Fuel on Fire: तेल के खेल में ये है सियासत आैर अर्थव्यवस्था का फाॅर्मूला
केन्द्र सरकार जहां उत्पाद शुल्क के नाम पर तो वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकारें भी मनमाने ढंग से तेल पर वैट लगाकर खूब कमार्इ कर रही हैं।

नर्इ दिल्ली। पेट्रोल-डीजल को लेकर भारत में एक कहावत बड़ा मशहूर है। कहा जाता है कि Oil is 90 percent politics and 10 percent economy यानी तेल में 90 फीसदी सियासत अौर 10 फीसदी अर्थव्यवस्था होती है। जिस तरह से कर्नाटक चुनाव के दौरान तेल के दाम को लगातार 19 दिनों तक स्थिर रखा गया आैर फिर चुनाव के बाद पिछले दस दिन से इसमें बढ़ोतरी हो रही है, ये कहावत चरितार्थ होती दिखार्इ दे रही है। इसके पहले गुजरात चुनाव के दौरान भी यही हाल था। तेल को लेकर ये सियासत सिर्फ चुनावों तक ही नहीं सिमित हैं बल्कि केन्द्र आैर राज्य सरकारें भी तेल के दाम पर अपनी झोली भरने में लगी हुर्इं है। एक तरफ केन्द्र सरकार जहां उत्पाद शुल्क के नाम पर जनता की जेब जला रही तो वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकारें भी मनमाने ढंग से तेल पर वैट लगाकर खूब कमार्इ कर रही हैं। पिछले 10 दिन में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम से फिलहाल तो कोर्इ बड़ी राहत मिलती नहीं दिखार्इ दे रही है। हालांकि सरकार इसपर अपने बैठक में चर्चा करने की बात कह रही है। दूसरी तरफ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी बोला है कि 2-4 दिन में इसपर कोर्इ फैसला ले लिया जाएगा।
कच्चा तेल नहीं सरकारों की लूट से महंगा हो रहा तेल का दाम
तेल कंपनियां र्इंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए कर्इ बाहरी कारण जैसे कच्चे तेल के बढ़ते दाम आैर डाॅलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी बता रहीं हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में केन्द्र आैर राज्य सरकारों द्वारा खुदरा र्इंधन की कीमतों पर लगने वाला टैक्स भी तेल की कीमतों में हो रही भारी बढ़ोतरी का एक सबसे बड़ा कारण है। एक तरफ केन्द्र सरकार तेल पर एक्साइज ड्यूटी वसूल रही तो वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकारें वैट(वैल्यू एेडेड टैक्स) के नाम पर मनमाना ढंग से टैक्स वसूल रही हैं।
पंप डीलरों को पहले से सस्ते में मिल रहे पेट्रोल-डीजल
दिलचस्प बात ये है कि साल 2013 के बाद पंप डीलरों को जिस दर पर तेल बेचा जाता था उसमें काफी गिरावट देखने को मिला है। साल 2014 में जहां पंप डीलरों को 47.18 रुपए प्रति लीटर की दर से पेट्रोल बेचा जाता था वहीं मौजूदा समय में 37.19 रुपए में बेचा जा रहा है। यानी बीते चार साल में इसमें 10 रुपए की गिरावट आर्इ है। वहीं डीजल की बात करें तो साल 2014 में जहां एक लीटर पेट्रोल के लिए 52.68 रुपए देना हाेता था वो वर्तमानम में 37.42 रुपए प्रति लीटर हो गया है। यानी कि इसमें भी 15.26 रुपए की कमी हुर्इ है। साल 2014 में नरेन्द्र मोदी की अगुवार्इ वाली बीजेपी सरकार के सत्ता में अाने से पहले पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 11.77 रुपए प्रति लीटर आैर डीजल पर 13.47 रुपए प्रति लीटर था।
टैक्स के नाम पर सरकार जमकर लूट रही आपकी जेब
मोदी सरकार जब से सत्ता में आर्इ है तब से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिला लेकिन इस दौरान तेल पर एक्साइज ड्यूटी (उत्पाद शुल्क) लगातार बढ़ाया गया है। मौजूदा समय में केन्द्र सरकार पेट्रोल पर 19.48 रुपए प्रति लीटर आैर डीजल पर 15.33 रुपए प्रति लीटर उत्पाद शुल्क वसूलती है। वहीं राज्य भी अपने अपने हिसाब से इसपर वैट वसूलते हैं।
चालू वित्त वर्ष में पेट्रोलियम उत्पाद से सरकार की होने वाल है मोटी कमार्इ
इस साल वित्त मंत्रालय के राजस्व संग्रह के अनुमान के मुताबिक, माैजूदा वित्त वर्ष में पेट्रोलियम पदार्थों से सरकार को 2.579 लाख करोड़ रुपए की कमार्इ होगी। चौकाने वाली बात ये है कि वित्त वर्ष 2013-14 में यें आंकड़ा 88,600 करोड़ रुपए था। पिछले वित्त वर्ष की बात करें तो ये 2.016 लाख करोड़ रुपए हैं। सरकार ने उस समय भी उत्पाद शुल्क में भारी बढ़ोतरी की थी जब अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत 30 डाॅलर प्रति बैरल से भी कम हो गर्इ थी। नवंबर 2015 से जनवरी 2016 के बीच 5 बार पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया था।
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