
जयपुर। देश और विदेश में लाखों-करोड़ों लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो जन्म से ही या किसी हादसे के कारण अपना हाथ गंवा चुके है। तो वहीं इनमें कई लोग ऐसे हैं, जिनके पास कृत्रिम हाथ लगवाने के लिए पैसे नहीं होते, लेकिन अब इन लोगों के लिए मणिपाल विश्वविद्यालय जयपुर की साझेदारी में पिलटोवर टेक्नोलॉजी ने ऐसे कृत्रिम हाथ तैयार किए हैं, जो ना केवल सस्ते हैं। बल्कि बेहतर तरीके से कार्य भी कर सकते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 11.4 लाख और दुनियाभर में 1.5 करोड़ ऐसे लोग है जो कि हाथ की कमी के कारण अपनी रोज मर्रा के कार्य पूरा करने में सक्षम नहीं है। जिसको ध्यान में रखते हुए महंगे कृत्रिम हाथों की तुलना में विश्वविद्यालय के बी.टेक छात्रों और पिलटोवर टेक्नोलॉजी के सीईओ मनन इस्सर केवल 9 हजार से 12 हजार रूपए की लागत तैयार कृत्रिम हाथों के तीन मॉडल तैयार किए हैं। जो अलग-अलग तरीके से कार्य करने में सक्षम हैं। तो वहीं तीनों मॉडल को विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट, प्रो. संदीप संचेती एवं प्रो-प्रेसिडेंट के अलावा फेकल्टी ऑफ इंजिनियरिंग के दिशा-निर्देश पर तैयार किया गया है।
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ये है कृत्रिम हाथों के 3 मॉडल-
यांत्रिक हाथ- इस हाथ की सहायता से किसी भी वस्तु को दिव्यांग आसानी से पकड़ सकता है। तो वहीं अपनी जरुरत के अनुसार काम में ला सकता है।
विद्युत हाथ- इसके जरिए उपयोगकर्ता इस कृत्रिम हाथ की अंगुलियों में सजीव हाथ की जैसे स्पंदन और हलचल के जरिए मानसिक इशारों के अनुसार अपने कार्य को आसानी से कर सकता है।
कृत्रिम हाथ के तीसरे मॉडल के जरिए उपयोगक्ता कटे या विकंलागता पूर्ण हाथ की मांसपेशियों के संकेत पर कार्य कर सकता है। इसे माय्योइलेक्ट्रिानिक हाथ नाम दिया गया है।
इन कृत्रिम हाथों के कार्य-
इस कृत्रिम हाथ का अंगुठा 80 डिग्री तक घुमकर अलग-अलग तरह से हाथ को वस्तुओं को पकड़ने में सहायता करता है। जिस तरह से एक आम आदमी की कलाई काम कर सकती है उसी प्रकार से इस कृतिम हाथा की कलाई 180 डिग्री तक घुमकर उपयोगकर्ता को अपनी कलाई का अहसास कराकर उसके कामों को आसानी करवा सकती है। सबसे बड़ी बात इस हाथ में भार के मुताबिक पकड़ बनाने की क्षमता भी मौजूद है। साथ ही इसमें स्वयं लॉकिग सिस्टम भी है, जो किसी भी वस्तु को पकड़कर रख सकता है।
कृत्रिम हाथ का वजन-
यह हाथ वजन में हल्का है। इसका भार 750 ग्राम है, जो कि शायद एक आम आदमी के कोहनी के हाथ से भी कम है। जो कि उपयोगकर्ता को आसानी से कार्य करने देता है। तो वहीं इनकी की गई डिजाइन ठीक वैसी ही है, जैसे एक आमदी के हाथों की होती है। जो दूर से देखने में असली हाथ की तरह लगता है।
द बॉक्स थ्योरी-
किसी भी दिव्यांग शख्स को कत्रिम अंगों के साथ एडजेस्ट करने में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो वहीं कई बार इसकी अवधि 2 महीने से एक साल तक की हो सकती है। इसी सम्सया को देखते हुए पिलटोवर टेक्नोलॉजी ने द बाक्स थ्योरी का विकास किया है। जिसके जरिए उपयोगकर्ता कम समय अपने इन कृत्रिम हाथों के साथ एडजेस्ट कर सके। इस सिद्धांत की मानें तो रोगी को कृत्रिम अंग के साथ एक बॉक्स भी दिया जाता है। जिसमें कृत्रिम हाथ के साथ एक अनुदेश पुस्तिका और एक सूचना पुस्तिका भी रहती है। जिसके जरिए दिव्यांग को कम समय में मानसिक दबाव के बिना हाथों के अपयोग की सारी जानकारी देने में माहिर है।
तो वहीं इन हाथों का रखरखाव भी काफी आसान है। मनन और इनकी टीम के सदस्य प्रखर तोमर, स्नेहल टिबरेवाल, अलंकृत माथूर, श्रेण्या माथुर, अनमोल सचदेव, आयुषी राज भट्ट, सूरज कुमार, शगुन मालवीय ने लगातार एक साल तक रिसर्च की। जिसके बाद उनकी मेहनत रंग लाई और वे सभी इस मुकाम तक पहुंचे। जबकि इसके तैयार हो जाने पर मणिपाल विश्वविद्यालय जयपुर के चेअरपर्सन प्रो. के. राम नारायण ने मनन और इनकी टीम को बधाई दी है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के स्टाफ, फैकल्टी मैंबर्स और छात्रों ने उनके इस कोशिश को काबिले तारीफ बताया।
Published on:
09 Feb 2018 08:16 pm
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