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Rajasthan : राजस्थान में गरीब मरीजों के इलाज के नाम पर बोर्ड तो सरकारी योजना के लगा रखे हैं, लेकिन इलाज का पैमाना मुनाफे से तय किया जा रहा है। मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना (मा) में बड़े निजी अस्पताल सरकार की तय दरों पर नहीं, अपने हिसाब से इलाज का चयन कर रहे हैं। जिन बीमारियों में लाभ कम है, उन्हें योजना से बाहर कर दिया गया है। हालात यह हैं कि मरीज सरकारी योजना के भरोसे अस्पताल पहुंचता है, लेकिन वहां जाकर पता चलता है कि उसकी बीमारी योजना के ‘पैकेज’ में फिट नहीं बैठती।
राज्य में केन्द्र की आयुष्मान और राज्य बीमा योजनाओं को मिलाकर चलाई जा रही इस योजना में कई अस्पतालों ने खुले तौर पर मनमानी शुरू कर रखी है। कुछ अस्पतालों में सभी चिकित्सा सुविधाएं मौजूद होने के बावजूद यह कहकर मना कर दिया जाता है कि संबंधित विभाग योजना में शामिल नहीं है।
संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल में हाल ही एक मरीज की मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ने शव रोक लिया था। बाद में अस्पताल ने सफाई दी कि जिस स्पेशलिटी का इलाज मरीज का होना था, वह योजना में शामिल नहीं था। आपदा एवं कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा को हस्तक्षेप करना पड़ा, तब जाकर अस्पताल ने मरीज की राशि लौटाई। ऐसे कई मामले रोज सामने आ रहे हैं। राजस्थान पत्रिका ‘मा’ योजना और आरजीएचएस के तहत मरीजों को हो रही इस मनमानी को लगातार उजागर करता आ रहा है।
सरकारी योजना में शामिल होने के बावजूद अस्पताल यह तय करने के लिए स्वतंत्र हैं कि किस बीमारी का इलाज योजना में करेंगे और किसका नहीं। यहां तक कि जिन निजी अस्पतालों ने सरकार से रियायती दरों पर जमीन ली है, वे भी इस बाध्यता से मुक्त हैं। कई अस्पतालों ने योजना के मरीजों के लिए अलग वार्ड या शाखाएं बना रखी हैं, जहां सुविधाएं भी सीमित हैं। मरीज योजना का नाम देखकर पहुंचता है, लेकिन बाद में उससे पैसा जमा कराने को कह दिया जाता है।
जयपुर के एक कैंसर अस्पताल में कीमोथैरेपी करवा रही महिला मरीज को हर बार अपने क्लेम की स्वीकृति के लिए सिफारिश करवानी पड़ती है, तब जाकर उसका दावा पास होता है। सोमवार को टोंक से आए मरीज के इलाज के लिए जयपुर के निजी अस्पताल ने क्लेम भेजा, लेकिन स्वीकृति आने में कई घंटे लग गए, जिससे इलाज में देर हुई।
Updated on:
28 Oct 2025 10:49 am
Published on:
28 Oct 2025 10:42 am
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