
गैरसैंण की वादियां
(देहरादून,अमर श्रीकांत): विधानसभा सत्र को लेकर गैरसैंण इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में है। सत्ता पक्ष के कई विधायकों, यहां तक विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल सहित विपक्ष के विधायक और कांग्रेस के कई विधायक यही चाह रहे हैं कि विधान सभा का शीतकालीन सत्र का आयोजन गैरसैंण में हो। लेकिन सरकार ने किसी की भी नहीं सुनी।
सरकार ने दिया यह तर्क...
सरकार ने यह तर्क देते हुए गैरसैंण में सत्र के आयोजन को मंजूरी नहीं दी कि वहां इन दिनों भयंकर ठंड है और कई ऐसे मंत्री हैं जो उम्रदराज भी हैं। ऐसी स्थिति में गैरसैंण में सत्र का आयोजन करना काफी जोखिमभरा कार्य है। लिहाजा गैरसैंण के बजाय देहरादून में ही विधानसभा के सत्र का आयोजन करना उचित होगा। अब आगामी 4 दिसंबर को विधानसभा का सत्र देहरादून में शुरू होगा। जो करीब एक सप्ताह तक चलेगा।
शुरुआत से ही हो रही है राजनीति...
दरअसल गैरसैंण को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपनी अपनी रोटी सेकने का काम करती है। गैरसैंण, एक स्थान का नाम है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में पड़ता है। यहां अमूनन हर समय ठंंड रहती है। राज्य गठन जब वर्ष 2000 में हुआ। उस समय से ही मांग चल रही है कि गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाई जाए। कांग्रेस भी सत्ता में रही और उसने में गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।
इस मामले में भाजपा भी यही कर रही है। दोनों ही पार्टियां गैरसैंण का स्थाई समाधान करने के पक्ष में नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही पता है कि यदि गैरसैंण का स्थाई समाधान हो गया तो चुनाव के समय मुद्दा ही गायब हो जाएगा। क्योंकि जब भी विधान सभा का चुनाव आता है। दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को जमकर कोसती हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाती हैं कि स्थाई राजधानी नहीं बनने के पीछे किस पार्टी की क्या चाल है। गैरसैंण का उपयोग चुनाव के दौरान राजीतिक पार्टियां करती है। ताकि पर्वतीय जनपदों के वोट बैंक को बटोरा जा सके।
गैरसैंण में बना दी विधानसभा की बिल्डिंग
बस, गैरसैंण में एक नई विधानसभा की बिल्डिंग बना दी गई है। सत्ता में जब जिसकी सरकार रहती है वह अपने हिसाब से कभी गैरसैंण में तो कभी देहरादून में सत्र का आयोजन कराती रहती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। सत्ता पक्ष मतलब फिर भाजपा का वह गुट जो मुख्यमंत्री को पसंद नहीं करता है वह काफी पहले से ही मांग कर रहा है कि गैरसैंण में ही इस बार का विधानसभा का सत्र होना चाहिए। मुख्यमंत्री के विरोधी गुट को कांग्रेस का भी समर्थन मिल रहा है। सभी चाहते हैं कि इस बार का सत्र देहरादून के बजाय गैरसैंण में कराना ठीक रहेगा। लेकिन मुख्यमंत्री के आगे किसी की भी नहीं चली।
लेकिन अहम सवाल यह है कि गैरसैंण का नाटक कब तक चलता रहेगा। गैरसैंण को लेकर उत्तराखंड के लोगों की भावनाओं के साथ राजनीतिक पार्टियां कब तक खेलती रहेंगी। इसका समाधान तो होना ही चाहिए।
उल्लेखनीय है कि राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड के लोगों की यह मांग है कि पहाड़ की राजधानी पहाड़ में होनी चाहिए। गैरसैंण को स्थाई राजधानी नहीं होने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है। विकास शून्य है। गर्मी में भी ठंड रहती है। आवागन को लेकर काफी दिक्कते हैं। ऐसी स्थिति में गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करना या फिर गैरसैंण में विधानसभा का सत्र चलाना काफी कठिन है। पर इतना जरूर है कि गैरसैंण उत्तराखंड के लोगों के रोम रोम में बसा है और इसका भी समाधान होना चाहिए। केवल चुनाव के समय ही गैरसैंण पर राजनीति करना ठीक नहीं है। पर्वतीय लोगों को यह पता है कि जब गैरसैंण में सत्र चलेगा तब विधायकों और मंत्रियों की नजर गैरसैंण में फैली अव्यवस्थाओं पर जाएगी। तभी जाकार गैरसैंण का विकास संभव हो पाएगा।
"गैरसैंण में विधानसभा बनायी गई है। इसलिए सत्र वहां चलाने में कोई दिक्कत नहीं है। पर अब सरकार सत्र देहरादून में चाहती है।" प्रेमचंद्र अग्रावल,अध्यक्ष ,विधानसभा
"गैरसैंण में सत्र चलाने को लेकर शुरू से ही भेदभाव हो रहा है। विधानसभा भवन तो कांग्रेस ने ही बनाया है। तो वहां सत्र चलाने में क्या परेशानी है। समझ के परे है।" इंदिरा हृदेश ,कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं विधानसभा में नेता विपक्ष
"गैरसैंण में ठंड ज्यादा है। कई मंत्रियों की उम्र काफी ज्यादा है। इसलिए गैरसैंण में इस बार सत्र टाला गया है। गैरसैंण में तो सत्र चलेगा ही। अतीत में भी चलाया गया है। गैरसैंण को लेकर नौटंकी बंद होनी चाहिए। किसी की भावनाओं के साथ मजाक करना ठीक नहीं है। गैरसैंण के लिए सरकार की कई तरह की योजनाएं हैं।" सरकार उस दिशा में कार्य भी कर रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ,मुख्यमंत्री ,उत्तराखंड
Published on:
23 Nov 2019 04:26 pm
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