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क्या 22 सितंबर के बाद भी सस्ती नहीं होंगी गाड़ियां? GST में इस पेच ने डीलर्स को उलझन में डाला

GST Compensation Cess: ऑटो डीलर्स के पास भारी मात्रा में ऐसी इन्वेंट्री है, जिस पर वे पहले से ही सेस का पेमेंट कर चुके हैं। अब इस स्टॉक पर उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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GST Compensation Cess

22 सितंबर से जीएसटी रेट कट लागू हो जाएगा। (PC: Gemini)

जीएसटी दर में कटौती ने ऑटो इंडस्ट्री में शॉर्ट टर्म के लिए उथल-पुथल मचा दी है। जो खबर इंडस्ट्री के लिए जबरदस्त उत्साह वाली होनी चाहिए थी, अब उसी वजह से हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। 22 सितंबर से जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर (Compensation Cess) खत्म हो जाएगा। यह ऑटोमोबाइल सेक्टर में डिमांड और प्रॉफिट के लिए लॉन्ग टर्म के लिहाज से पॉजिटिव कदम माना जा रहा है। हालांकि, इसका तात्कालिक परिणाम काफी बुरा साबित हो सकता है। डीलर्स ने मौजूदा स्टॉक पर पहले ही सेस का पेमेंट कर दिया है, लेकिन वे इस रकम को ग्राहकों से वसूल नहीं कर पा रहे। अब सवाल यह है कि क्या डीलर्स 22 सितंबर से इस इन्वेंट्री को नुकसान उठाकर बेचेंगे? अगर नहीं, तो क्या ग्राहकों को जीएसटी रेट कट का पूरा फायदा नहीं मिलेगा?

2500 करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका

ऑटो डीलर्स इस समय मुश्किल में है। बिक्री तेजी से गिर गई है। लोग खरीदारी के लिए जीएसटी दर में कटौती के लागू होने का इंतजार कर रहे हैं। उधर डीलर सेस वाले व्हीकल्स की नई खेप लेने से मना कर रहे हैं। दांव पर करीब 1.5 लाख बड़ी पैसेंजर गाड़ियां हैं, जो स्टॉक में पड़ी हुई हैं। इनमें से अधिकांश पर 15% से 22% सेस लगा है। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के अनुसार, इस स्टॉक पर डीलर्स को 2500 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।

जितना बड़ा व्हीकल, उतना बड़ा नुकसान

जितना बड़ा व्हीकल है, उतना ही बड़ा नुकसान है। टोयोटो फॉर्च्यूनर जिसकी कीमत 52 लाख रुपये है, इस पर करीब 7.5 लाख का सेस पहले ही सरकारी खजाने में जमा हो चुका है। इस पैसे को वापस रिकवर करना असंभव लग रहा है।

उधर ऑटोमोबाइल कंपनियों ने डिस्पैच रोक दिये हैं। टैक्स स्ट्रक्चर में जटिलता के चलते ऐसा हो रहा है। डीलर्स जीएसटी और सेस का भुगतान मैन्यूफैक्चरर्स को अपफ्रंट करते हैं। मैन्यूफैक्चरर्स यह भुगतान सरकार को कर देते हैं। जब गाड़ी बिकती है, तो यह पैसा ग्राहकों से रिकवर किया जाता है। बड़ी गाड़ियों पर जीएसटी 22 सितंबर से 28 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी हो जाएगा। इसे एडजस्ट तो किया जा सकता है, लेकिन सेस को नहीं किया जा सकता। इससे डीलर्स को इस पैसे का नुकसान हो जाएगा। सेस खत्म होने के बाद ग्राहक तो इसका पेमेंट करने के लिए सहमत नहीं होंगे।

सरकारी राहत के बिना झेलना पड़ेगा नुकसान

इंडस्ट्री से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि इंडस्ट्री को इस पर तुरंत स्पष्टता की जरूरत है। अधिकारी ने कहा कि डीलर्स का मार्जिन बहुत कम होता है और वे इस बोझ को नहीं उठा सकते। ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर्स भी दुविधा में हैं। सरकारी राहत के बिना उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा। ऐसी भी चर्चा है कि वे भारी छूट देकर स्टॉक को निकालने की कोशिश कर सकते हैं। यह 2020 में BS6 भारत स्टेज 6) स्टॉक के नुकसान की याद दिलाता है।

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के अध्यक्ष शैलेश चंद्र ने कहा, “हमें विश्वास है कि सरकार जल्द ही बिना बिके वाहनों पर क्षतिपूर्ति उपकर के उपयोग के लिए उपयुक्त तंत्र को अधिसूचित करेगी, जिससे एक सुचारु और प्रभावी बदलाव सुनिश्चित होगा।”

समाधान निकलना मुश्किल

लेकिन टैक्स एक्सपर्ट्स के अनुसार, इसका समाधान इतना आसान नहीं हो सकता है। GST के विपरीत, सेस को समायोजित या आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है और किसी भी रिफंड के लिए नए नियमों की आवश्यकता होगी, जो कानूनी रूप से जटिल साबित हो सकते हैं। पूरी संभावना है कि यह बोझ ऑटोमोबाइल कंपनियों पर पड़ेगा। समय भी इस परेशानी को बढ़ा रहा है। त्योहारी सीजन के लिए स्टॉक तैयार किया गया था। फेस्टिव सीजन में बड़ी खरीदारी की डिमांड आमतौर पर पीक पर होती है। अब, खरीदारों द्वारा 22 सितंबर का इंतजार करने और डीलरों के नई सप्लाई को रोकने से बाजार ठप्प हो गया है।