
Photo: Patrika Network
मोहित शर्मा.
Himalayan Glaciers: जयपुर। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों ने भारत के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission ) की जून 2025 की रिपोर्ट, ग्लेशियल लेक्स एंड वाटर बॉडीज फॉर जून-2025, ने चेतावनी दी है कि हिमालय की 400 से अधिक ग्लेशियर झीलें तेजी से पिघल रही हैं, जिससे ग्लेशियल लेक आउटबस्र्ट फ्लड (GLOF) का खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति हिमालयी क्षेत्र को "क्रायोस्फेरिक टाइम बम" में बदल रही है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हाल के भूस्खलन और बाढ़ ने इस संकट की गंभीरता को और उजागर किया है। जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार इसका असर राजस्थान तक दिखेगा। राजस्थान में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की आशंका बढ़ रही है। CWC की रिपोर्ट के अनुसार, Glacial Lake Atlas-2023 में सूचीबद्ध 681 झीलों में से 432 ने जून 2025 तक अपने क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। इनमें से 67 झीलें 40% से अधिक क्षेत्रफल वृद्धि के कारण उच्च जोखिम वाली श्रेणी में हैं।
ये झीलें लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में फैली हैं। भारत में ग्लेशियर झीलों का कुल क्षेत्रफल 2011 में 1,917 हेक्टेयर था, जो 2025 में बढ़कर 2,508 हेक्टेयर हो गया, जो 30.83% की वृद्धि दर्शाता है। अरुणाचल प्रदेश में 197 झीलें, लद्दाख में 120, जम्मू-कश्मीर में 57, सिक्किम में 47, हिमाचल प्रदेश में 6 और उत्तराखंड में 5 झीलें इस विस्तार का हिस्सा हैं। कुल 2,843 झीलों की निगरानी में 1,435 में क्षेत्रफल वृद्धि, 1,008 में कमी और 108 में कोई बदलाव नहीं देखा गया, जबकि 292 झीलों का विश्लेषण रिमोट सेंसिंग डेटा की कमी के कारण नहीं हो सका।
रिपोर्ट में ग्लेशियर के पिघलने से झीलों के विस्तार का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन बताया गया है। हिमालयी क्षेत्र वैश्विक औसत से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यह पिघलन झीलों के आकार को बढ़ाने के साथ-साथ मोरेन-बांधों को अस्थिर कर रहा है, जिससे जीएलओएफ का खतरा बढ़ रहा है। विशेषज्ञों ने ब्लैक कार्बन, माइक्रोप्लास्टिक और असामान्य बारिश को इस संकट को गहराने वाले कारकों के रूप में चिह्नित किया है।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से बुरी तरह प्रभावित हैं। उत्तराखंड में हाल की धराली बाढ़ और 2013 की केदारनाथ त्रासदी, 2021 की चमोली बाढ़ जैसी घटनाएं जीएलओएफ के खतरे को दर्शाती हैं। हिमाचल प्रदेश में बार-बार होने वाले भूस्खलन ने कई लोगों की जान ली है, जबकि जम्मू-कश्मीर में जम्मू और झेलम नदियों के बढ़ते जलस्तर ने बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी है। दिल्ली में भी यमुना का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे खतरा और गहरा रहा है।
3 अप्रेल 2025 को राज्यसभा में अतारांकित प्रश्न संख्या 3723 के जवाब में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने ग्लेशियर झीलों के विस्तार से उत्पन्न खतरों को रेखांकित किया। उन्होंने जीएलओएफ के पर्यावरणीय, सामाजिक और बुनियादी ढांचे पर पडऩे वाले प्रभावों पर जोर दिया।
सीडब्ल्यूसी ने निचले इलाकों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम, सैटेलाइट-आधारित अलर्ट और चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की सिफारिश की है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना त्वरित कार्रवाई के, ये झीलें लाखों लोगों की जान और संपत्ति को खतरे में डाल सकती हैं।
ग्लेशियर झीलों के फटने से होने वाली बाढ़ बस्तियों, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, सड?ों, पुलों और जैव-विविधता को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। 2023 की सिक्किम आपदा और हाल की उत्तराखंड की घटनाएं इस खतरे के स्पष्ट उदाहरण हैं। नेपाल, भूटान और तिब्बत भी इस संकट से अछूते नहीं हैं।
ग्लेेशियरों के पिघलने से आकस्मिक बाढ़ की स्थिति बन रही है। इसका दुष्प्रभाव हिमालय क्षेत्र में सबसे अधिक है। चट्टान अपेक्षित रूप से कमजोर हंै। यह टैक्टोनिक रूप से सक्रिय क्षेत्र है। राजस्थान में भी जलवायु परिवर्तन का असर दिख सकता है। इससे राज्य कें कुछ क्षेत्रों में अतिवृष्टि और अनावृष्टि की भी आशंका है।
Updated on:
05 Sept 2025 12:50 pm
Published on:
05 Sept 2025 12:47 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
