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किसानों के साथ धोखा! रेत-भूसा और रंग मिलाकर बन रही नकली खाद, यूपी के रास्ते आ रहा माल

MP News: यूपी में बने कारखानों के रास्ते नकली खाद छोटे मालवाहक वाहनों के जरिए सीधे एमपी के छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ जिलों के गांव-गांव तक पहुंच रहा है।

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Fake fertilizers racket factories uttar pradesh farmers chhatarpur mp news (Patrika.com)

Fake fertilizers racket factories uttar pradesh farmers chhatarpur (Patrika.com)

Fake fertilizers racket: छतरपुर जिले के किसानों की मेहनत और फसलों का भविष्य आज एक बड़े खतरे में है। खाद की मांग और सप्लाई के बीच के अंतर का फायदा उठाकर नकली खाद का कारोबार तेज हो गया है। यूपी के महोबा और बांदा जिले नकली खाद के 'कारखाने' बन चुके हैं, जहां से तैयार माल छोटे मालवाहक वाहनों के जरिए सीधे छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ जिलों के गांव-गांव तक पहुंच रहा है। माफिया किसानों को रैक से चोरी का माल बताकर सस्ते दाम पर बेचते हैं, लेकिन बोरी में खाद नहीं बल्कि मिलावट से तैयार जहर भरा होता है। (MP News)

ऐसे होता है खेल

सूत्रों के अनुसार पूरा खेल रैक से शुरु होता है। हरपालपुर रेलवे स्टेशन पर जब असली खाद की रैंक पहुंचती है, तो उसी कंपनी की नकली बोरी कानपुर से छपवा ली जाती है। इन बोरियों में रेत और भूसे से तैयार नकली दाने भर दिए जाते हैं। फिर दुकानदारों और किसानों को कहा जाता है कि यह रैक से चोरी का माल है, इसलिए सस्ता मिलेगा। किसान लालच में आकर खरीद लेता है और नुकसान खुद झेलता है। (MP News)

महोबा में पकड़ी गई थी फैक्ट्री

बीते वर्ष आबकारी व कृषि अधिकारी और महोबकंठ पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में महोबा जिले से बड़ी मात्रा में नकली खाद बरामद हुई थी। 5 आरोपी गिरतार हुए और 53 बोरी नकली उर्वरक, 233 खाली बोरी और सिलाई मशीन जब्त की गई थी। इसके साथ ही नकली शराब बनाने का सामान भी मिला।

वितरण व्यवस्था कमजोर होने का फायदा

जिले में खाद वितरण की व्यवस्था कमजोर है। सरकारी सोसाइटियों में केवल उधार पर खाद मिलती है। बड़ी संया में किसान अब भी कर्जमाफी योजना के जाल में फंसे हैं। ऐसे में उन्हें नकद खाद खरीदना पड़ता है। सरकारी कोटे में 30 प्रतिशत और निजी दुकानों को केवल 20 प्रतिशत खाद मिलता है। नतीजा किसानों को जरूरत का खाद समय पर नहीं मिल पाता। इस गैप का फायदा नकली खाद माफिया उठा रहे हैं।

ये है नकली खाद बनाने का तरीका

  • बांदा-महोबा और चित्रकूट के कई गांवों में खुलेआम नकली खाद तैयार की जाती है।
  • रेत को 15 से 20 फीट ऊंचाई से गिराया जाता है।
  • उसमें गेहूं-चावल का भूसा मिलाया जाता है।
  • गिरते समय ये भूसे की गोली जैसा आकार ले लेता है।
  • फिर उसमें रंग मिलाकर खाद जैसा रूप दिया जाता है।
  • बाद में नकली कंपनी की बोरी में भरकर माल तैयार हो जाता है।
  • इस पूरी प्रक्रिया में लागत बेहद कम आती है, लेकिन बाजार में असली दाम पर बेचा जाता है।

यूपी में क्यों नहीं बिकता नकली खाद

उत्तर प्रदेश में खाद सप्लाई चेन बेहद मजबूत है। हर गांव में सोसाइटी है, जहां नकद और उधार दोनों पर खाद उपलब्ध है। इसलिए किसान नकली खाद के झांसे में नहीं आते। लेकिन मध्यप्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ जैसे जिलों में कमी का फायदा उठाकर माफिया धंधा फैला रहे हैं।

पिछले साल की कार्रवाई ठंडी क्यों पड़ी

पिछले साल चंदला, ईशानगर और नौगांव में नकली खाद की बोरियां पकड़ी गई थीं। छोटे ट्रकों में आया माल जब्त भी हुआ था। लेकिन गवाही न मिलने और किसान अदालत तक जाने से डर गए, नतीजा केस ठंडे बस्ते में चला गया। यही वजह है कि माफिया अब और बेखौफ हो गए हैं।

नकली खाद में नहीं होते पोषक तत्व - कृषि वैज्ञानिक

कृषि वैज्ञानिक डॉ. कमलेश अहिरवार ने बताया कि नकली खाद में पोषक तत्व बिल्कुल नहीं होते। किसान खेत में मेहनत तो करता है लेकिन उपज घट जाती है। असली डीएपी का दाना सख्त और गहरे रंग का होता है। नकली खाद आसानी से खुरच जाती है। तंबाकू की तरह दाने को चूना मिलाकर मसलने पर तीखी गंध निकलती है। अगर गंध नहीं है, तो समझिए खाद नकली है। (MP News)