असर होगा, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

2 min read
Google source verification

भारत

image

MI Zahir

Sep 23, 2025

Donald Trump

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Photo: IANS)

H-1B visa fee impact: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने हाल ही में H-1B वीज़ा (H-1B Visa Fee) पर एक बड़ा कदम उठाते हुए नए आवेदनों के लिए 1,00,000 डॉलर का भारी शुल्क लगाने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार यह फैसला अमेरिका में विदेशी कुशल श्रमिकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह बदल सकता है। इस नये नियम से न केवल भारत जैसे देशों के लिए, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़े बदलाव (US Economy Impact) होने की संभावना है। जानकारी के अनुसार सिलिकॉन वैली की बड़ी तकनीकी कंपनियां, जिनमें अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल व मेटा जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं, विदेशों से खासकर भारत से कुशल इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को H-1B वीज़ा के जरिये काम पर रखती हैं। ट्रंप के इस फैसले(Trump Visa Policy) के बाद कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को विदेश से लाने की लागत (Skilled Worker Immigration) बढ़ जाने से परेशान हैं। इस वजह से कई कंपनियां नई भर्ती रोक सकती हैं या कर्मचारियों को विदेश में काम देने पर ज्यादा निर्भर हो सकती हैं।

भारतीय कर्मचारियों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस कदम से सबसे ज्यादा असर अमेरिकी आर्थिक विकास पर पड़ेगा, न कि केवल भारत जैसे देशों पर असर होगा। बेरेनबर्ग बैंक के अर्थशास्त्री अताकान बाकिस्कन का कहना है कि इस तरह की महंगी फीस से विदेशी प्रतिभाओं को अमेरिका लाना मुश्किल हो जाएगा, जिससे उत्पादकता और नवाचार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, उन्होंने इसे “विकास विरोधी” नीति बताया है, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी धीमी पड़ सकती है।

कंपनियों को होंगी भर्ती में चुनौतियां

अन्य विश्लेषकों के मुताबिक, जबकि बड़ी टेक कंपनियों के पास वीज़ा शुल्क वहन करने के लिए संसाधन हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे अन्य क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियां बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकती हैं। ये क्षेत्र भी विदेशों से कुशल कर्मचारियों पर निर्भर हैं, जहां नई नीति के बाद भर्ती मुश्किल हो सकती है।

भारत पर क्या असर होगा ?

भारत में भी इस निर्णय का असर देखा जाएगा, क्योंकि पिछले वर्षों में H-1B वीज़ा के 70% से अधिक धारक भारतीय थे। यह नीति भारतीय आईटी कंपनियों और इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में इसका प्रभाव भारत से कहीं ज्यादा गहरा होगा, क्योंकि कंपनियां ऑनशोर परियोजनाओं को कम कर सकती हैं और विदेश में काम का ट्रेंड बढ़ सकता है।

कंपनियां कैसे तैयारी कर रही हैं ?

भारतीय कंपनियां जैसे टीसीएस व इंफोसिस आदि इस बदलाव के मद्देनजर अपने स्थानीय स्टाफ को बढ़ाने और कुछ काम विदेश में शिफ्ट करने की योजना बना रही हैं। वहीं, स्टाफिंग एजेंसियां अमेरिकी कंपनियों से शुल्क बढ़ाने की उम्मीद कर रही हैं, ताकि नई लागतों को कवर किया जा सके।

क्या है व्हाइट हाउस की स्थिति ?

व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि यह शुल्क केवल नए H-1B आवेदनकर्ताओं पर एकमुश्त लागू होगा, न कि मौजूदा कर्मचारियों पर। साथ ही, कुछ मामलों में राष्ट्रीय हित को देखते हुए इस शुल्क में छूट भी दी जा सकती है। यह कदम ट्रंप प्रशासन की नीति का हिस्सा है, जिसका मकसद अमेरिकी श्रमिकों को अधिक अवसर देना है।

विदेशी कुशल श्रमिकों की संख्या कम हो सकती है

बहरहाल डोनाल्ड ट्रंप की $100,000 H-1B वीज़ा शुल्क योजना से विदेशी कुशल श्रमिकों की संख्या कम कर सकती है, लेकिन इससे अमेरिकी कंपनियों को भर्ती में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस नीति से भारतीय प्रवासियों पर असर तो पड़ेगा, लेकिन अमेरिकी आर्थिक विकास पर इसका असर कहीं ज्यादा गंभीर होगा।