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राजस्थान में अब सर्टिफिकेट नहीं… सीधा दिव्यांग कार्मिकों की होगी जांच, 15000 सरकारी कर्मचारियों की बढ़ी टेंशन

राजस्थान में दिव्यांगता सर्टिफिकेट लगाकर नौकरी पाने वालों की टेंशन बढ़ गई है। फर्जीवाड़े के मामले सामने आने के बाद सरकार ने सभी विभागों में पुनः मेडिकल जांच के आदेश दिए हैं।

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Cm Bhajanlal

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (फोटो-पत्रिका)

जयपुर। राज्य सरकार की ओर से प्रदेश के सभी विभागों में दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त कार्मिकों की पुनः दिव्यांगता जांच के आदेश के बाद सरकारी तंत्र में हलचल मच गई है। इस फैसले से प्रदेशभर में कार्यरत 15 हजार से अधिक दिव्यांग कार्मिकों की नौकरी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कार्मिकों को आशंका है कि दिव्यांगता प्रतिशत में मामूली कमी भी उनकी पात्रता पर प्रश्नचिह्न लगा सकती है।

जानकारी के अनुसार, हाल ही में सरकारी नौकरियों में दिव्यांगता सर्टिफिकेट से जुड़े कई फर्जीवाड़े सामने आए थे। इसके बाद कार्मिक विभाग ने सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि दिव्यांग कोटे से नियुक्त कार्मिकों की पुनः मेडिकल जांच करवाई जाए। इन आदेशों के बाद न केवल हाल ही में चयनित अभ्यर्थियों, बल्कि 5 से 35 वर्ष पहले नियुक्त कार्मिकों को भी मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश होना पड़ रहा है।

40 फीसदी की सीमा बनी चिंता की वजह

पुनः जांच के दौरान कई जिलों में यह तथ्य सामने आया है कि नियुक्ति के समय जिन कार्मिकों की दिव्यांगता 40 फीसदी से अधिक थी, उनमें वर्तमान जांच में 5 से 7 फीसदी तक का अंतर पाया जा रहा है। यह अंतर इसलिए अहम हो गया है क्योंकि सरकारी सेवा में दिव्यांग कोटे का लाभ लेने के लिए न्यूनतम 40 फीसदी दिव्यांगता अनिवार्य है। अधिकारियों का अनुमान है कि करीब 70 फीसदी कार्मिक इसी सीमा के आसपास आते हैं। ऐसे में दिव्यांगता प्रतिशत के 40 फीसदी से नीचे आने पर उनकी नौकरी पर संकट खड़ा हो सकता है।

दिव्यांग कार्मिकों में नाराजगी, उठाए सवाल

सरकारी आदेश के बाद दिव्यांग कार्मिकों में नाराजगी भी देखी जा रही है। अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार को दिव्यांगता की पुनः जांच कराने की बजाय फर्जी सर्टिफिकेट की जांच करनी चाहिए। वर्षों से सेवा दे रहे कार्मिकों की दिव्यांगता पर अब सवाल उठाना उनके साथ अन्याय है।

नए सर्कुलर से जांच, पुराने नियमों से नियुक्ति

दिव्यांग कार्मिकों का तर्क है कि उनकी नियुक्ति दिव्यांग अधिनियम 1995, 2001 और 2016 के तहत बने पुराने मापदंडों के अनुसार हुई थी, जबकि वर्तमान में सरकार 2024 में जारी नए सर्कुलर के आधार पर जांच करवा रही है। नए और पुराने मानकों में अंतर होने से दिव्यांगता प्रतिशत में बदलाव स्वाभाविक है।

पहले भौतिक परीक्षण, अब तकनीकी जांच

विशेषज्ञों के अनुसार, पहले मेडिकल बोर्ड केवल भौतिक परीक्षणों के आधार पर प्रमाण-पत्र जारी करते थे, जबकि अब आधुनिक मशीनों और तकनीकी उपकरणों से जांच की जा रही है। योग, फिजियोथेरेपी, आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सा और उम्र के साथ मांसपेशियों की स्थिति में बदलाव के कारण दिव्यांगता प्रतिशत में कुछ कमी या वृद्धि संभव है। स्थायी दिव्यांगता समाप्त नहीं होती, लेकिन उसका आकलन समय के साथ बदल सकता है।

कार्मिक विभाग का परिपत्र

कार्मिक विभाग के परिपत्र के अनुसार, विभिन्न विभागों में कार्यरत दिव्यांगजन कार्मिकों के पुनः मेडिकल परीक्षण में प्रमाण-पत्रों में अनियमितताएं सामने आई हैं। ऐसे में सभी विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि सक्षम राजकीय मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के मेडिकल बोर्ड से दिव्यांग कार्मिकों का नियमानुसार पुनः परीक्षण करवाया जाए। यदि किसी प्रकरण में दिव्यांगता के निर्धारित मानकों में कमी या गलत प्रमाण-पत्र पाया जाता है, तो संबंधित कार्मिक के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी और इसकी सूचना कार्मिक विभाग व एसओजी को भेजी जाएगी।

चयनित दिव्यांग अभ्यर्थियों की मांग को नकारा नहीं जा सकता। सरकार को मेडिकल बोर्ड के विशेषज्ञों से राय लेकर ही आगे का निर्णय करना चाहिए। -हरिप्रसाद शर्मा, पूर्व चेयरमैन, राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड

फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट की जांच होनी चाहिए, लेकिन वर्षों से सेवा दे रहे कार्मिकों की दिव्यांगता पर सवाल उठाना उचित नहीं। -ईरा बोस, प्रदेशाध्यक्ष, युवा हल्ला बोल


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