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Dhar Bhojshala – 1902 के सर्वे से कैसे अलग है भोजशाला का नया सर्वे, जानिए कार्बन डेटिंग से कैसे सामने आएगी हकीकत

Bhojshala survey - How is new survey different from 1902 survey धार भोजशाला Dhar Bhojshala का अंग्रेजों के समय सन 1902 में भी एएसआई का सर्वे हो चुका है।

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धार

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deepak deewan

Mar 22, 2024

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भोजशाला का नए सिरे से और कार्बन डेटिंग तकनीक से सर्वे

Bhojshala survey - How is new survey different from 1902 survey- एमपी के धार में शुक्रवार को भोजशाला का सर्वे शुरु हो गया। कोर्ट के आदेश के बाद यहां आर्किेयोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानि एएसआई की टीम सर्वे कर रही है। धार भोजशाला को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्षों का विवाद है। हिंदू पक्ष इसे प्राचीन सरस्वती मंदिर बताता है जबकि मुस्लिम पक्ष इसके मस्जिद होने का दावा करता रहा है।

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धार भोजशाला Dhar Bhojshala का अंग्रेजों के समय सन 1902 में भी एएसआई का सर्वे हो चुका है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष की मांग पर भोजशाला का नए सिरे से और कार्बन डेटिंग तकनीक से सर्वे कराने का आदेश दिया है। इस स्टोरी में हम आपको एएसआई के पुराने सर्वे और ताजा सर्वे के अंतर के बारे में बताएंगे।

सन 1902 में एएसआई की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर मुस्लिम पक्ष धार भोजशाला को मस्जिद बताता है। इसका विरोध करते हुए हिंदू पक्ष ने कई याचिकाएं लगाईं जिसके बाद नए सर्वे का आदेश दिया गया। सबसे पहले यह जानते हैं कि एएसआई का शुक्रवार को शुरु हुआ सर्वे पुराने सर्वे से किस तरह अलग होगा।

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सन 1902 में एएसआई का सर्वे पुराने और पारंपरिक तरीके से किया गया था। नया सर्वे पूरी तरह वैज्ञानिक सर्वे होगा। इसके अंतर्गत भोजशाला के पूरे परिसर का वैज्ञानिक पद्धति से ही उत्खनन भी होगा। कोर्ट ने एएसआई को धार भोजशाला का सर्वे जीपीआर, जीपीएस और कार्बन डेटिंग तकनीक से करने को कहा है। पुराने और नए सर्वे में यही मूलभूत अंतर है।

सबसे बड़ा सवाल ये है कि एएसआई के 1902 के सर्वे में जो चीज यहां नहीं पाई गई थी वह अब कैसे आ सकती है! मुस्लिम पक्ष यही तर्क देकर सर्वे को खारिज करता है। इसके जबाव में हिंदू पक्ष का कहना है कि कार्बन डेटिंग से धार भोजशाला की प्राचीनता सामने आ जाएगा। अंग्रेजों के जमाने में जब सर्वे किया गया था तब कार्बन डेटिंग तकनीक थी ही नहीं। पुराने और नए सर्वे में यह सबसे बड़ा अंतर है। कार्बन डेटिंग से भोजशाला निर्माण का समय सामने आएगा जिसके आधार पर यह विवाद निपटाया जा सकता है।

कार्बन डेटिंग
इस तकनीक से किसी भी वस्तु या निर्माण की प्राचीनता का पता चल जाता है। यह अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है जिसकी खोज शिकागो में सन 1949 में की गई थी। इस तकनीक के माध्यम से मिट्टी, पत्थर या चट्टानों आदि की भी आयु की गणना की जा सकती है। कार्बन डेटिंग से लकड़ी या पेड़ आदि की उम्र भी पता की जाती है।

जीपीआर व जीपीएस तकनीक
ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार यानि जीपीआर जमीन के अंदर की असलियत जानने की नवीनतम तकनीक है। यह जमीन में छुपी चीजों को भी तलाशकर उसकी हकीकत बता देती है। इसी तरह ग्लोबल पोजिशिनिंग सिस्टम यानि जीपीएस तकनीक का भी सर्वे में इस्तेमाल किया जा रहा है।

सर्वे की खासियत
— एएसआई के 5 एक्सपर्ट की टीम बनाई गई है।
— सर्वे की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी होगी
— सर्वे दोनों पक्षों की उपस्थिति में होगा
— सर्वे की रिपोर्ट इंदौर कोर्ट में 29 अप्रेल तक प्रस्तुत करनी होगी
- उत्खनन और सर्वे जीपीएस और जीपीआर तकनीक के साथ कार्बन डेटिंग से होगा।