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Rajasthan : राजस्थान में सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार के पास भरा है खजाना, पर नहीं कर रहे हैं खर्च, क्यों

Rajasthan News: राजस्थान में सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार के पास खजाना भरा है। पर खर्च करने में कोताही बरत रही है सरकार, क्यों। पढ़े यह रिपोर्ट।

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Rajasthan Government has Full Coffers for Road Safety but is not Spending why

जयपुर एसएमएस स्थित ट्रोमा सेंटर जहां हॉल में ही हादसा हुआ। पत्रिका फोटो

Rajasthan News : राजस्थान में सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार के पास तो खजाना भरा है, लेकिन जनता की जान बचाने के लिए उस पैसे का उपयोग करने में नौकरशाही की सुस्ती और लालफीताशाही ने सारी योजनाओं की रफ्तार रोक दी है। हालात यह हैं कि राज्य सरकार के पास सड़क सुरक्षा कोष में 39 हजार 266 करोड़ रुपए जमा हैं, लेकिन इनमें से खर्च का आंकड़ा ‘तिनका भर’ भी नहीं है। फाइलों में उलझी स्वीकृतियां और विभागों के बीच समन्वय की कमी ने यह स्थिति बना दी है कि स्वीकृत राशि का भी एक तिहाई हिस्सा तक खर्च नहीं हो पा रहा।

विधानसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, सड़क सुरक्षा कोष की राशि हर साल बढ़ती जा रही है, क्योंकि यह राशि लेप्स नहीं होती। परिणामस्वरूप, पुरानी राशि नए वित्तीय वर्ष में जुड़ती रहती है और कोष में रकम लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले तीन वर्षों में सड़क सुरक्षा कोष से सरकार ने विभिन्न कार्यों के लिए 252 करोड़ 16 लाख रुपए स्वीकृत किए थे, लेकिन खर्च केवल 69 करोड़ 41 लाख रुपए ही हो पाए। यह राशि कुल स्वीकृति का मात्र 27 प्रतिशत ही है। विधायक विक्रम बंशीवाल की ओर से मानसून सत्र में पूछे गए प्रश्न पर सरकार ने यह जानकारी विधानसभा को दी है।

सड़क सुरक्षा और पुलिसिंग के काम के हाल

वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय राजमार्ग शाहजहांपुर-अजमेर, बर-बिलाड़ा-जोधपुर और सीकर-बीकानेर मार्गों पर 21 स्थानों पर ट्रैफिक एड पोस्ट स्थापित करने की योजना थी। इन पोस्टों पर एक एसआई और चार-चार होमगार्ड लगाने का प्रस्ताव था। इसके लिए 5 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया गया, लेकिन एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ।

ब्लैक स्पॉट सुधार की गति भी धीमी

ब्लैक स्पॉट सुधार के 60 कार्यों के लिए 32 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए, लेकिन खर्च मात्र 20 लाख रुपए ही हो सके। यह बताता है कि जमीनी स्तर पर कार्यों की गति लगभग ठप है।

परिवहन विभाग को मिली राशि भी खर्च नहीं

परिवहन विभाग को उड़न दस्तों के लिए पोर्टेबल वेटिंग मशीनें खरीदने के लिए 2.84 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई थी, लेकिन यह राशि भी पूरी तरह खर्च नहीं हो सकी।

फाइलों में उलझी जनता की सुरक्षा

विशेषज्ञों का कहना है कि सड़क सुरक्षा कोष का उद्देश्य ट्रोमा केयर, सड़क सुधार, ट्रैफिक प्रबंधन और जनजागरूकता जैसे कामों में तेजी लाना है, लेकिन जब धन ही उपयोग नहीं हो पा रहा, तो योजनाएं सिर्फ कागजों में सीमित रह जाती हैं। अस्पतालों में आधुनिक उपकरणों की कमी और ब्लैक स्पॉट्स पर सुधार न होने से दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। राज्य सरकार की ओर से भी माना गया है कि विभागों के बीच समन्वय की कमी, टेंडर प्रक्रिया में देरी और प्रशासनिक मंजूरी में अड़चनों के कारण खर्च का स्तर बेहद कम है।

