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युवाओं में तेजी से क्यों बढ़ रहा है कोलोरेक्टल कैंसर? 24 साल की रिसर्च और डॉक्टरों ने खोले चौंकाने वाले राज

Colorectal Cancer in Young Adults: नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि युवाओं में कोलोरेक्टल कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। 24 साल की स्टडी और डॉक्टर बताते हैं कि जंक फूड और लाइफस्टाइल इसकी बड़ी वजह है, पढ़िए रिपोर्ट।

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भारत

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Rahul Yadav

Nov 18, 2025

Colorectal Cancer in Young Adults

Colorectal Cancer in Young Adults (Image: Freepik)

Colorectal Cancer in Young Adults: पिछले कुछ सालों से डॉक्टर, कोलन और रेक्टम यानी बड़ी आंत से जुड़े कैंसर के मामलों में एक बेहद चौंकाने वाले बदलाव देख रहे हैं। अब यह बीमारी उम्रदराज लोगों में नहीं बल्कि 30 से 40 साल के युवाओं में तेजी से पकड़ बना रही है। गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जीआई ऑन्कोलॉजी के सीनियर डायरेक्टर डॉ. अमनजीत सिंह बताते हैं कि उनके पास आने वाले युवा मरीजों की संख्या पिछले एक दशक में काफी बढ़ गई है।

उन्होंने जब इन मरीजों की जीवनशैली पर नजर डाली तो एक पैटर्न साफ दिखाई दिया है। जिसमे ज्यादातर लोग दिनभर बाहर का खाना खाते थे, रेडी-टू-ईट पैकेट खोलकर खाना उनकी आदत बन चुकी थी, व्यायाम का समय नहीं, काम का बोझ ज्यादा और नींद बेहद कम लेते थे। डॉक्टर सिंह के शब्दों में, ''ये सचमुच लाइफस्टाइल से पैदा होने वाला कैंसर है।''

दिलचस्प बात यह है कि उनकी यह चिंता अब एक बड़ी रिसर्च से भी साबित हो गई है। जामा ऑन्कोलॉजी (JAMA Oncology) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह साफ दिखा कि जितना बढ़ा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन, उतनी ही तेजी से युवा मरीजों में कोलोरेक्टल कैंसर के शुरुआती लक्षण बढ़े हैं। यह अध्ययन अमेरिका के बोस्टन स्थित मास जनरल ब्रिघम (Mass General Brigham) हॉस्पिटल में डॉ. एंड्र्यू टी. चान की टीम ने किया है। उन्होंने 20 से 40 साल की महिला नर्सों पर लंबा अध्ययन किया और पाया कि जो महिलाएं शुगर वाले ड्रिंक्स, तली-भुनी चीजें, पैकेज्ड मीट, चिप्स, कैंडी, सोडा जैसी चीजों का ज्यादा सेवन करती थीं उनमें आंतों में प्रीकैंसरस पॉलीप बनने का खतरा काफी ज्यादा था।

यह रिसर्च बेहद व्यापक थी। इसमें करीब 29,000 महिला नर्सों को शामिल किया गया, जिनकी उम्र अध्ययन की शुरुआत में 20 के दशक से लेकर शुरुआती 40 के बीच थी। शोधकर्ताओं ने इन नर्सों को लगभग 24 साल तक फॉलो किया और हर चार साल में उनकी डाइट और लाइफस्टाइल से जुड़ी जानकारी ली। सभी नर्सों की उम्र 50 होने से पहले कम से कम एक बार कोलोनोस्कोपी भी की गई थी। नतीजे चौंकाने वाले थे, जिन नर्सों ने रोजाना लगभग 10 सर्विंग अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाया, उनमें प्रीकैंसरस पॉलीप बनने का खतरा उन नर्सों की तुलना में 45 प्रतिशत ज्यादा पाया गया जो रोज केवल 3 सर्विंग के आसपास ऐसी चीजें खाती थीं।

कैसे बढ़ाता है अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड कैंसर का खतरा?

