
लागत सस्ती होने से कीमत भी कम, क्वालिटी अच्छी। फोटो पत्रिका
Rajasthan : पूरे देश में प्रदूषण का कारण बनी खेतों की पराली का इन दिनों जयपुर के सांगानेर में कागज बनाने के लिए उपयोग हो रहा है। यहां की इकाइयां किसानी से पराली खरीदकर उसे प्रोसेस कर कागज तैयार कर रही है। खास बात यह है कि या पर्यावरण हितैषी कागज न केवल देश के बाजार में, बल्कि यूरोप, यूएसए स्पेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है।
जानकारों का कहना है कि पराली से बने कागज की क्वालिटी मजबूत और टिकाऊ है। यही वजह है कि विदेशों से इसके ऑर्डर लगातार आ रहे है। साथ ही कच्चा माल सस्ता आने के कारण इसकी लागत भी अन्य कागजों की तुलना में कम आ रही है, जिससे सीधा खरीदार को भी फायदा पहुंच रहा है।
स्थानीय स्तर पर इस पहल से किसानों को अतिरिक्त आय मिल रही है। वहीं कागज उद्योग को पेड़ों पर निर्भरत घटाने का विकल्प भी मिल गया है।
पराली को खेतों से एकत्र किया जाता है। फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इसके बाद उसे उबालकर पल्प (रेशा) तैयार किया जाता है। यही पल्प महीनों के जरिए दबाकर और सुखाकर कागज की शीट में बदला जाता है। अंत में क्वालिटी टेस्टिंग और फिनिशिंग की जाती है। इस प्रक्रिया में किसी भी तरह का हानिकारक केमिकल इस्तेमाल नहीं होता है। जिससे यह पूरी तरह पर्यावरण हितैषी उत्पाद बनता है।
पराली से बना कागज मजबूत और किफायती है। कच्चा माल भी सस्ता आता है, इसलिए ग्राहक को भी कम कीमत पर उपलब्ध हो जाता है। विदेशी बाजारों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। आने वाले समय में यह उद्योग यहां के छोटे व्यापारियों और किसानों दोनों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है।
राम प्रसाद सैनी, कागज व्यापारी, सांगानेर
Updated on:
23 Sept 2025 09:43 am
Published on:
23 Sept 2025 08:16 am
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