खर्च होता पैसा तो… मिलती ये सुविधाएं

सड़क सुरक्षा और वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार सरकार के पास पड़े 39 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएं तो जनता को मिल सकती ये सुविधाएं

ब्लैक स्पॉट : राज्य के 300 से अधिक ब्लैक स्पॉट को इंजीनियरिंग उपायों से सुधारा जा सकता है। जैसेः रोड जियोमेट्री सुधार, सिग्नलिंग स्पीड कंट्रोल, रिफ्लेक्टिव साइनेज।

ट्रॉमा नेटवर्क का विस्तार : राष्ट्रीय व राज्य राजमार्गों पर हर 100 किमी पर ट्रॉमा सेंटर स्थापित किए जा सकते हैं।

एम्बुलेंस नेटवर्क : जीपीएस आधारित एम्बुलेंस नेटवर्क और 'गोल्डन ऑवर रेस्पॉन्स सिस्टम लागू किया जा सकता है।

स्मार्ट क्रॉसिंग और फुटओवर बिज : स्कूल, अस्पताल और बाजार क्षेत्रों में जेब्रा क्रॉसिंग, साइकिल ट्रैक और फुटओवर ब्रिज का निर्माण।

सड़क सुरक्षा प्लेटफॉर्म : दुर्घटनाओं, ट्रैफिक पैटर्न, वाहन चालकों के व्यवहार और इंफ्रास्ट्रक्चर की निगरानी के लिए एक केंदीय डेटा प्लेटफॉर्म।

एआइ ट्रैफिक मैनेजमेंट : जयपुर, जोध्पुर, उदयपुर, कोटा जैसे शहरों में रेड लाइट वॉयलेशन डिटेक्शन, स्पीड कैमरा, और ट्रैफिक फ्लो ऑप्टिमाइजेशन।

ड्राइवर व्यवहार निगरानी : कॉमर्शियल वाहन चालकों के लिए टेलीमैटिक्स आधारित निगरानी और प्रशिक्षण प्रणाली।

ग्रामीण संपर्क मार्गों का सुधारीकरण : 10000 से अधिक गांवों की पक्की और चौड़ी सड़क से जोड़ना। जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बाजार तक पहुंच आसान हो।

सड़क सुरक्षा शिक्षा : स्कूलों, ड्राइविंग संस्थान और पंचायत स्तर पर सड़क सुरक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना।

महिला और दिव्यांग इंफ्रास्ट्रक्चर : बस स्टॉप, क्रॉसिंग और सार्वजनिक स्थलों पर रैंप, रैलिंग और सुरक्षित प्रतीक्षालय।

औद्योगिक गलियारा और लॉजिस्टिक हब : सड़क सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए औद्योगिक क्षेत्र में हाई कैपेसिटी कॉरिडोर का निर्माण करना।

बीमा और वित्तीय जोखिम में कमी : दुर्घटनाओं में कमी और बीमा क्लेम घटेगा। जिससे बीमा कंपनी और सरकार का वित्तीय दबाव कम होगा।

जनता की सुरक्षा, अफसरशाही की फाइलों में कैद

जनता की सुरक्षा फाइलों में कैद राज्य में हर साल हजारों लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं। ऐसे में सड़क सुरक्षा कोष में पड़ा यह पैसा जनता की जान बचाने की उम्मीद था। लेकिन हकीकत यह है कि यह कोष भी अफसरशाही की फाइलों में 'सुरक्षित' पड़ा है। उदाहरण साफ दर्शाता है कि किस तरह योजनाओं की गंभीरता और जनता की ज़रूरतें नौकरशाही की लापरवाही के नीचे दब जाती है।