दरअसल, गड़बड़ी के दोषी प्राइवेट अस्पतालों को योजना से डीपैनल्ड किया जाता है। लेकिन सामने आया कि कुछ मामलों में तो प्राइवेट अस्पतालों को एक नहीं दो बार तक पैनल्टी लगा फिर जोड़ दिया गया। पता चला कि योजना से जुड़े अस्पतालों की रेंडम जांच भी होती है, उनमें से करीब 20 से 30 प्रतिशत में गड़बड़ी मिलती है। यानी पूरी योजना में सालाना करीब 200 से 300 करोड़ रुपए का फर्जी भुगतान उठने की आशंका है।
जिन प्राइवेट अस्पतालों को डीपैनल्ड फिर जोड़ा गया, उनमें तकनीकी, मानवीय गलती बताकर या किसी मामले में डॉक्टर या अन्य स्टाफ की गलतियां बताईं गईं। यदि प्राइवेट अस्पतालों को बिना वजह डीपैनल्ड किया तो बीमा कंपनी के डीपैनल्ड करने पर भी सरकार की ही कार्रवाई सवाल खड़े कर रही है।
सूचना ही रोक, सामने कैसे आए सच्चाई
प्राइवेट अस्पताल के बारे में सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत जानकारियां मांगी गई। इसमें पंजीकरण पत्रावलियां, अस्पताल के खिलाफ बीमा योजना में मिली शिकायतों और की गई कार्रवाई, शिकायत निस्तारण और येाजना में अस्पताल को भुगतान के तथ्य शामिल थे। विभाग ने कुछ शिकायतों को बीमा कंपनी से जुड़ी बता पल्ला झाड़ लिया। वहीं कुछ को आरटीआइ के दायरे से बाहर बताया।
आरटीआइ के जवाब में बीमा कंपनी ने अस्पताल के पंजीकरण की जानकारी, असपताल को योजना के तहत बीमा कंपनी तक कितनी बार बाहर करने की जानकारी और उसे मिले अब तक के भुगतान की जानकारी को तृतीय पक्ष से संबंधित होना बताकर सूचना देने से ही इनकार कर दिया। कहा गया कि सूचना के अधिकार की एक धारा के तहत इस तरह की सूचना के अधिकार के तहत नहीं दी जा सकती।
इस बारे में मुख्य कार्यकारी अधिकारी ही जानकारी दे सकते हैं। वहां से हमें कोई निर्देश मिलेंगे तो ही हम जानकारी दे सकते हैं।
– खुशाल यादव, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राजस्थान स्टेट हैल्थ एश्योरेंस