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे खाने से पेट की आंतों में बसने वाले ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ जाता है। यह असंतुलन आंतों की सुरक्षात्मक परत को नुकसान पहुंचाता है। जब यह परत कमजोर होती है तो टॉक्सिन्स शरीर में घुसकर सूजन पैदा करते हैं। यही सूजन धीरे-धीरे कोशिकाओं के असामान्य व्यवहार की वजह बनती है और कोलन में छोटे ट्यूमर यानी एडेनोमा बनने लगते हैं। इनमें से कुछ समय के साथ कैंसर में बदल जाते हैं।

डॉ. सिंह का कहना है कि फाइबर की कमी भी एक बड़ी वजह है। घर का खाना, सलाद, फल और सब्जियां फाइबर से भरपूर होते हैं जो आंतों की सफाई में मदद करते हैं। लेकिन पैकेट वाले खाने पर निर्भर रहने से फाइबर कम मिलता है और आंतों में गंदगी जमने लगती है जो कैंसर के जोखिम को बढ़ाती है।

कौन-सा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड सबसे ज्यादा घातक?

डॉ. सिंह के अनुसार, प्रोसेस्ड मीट, पोल्ट्री (चिकन, बतख, टर्की आदि) और फिश सबसे खतरनाक हैं। पैकेट वाले मीट में फ्थेलेट्स जैसे केमिकल पाए जाते हैं जो प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के दौरान खाने में मिल जाते हैं। यही नहीं, नाइट्राइट और नाइट्रेट जैसे प्रिजर्वेटिव गर्म होने पर कार्सिनोजेनिक कंपाउंड्स में बदल सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी प्रोसेस्ड मीट को ग्रुप-1 कार्सिनोजेन मानता है। यानि इसके कैंसर पैदा करने के पक्के सबूत मौजूद हैं।

क्या हर पॉलीप कैंसर में बदल जाता है?

हर पॉलीप कैंसर नहीं बनता, लेकिन लगभग हर कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत एक पॉलीप से ही होती है। समस्या यह है कि कम उम्र में इन्हें अक्सर बवासीर या पाइल्स समझकर अनदेखा कर दिया जाता है। और क्योंकि यह कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है शुरुआती पहचान बेहद जरूरी होती है।

भारत में स्क्रीनिंग की क्या स्थिति है?

भारत में अभी कोई तय राष्ट्रीय स्क्रीनिंग गाइडलाइन नहीं है। लेकिन किसी को भी अगर पाइल्स, ब्लीडिंग या पेट से जुड़ी दिक्कतें हों तो एक साधारण कोलोनोस्कोपी यह बता सकती है कि कहीं पॉलीप तो विकसित नहीं हो रहे। भारत में कोलोरेक्टल कैंसर पश्चिमी देशों से लगभग एक दशक पहले ही लोगों को प्रभावित कर देता है।

अमेरिका में, बढ़ते मामलों को देखते हुए बिना लक्षण वाले लोगों के लिए भी नियमित जांच की उम्र 50 से घटाकर 45 कर दी गई है और जिनके परिवार में यह कैंसर रह चुका है उन्हें तो 40 साल की उम्र से पहले ही जांच शुरू कर देनी चाहिए।

क्या समझना जरूरी है?

युवाओं में कोलोरेक्टल कैंसर बढ़ना सिर्फ एक मेडिकल समस्या नहीं है बल्कि हमारी बदलती जीवनशैली का नतीजा है। जल्दी तैयार होने वाला पैकेट वाला खाना, बाहर का फास्ट फूड, मीठे पेय, फ्रोजन मीट और कम शारीरिक गतिविधि ये सब धीरे-धीरे आंतों की सेहत पर असर डालते हैं। अच्छी बात यह है कि थोड़े से बदलाव इस खतरे को काफी कम कर सकते हैं। घर का तजा खाना, ज्यादा फाइबर, कम मीठे ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड मीट से दूरी बना लें, ये छोटे कदम लंबी दूरी तक आपकी सेहत को सुरक्षित रख सकते हैं।


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