
फाइल फोटो- पत्रिका
राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाईमान सिंह (SMS) में 5 अक्टूबर की रात ट्रॉमा सेंटर में लगी आग ने 6 मरीजों की जान ले ली। यह हादसा कोई अचानक नहीं हुआ, बल्कि सालों से बरती जा रही लापरवाही का नतीजा था। डॉक्टर की चेतावनियों से लेकर पुरानी वायरिंग तक, सब संकेत दे रहे थे कि सिस्टम 'बीमार' है, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और इस कीमत 6 लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
एसएमएस अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर की बिजली वायरिंग सालों से खराब बताई जा रही थी। दीवारों में करंट और शॉर्ट सर्किट की चेतावनियों को नजर अंदाज किया गया। यह तथ्य एफएसएल जांच रिपोर्ट में भी सामने आया। सार्वजनिक निर्माण विभाग की इंजीनियरिंग विंग ने काफी पहले ही अंदेशा जता दिया था कि अस्पताल के बिजली तंत्र की इलेक्ट्रिक ऑडिट कराना जरूरी है। इस संबंध में प्रशासन को आडिट के लिए एस्टिमेट बनाकर पत्र भेजा गया था, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की ओर से सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के अधीन आने वाले सभी अस्पतालों में सभी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए परामर्श सेवाएं ली गई थी। इसके लिए सीआईएसएफ को 30 लाख रुपए का भी भुगतान किया गया था, लेकिन इससे जुड़ी रिपोर्ट आज तक नहीं मिली है।
ट्रॉमा सेंटर में लगी भीषण आग से पहले ही बिजली संबंधी खामियों के बारे में बताया गया था। इस संबंध में तत्कालीन ट्रॉमा इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने अस्पताल प्रशासन को कई बार पत्र भी लिखा था। उन्होंने लिखा था कि ट्रॉमा सेंटर में कई बार करंट आने के कारण मरीजों के इलाज में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं उन्होंने बताया था कि ट्रॉमा सेंटर के ऊपर बन रहे नए निर्माण कार्य के कारण कई बार विद्युत से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उनकी बात को नजरअंदाज किया गया और यह तकनीकी गड़बड़ी आखिरकार त्रासदी में बदल गई।
एसएमएस अस्पताल की मौजूदा इमारत करीब 80 साल पुरानी है, जो कि अब काफी जर्जर हो चुकी है। ऐसे में एमएनआईटी की ओर से एक सर्वे भी किया गया। इस सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बिल्डिंग को काफी जर्जर बताया गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि बिल्डिंग पर किसी तरह का नया निर्माण संभव नहीं है। इस रिपोर्ट के बाद प्रशासन ने अस्पताल को पूरी तरह से ध्वस्त कर नई बिल्डिंग बनाने की सिफारिश की थी।
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अस्पताल प्रशासन ने फायर सिस्टम की जांच नहीं कराई। नतीजा आग लगने पर स्टोर रूम में लगे स्मॉक डिटेक्टर ने सही से काम नहीं किया। इसके कारण अलार्म सिस्टम समय पर एक्टिवेट नहीं हुआ। इतना ही नहीं स्टाफ को मेनुअल फायर फाइटिंग सिस्टम की जानकारी नहीं थी। नतीज आग विकराल होती चली गई। वहीं आईसीयू वार्ड के जिस स्टोर रूम में आग लगी, वह वास्तविक में वार्ड का ही हिस्सा था। यहां जरूरत से ज्यादा कबाड़ भर दिया गया, जिसे हटाने पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
इतना ही नहीं एसएमएस अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष अग्रवाल को गुरुवार शाम एसीबी ने एक लाख रुपए की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था। वहीं डॉ. मनीष अग्रवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार की लिखित शिकायत चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास 1 अक्टूबर को ही पहुंच चुकी थी। यहां से यह डिस्पेच होकर 3 अक्टूबर को सवाईमानसिंह मेडिकल कॉलेज प्रशासन के पास पहुंची। शिकायत मिलने के बाद 3 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई, लेकिन इस कमेटी ने भी अभी तक अपनी कोई जांच रिपोर्ट नहीं दी।
Updated on:
11 Oct 2025 04:01 pm
Published on:
11 Oct 2025 03:14 pm
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