
असरौली गांव में बुधवार सुबह खुशी की जगह मातम पसर गया। रक्षाबंधन पर परिवार सहित खाटू श्याम के दर्शन को निकले लोग जब घर लौटे तो कफन में लिपटे हुए। दौसा में हुए भीषण हादसे ने पूरे गांव को शोक में डुबो दिया। गांव के हर घर से रुदन की आवाजें आ रही थीं। चूल्हे ठंडे पड़ गए, आंगनों में सन्नाटा था, और गलियों में सिर्फ चीख-पुकार की गूंज। जो भी गमगीन परिवारों से मिलने पहुंचा, वह भी आंसुओं को रोक न सका। किसी ने बेटे को खोया, किसी ने बेटी को, तो किसी ने पूरे पूरा परिवार।
इस हादसे ने लाखन सिंह की पूरी दुनिया उजाड़ दी। एक ही झटके में उनकी पुत्रवधु सीमा, तीन साल की मासूम नातिन बाबू, बेटी सोनम और सिर्फ एक साल की धेवती नन्ही मिष्ठी हमेशा के लिए उनसे छिन गईं। घर के चार-चार चिराग बुझने के गम में लाखन सिंह की पत्नी फूट-फूटकर रो रही थी। उनकी कांपती जुबान पर बस एक ही पुकार थी— “हे भगवान, मेरे बच्चों को लौटा दो… मेरा उजड़ा घर फिर बसा दो।”
जयप्रकाश के लिए यह हादसा जिंदगी का सबसे बड़ा दर्द बन गया। एक ही पल में उन्होंने अपनी पत्नी शीला और सात साल के बेटे निर्मल को खो दिया। शीला अपने मायके से भतीजियां महक और सलोनी को भी दर्शन कराने लाई थीं, लेकिन दोनों मासूमों की जिंदगी भी इस मंजर में खत्म हो गई। वहीं, जयप्रकाश के चचेरे भाई संजीव उर्फ संजू की पत्नी और तीन साल की नन्ही बेटी पूर्वी भी इस भीषण हादसे की भेंट चढ़ गईं। संजीव का बेटा बच गया, क्योंकि उसे उन्होंने संयोग से दूसरी गाड़ी में बैठा दिया था।
बुधवार शाम जब सात शव असरौली पहुंचे, तो हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी। बच्चों के छोटे-छोटे शव देखकर गांव का दिल कांप उठा। देर रात तक अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चली। तीन बच्चों को गांव के बाहर दफनाया गया और तीन महिलाओं की चिताएं एक साथ श्मशान में जलाई गईं।
Updated on:
14 Aug 2025 09:18 am
Published on:
14 Aug 2025 09:17 am
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