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IED Blast: एआई के जमाने में भी पुराने संसाधनों से तलाश रहे विस्फोटक, आईईडी डिटेक्ट की क्षमता सिर्फ 2 फीट

IED Blast: एआई के जमाने में जब तकनीक अपने चरम पर पहुंच चुकी है। ऐसे वक्त में बस्तर में आईईडी विस्फोट का खतरा तकनीक के उपयोग से कम नहीं हो रहा है। यहां बीते 24 साल में 3549 आर्ईईडी मिली है। बम निरोधक दस्ते ने इन आईईडी को डिफ्यूज किया है लेकिन लगभग इतनी ही […]

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IED Blast: एआई के जमाने में जब तकनीक अपने चरम पर पहुंच चुकी है। ऐसे वक्त में बस्तर में आईईडी विस्फोट का खतरा तकनीक के उपयोग से कम नहीं हो रहा है। यहां बीते 24 साल में 3549 आर्ईईडी मिली है। बम निरोधक दस्ते ने इन आईईडी को डिफ्यूज किया है लेकिन लगभग इतनी ही संख्या में या इससे ज्यादा की तादाद में अब भी बस्तर की सडक़ों में आईईडी प्लांट हैं। इन आईईडी को बस्तर में तैनात बम निरोधक दस्ता तलाश नहीं पाता है।

यह भी पढ़ें: IED Recovered in Sukma: नक्सलियों की बड़ी साजिश नाकाम, 10 किलो का आईईडी बरामद कर जवानों ने किया डिफ्यूज

अगर किसी सडक़ में आईईडी 5 से 8 फीट नीचे प्लांट है तो उसे डिटेक्ट करने की क्षमता वाली मशीन बस्तर में नहीं है। डिटेक्टर से महज २ फीट की गहराई तक प्लांट आईईडी को ढूंढा जा सकता है। पिछले सप्ताह जब बीजापुर के कुटरू में आईईडी विस्फोट हुआ तो वहां भी नक्सलियों ने 6 फीट नीचे आईईडी प्लांट किया था। यहां 8 जवान शहीद हुए थे और एक सिविलियन ड्राइवर मारा गया था। अगर बेहतर तकनीक वाली मशीन बस्तर को मिल जाए तो आईईडी का खतरा कम हो सकता है।

ज्यादा गहराई में प्लांट करने से बारूद खराब नहीं होता

नक्सली सडक़ों के नीचे करीब 5 से 7 फीट अंदर कमांड आईईडी प्लांट कर रखते हैं। यह आईईडी अधिकतम 70 किलो तक की होती है। ज्यादा नीचे इसलिए इसे प्लांट करते हैं ताकि बीडीएस का दस्ता इसे खोज ना पाएं, या फिर किसी भी तरफ से आईईडी को कोई नुकसान न पहुंचे वह सुरक्षित रहे। ज्यादा नीचे आईईडी प्लांट होने से उसका बारूद भी खराब नहीं होता है।

विस्फोट से बख्तरबंद गाड़ी तक के परखच्चे उड़ जाते हैै

50-60 किलो की आईईडी की क्षमता इतनी होती है कि वह बख्तरबंद गाड़ी के भी परखच्चे उड़ा देती है। बीजापुर में हुए ब्लास्ट में नक्सलियों ने 60 किलो आईईडी का इस्तेमाल किया था। धमाके के बाद वाहन समेत जवानों के शवों के अंग करीब 500 मीटर दूर तक पड़े मिले थे।

डॉग स्क्वायड भी ज्यादा नीचे दबे आईईडी को ढूंढने में बेबस

बस्तर में तैनात बीडीएस के एक्सपर्ट बताते हैं कि उनके पास जो इक्यूपमेंट्स हैं वह जमीन के नीचे केवल 2 फीट तक ही आईईडी की जानकारी देते हैं। इससे ज्यादा नीचे अगर बम होगा, तो मशीन को पता नहीं चलेगा। बीडीएस की टीम के साथ डॉग स्क्वायड भी होता है, लेकिन जब तक बारूद की गंध नहीं आएगी, कुत्ते भी इसका पता नहीं लगा सकते।

2 से 5 किलो की आईईडी एक व्यक्ति की ले लेती है जान

बस्तर में जवानों को नक्सलियों से आमने-सामने की लड़ाई और गोलियों से ज्यादा जमीन के अंदर दबे बारूद से खतरा है। जवान जब सर्च ऑपरेशन पर निकलते हैं तो नक्सली उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए पेड़ या फिर पगडंडी रास्तों पर डेढ़ से दो फीट अंदर आईईडी दबाकर रखते हैं। ये ज्यादातर अधिकतम 5 किलो के होते हैं। इनमें पैर पडऩे पर धमाका हो जाता है और इससे एक व्यक्ति की जान चली जाती है या उसके अंग उड़ जातेे हैं।