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कोरोना से ठीक होने वाले व्यक्तियों में दिख रहा Blue-Toe Syndrome

locationनई दिल्लीPublished: Nov 03, 2020 07:43:38 pm

कोरोना वायरस से ठीक होने वाले मरीजों में देखने को मिल रहा नया रोग।
ब्लू टो सिंड्रोम ( Blue-Toe Syndrome ) का कारण रक्त की आपूर्ति में कमी और खून के थक्के बनना।
कुछ मामलों में यह शारीरिक स्थिति को बना देता है और ज्यादा खतरनाक।

Blue-Toe Syndrome: Digital ischemia seen in COVID-19 survivors

Blue-Toe Syndrome: Digital ischemia seen in COVID-19 survivors

नई दिल्ली। कोरोना वायरस से जंग जीतकर ठीक होने की तो खुशी लोगों में जबर्दस्त देखी ही जाती है, लेकिन देश में इस महामारी से ठीक होने वाले कुछ मरीजों में दिखने वाले लक्षणों ने चिकित्सकों की चिंता बढ़ा दी है। डॉक्टर कोविड-19 से ठीक हुए लोगों में डिजिटल इस्केमिया ( Blue-Toe Syndrome ) देख रहे हैं जो एक दर्दनाक और अक्सर कुरूप बनाने वाली शारीरिक स्थिति है। वहीं, एक 58 वर्षीय महिला के मामले में चिकित्सकों ने ब्लू-टो की ऐसी स्थिति देखी जिसमें उसकी पैर की “नीली” उंगलियों ने वास्तव में स्थिति को और अधिक गंभीर और दुर्लभ बना दिया, जिसने तकरीबन जानलेवा साबित हो गया था।
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बेंगलुरु स्थित जयदेव अस्पताल के निदेशक डॉ. सीएन मंजूनाथ ने बताया कि इस्केमिया का अर्थ है कि रक्त की आपूर्ति में कमी और यह खून के थक्के बनने के कारण होता है जो पैरों और हाथों की धमनियों में जम जाता है। कोविड-19 से ठीक होने वाले व्यक्तियों में यह हृदय की सूजन से शुरू होता है।
इस्केमिया शरीर के संबंधित हिस्से की त्वचा का रंग बदलने की स्थिति होती है, जिसमें संबंधित स्थान पर नीला या बैंगनी रंग हो जाता है। इससे त्वचा के ऊतकों की हानि भी हो जाती है, जो मरीज के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। डॉ. मंजूनाथ ने कहा, “यह इस बात पर निर्भर करता है कि थक्का कहां बनता है। अगर यह दिल में है, तो यह दिल के दौरे को ट्रिगर कर सकता है।”
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उन्होंने कहा, “यदि यह मस्तिष्क में है, तो यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या पैदा कर सकता है, और यदि यह चरम सीमाओं में है, तो यह गैंग्रीन को जन्म दे सकता है। जबकि कोवि[-19 को आमतौर पर फेफड़ों संबंधी रोग माना जाता है, हम कोविड-19 से बचे एक तिहाई मरीजों में इस्केमिया देखते हैं। उम्र इसका कोई कारक नहीं है।”
वहीं, जयनगर स्थित मणिपाल हॉस्पिटल्स के वस्कुलर सर्जन डॉ. यू वासुदेव राव के मुताबिक, इस्केमिया के इलाज में देरी से कोविड-19 से ठीक हुए 50 वर्ष से ऊपर आयु के मरीज में गैंग्रीन की शुरुआत हो गई थी और इसके चलते उसके अंगों को काटना पड़ा। इस्केमिया की समस्या काफी गंभीर है, लेकिन बीते 1 सितंबर को कोविड-19 से ठीक होने वाले एक वरिष्ठ नागरिक के मामले में इसकी मौजूदगी ने कुछ भयावह बात छिपाई।
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दरअसल, कोरोना रोगी के रूप में उस महिला को बुखार था, जबकि उसकी डायबिटीज भी बिगड़ी हुई थी और गुर्दे की हल्की समस्या भी थी। ऑक्सीजन थेरेपी देकर उसे 15 दिन बाद छुट्टी दे दी गई। हालांकि, 20 अक्टूबर को वह जयनगर के अस्पताल में चली गईं और उनके बाएं पैर के निचले हिस्से में गंभीर दर्द था और दोनों निचले पैरों में सूजन थी। डॉ. राव ने पाया कि उनकी तिल्ली में संभावित फोड़ा था।
अगले कुछ दिनों में उसने बाएं पैर की उंगलियां रंग बदलकर नीली हो गईं। डॉक्टरों ने शुरू में सोचा था कि महिला को ब्लू-टो सिंड्रोम हो सकता है। पेट के एक सीटी स्कैन ने स्प्लीन में एक बड़े फोड़े की पुष्टि की। सही दवाएं देने के पांच दिनों के बाद भी कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ।
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जब डॉक्टरों ने एक इकोकार्डियोग्राम दोहराया, तो उन्होंने रोगी के हृदय के माइट्रल वाल्व में बैक्टीरिया का विकास देखा। डॉक्टर यह जानकर दंग रह गए कि उसे सबएक्यूट बैक्टीरियल एंडोकार्डिटिस नामक एक दुर्लभ बीमारी थी।”
डॉ राव ने कहा कि “नीले पैर की उंगलियां” बैक्टीरिया के संक्रमण से सूक्ष्म संचलन में आने के कारण थी। डॉ. मंजूनाथ के अनुसार बैक्टीरियल एंडोकार्डिटिस दुर्लभ है। दुनिया भर में इसके केवल कुछ मामले सामने आए हैं।
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