
Coronavirus Medicine : संक्रमण से इलाज के लिए मध्य प्रदेश से दवा खरीद रहा है अमेरिका, हुआ शॉर्टेज
इंदौर/ एक तरफ दुनियाभर के लिए गंभीर चुनौती बन चुके कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। वहीं, भारत समेत विश्व के सभी विकसित देश कोरोना के दंश से निपटने के लिए पर्याप्त दवा खोजने में जुटे हुए हैं। इसी कड़ी में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने मध्य प्रदेश से मलेरिया के इलाज में काम आने दवा क्लोरोक्वीन का निर्यात शुरू किया है। मध्य प्रदेश में तीन इकाइयों के जरिए इस दवा का बड़े पैमाने पर निर्माण करने वाली कंपनी इप्का लेबोरेटरी को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएस-एफडीए) ने दवा के निर्यात का ऑर्डर दिया है।
बाजार से गायब हुई क्लोराक्वीन
कंपनी की ओर से भी क्लोराक्वीन के निर्यात पर सहमति देते हुए बीएसई और एनएसई को इसकी सूचना भेज दे दी है। अमेरिका द्वारा इस दवा की मांग इतने बड़े पैमाने पर की जा रही है कि, उसकी पूर्ति कर पाना दवा कंपनी के लिए मुश्किल हो रहा है। हालात ये हैं कि, मध्य प्रदेश में ही बनने वाली ये दवा स्थानीय बाजारों में ही मिलना बंद हो गई है। कई स्थानीय चिकित्सक सामान्य सर्दी-जुकाम वाले वायरल में मरीज को ये दवा देते हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर हो रहे निर्यात के चलते यहां सामान्य खांसी बुखार के मरीजों को क्लोराक्वीन बाजार में नहीं मिल रही है। वहीं, दूसरी ओर देश की जरूरतों को ताक पर रखते हुए विदेश को दवा दवा बेचने वालों पर स्थानीय स्तर पर विरोध भी शुरू हो गया है।
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कोरोना में मददगार- खुलासा
इप्का लेबोरेटरी ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) को 21 मार्च को सूचना भेजी है कि 20 मार्च को अमेरिका एफडीए की ओर से उन्हें ई-मेल मिला है। कंपनी की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया कि, विभिन्न रिसर्च, रिपोर्ट्स में 'क्लोराक्वीन फॉस्फेट' व 'हाइड्रोक्सीक्लोराक्वीन सल्फेट' को कोरोना के इलाज मददगार पाया गया है। अमेरिका में इस दवा के कच्चे माल और तैयार दवा की कमी के बाद यूएस एफडीए ने इसकी मांग की है। कंपनी ने यह जानकारी दी है कि अन्य तमाम देशों से इस तरह की मांग आ रही है और दवा तमाम देशों को निर्यात भी की जा रही है।
एमपी में बनती है दवा
मलेरिया के इलाज की इस प्रचलित दवा का निर्माण करने वाली इप्का लैब भारत की बड़ी दवा कंपनियों में से एक है। इप्का के तीन प्लांटों में इस दवा का उत्पादन 24 घंटे चालू है। कंपनी के तीनों प्लांट मध्य प्रदेश में हैं। रतलाम में स्थित प्लांट में 'हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट' और 'क्लोरोक्वीन फॉस्फेट' का एक्टिव फॉर्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट यानी बेसिक ड्रग बनाती है। इस बेसिक ड्रग को अन्य दवा निर्माता इकाइयां खरीदकर उससे क्लोराक्वीन की टेबलेट या सीरप जैसे उत्पाद बनाते हैं। इसके अलावा इप्का पीथमपुर सेज में स्थित प्लांट और पिपरिया के सिलवासा स्थित प्लांट में हाइड्रोक्सीक्लोराक्वीन सल्फेट की टेबलेट व उपयोग के लिए दवा बनती है। बता दें कि, कंपनी इस दवा का निर्यात काफी पहले से यूरोप में कर रही है।
सप्ताहभर में बदली स्थिति
करीब सप्ताहभर पहले ही कोरोना में इस दवा के असरदार होने की खबरें विश्व के अलग-अलग देशों से सामने आई थीं। इसके बाद से विदेश से निर्यात की मांग एकाएक बढ़ने लगी। नतीजा हुआ कि छोटी दवा कंपनियां जो अब एपीआई यानी बेसिक ड्रग लेकर उपयोग की दवा तैयार करती थीं, महंगे दामों पर भी उन्हें पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल नहीं मिल रहा है। इस बीच पूरे बाजार से क्लोराक्वीन फॉर्मूलेशन की गोलियां और सीरप मिलना बंद हो गई। जरूरतमंद मरीजों को भी केमिस्ट दवा उपलब्ध नहीं करवा पा रहे। दवा कारोबारियों ने मांग उठाई है कि सरकारी एजेंसियां ध्यान दें और निर्यात रोककर पहले देश को पूरा करें, ताकि स्थानीय बाजार की पूर्ति हो।
नहीं बचा माल
इंदौर केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनय बाकलीवाल के मुताबिक, थोक बाजारों में क्लोराक्वीन के फॉर्मूलेशन नहीं मिल रहे हैं। अधिकतर काउंटरों पर अब ये मिलना बंद हो गई है। लिहाजा रिटेलर्स को भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, जिससे रिटेलर्स में इसकी नाराजगी देखी जा रही है। हालांकि, ये स्थिति अभी-अभी बनी है, जिसपर सरकार और प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।
Published on:
23 Mar 2020 03:30 pm
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