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पहचान को तरस रही राजस्थान की एकमात्र लॉयन सफारी, टाइगर की रौनक फीकी, न शिकार जैसी गतिविधि और न कोई रोमांच

साल 2018 में लॉयन सफारी शुरू की गई थी। उस वक्त यहां एक मादा और दो नर शेर छोड़े गए थे। बाद में गुजरात से लाई गई शेरनी सुजैन की बीमारी से मौत हो गई।

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जयपुर

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Arvind Rao

Sep 24, 2025

Jaipur Nahargarh Biological Park

Lion Safari

जयपुर: नाहरगढ़ जैविक उद्यान में शुरू की गई प्रदेश की एकमात्र लॉयन और टाइगर सफारी अभी तक अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। करीब दस करोड़ की लागत से विकसित ये दोनों सफारी सैलानियों को आकर्षित करने में नाकाम रही हैं।

बता दें कि ये सफारी साल में कई बार बंद रहती हैं। ऐसी स्थिति में सैलानियों को मायूस लौटना पड़ता है। गत दिनों ज्यादा बारिश होने से दोनों सफारी बंद थीं, जो अब दोबारा शुरू हुई हैं।


मौतों ने तोड़ी सफारी की कड़ी


दरअसल, साल 2018 में लॉयन सफारी शुरू की गई थी। उस वक्त यहां एक मादा और दो नर शेर छोड़े गए थे। बाद में गुजरात से लाई गई शेरनी सुजैन की बीमारी से मौत हो गई। इसके बाद जोधपुर से लाए गए शेर कैलाश और फिर शेर तेजस भी बीमारी से नहीं बच पाए। शेर जीएस की मौत ने सफारी को और बड़ा झटका दिया।


लगातार हो रही इन मौतों ने न केवल प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े कर दिए, बल्कि सफारी की रौनक भी खत्म कर दी। शेरनी तारा ने हाल ही एक मृत शावक को जन्म देकर वन्यजीव प्रेमियों को निराश कर दिया।


टाइगर सफारी भी रास नहीं आई


गत वर्ष अक्टूबर महीने में नाहरगढ़ जैविक उद्यान में टाइगर सफारी शुरू की गई। यहां पर शुरुआत में दो टाइगर छोड़े गए। यह सफारी भी पूरी तरह से जंगल की अनुभूति करवाती है, लेकिन यह भी सैलानियों को आकर्षित करने में पूरी तरह से सफल नहीं रही। नतीजतन यहां भी वीकेंड पर ही ठीक-ठाक संख्या में सैलानी नजर आते हैं। खास बात है कि ये भी जैविक उद्यान में शुरू हुई प्रदेश की पहली टाइगर सफारी है।


इसलिए नहीं आ रहे सैलानी


वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि सफारी में लॉयन और टाइगर का अकेलापन सैलानियों के अनुभव को फीका कर देता है। यहां न तो शिकार जैसी कोई गतिविधि नजर आती है और न ही रोमांच का अनुभव होता है। उनको मांस भी एनक्लोजर में दिया जाता है। ये स्थितियां सैलानियों को निराश करती हैं।


सवालों के घेरे में प्रोजेक्ट


प्रदेश की एकमात्र लॉयन सफारी का यह हाल सरकार और वन्यजीव विभाग की नाकामी को उजागर करता है। करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद न तो शेरों का संरक्षण हो पाया और न ही सफारी को आकर्षक बनाया जा सका। सप्ताह के अंत में ही सैलानी नजर आते हैं। बाकि अन्य दिन रौनक गायब रहती है। ऐसा ही हाल टाइगर सफारी का है।